कैंसर मरीजों की सरवाइवल दर पहले से बेहतर हुई
| 2/3/2020 10:46:55 PM

Editor :- Mini

नई दिल्ली,
कैंसर के मरीजों की संख्या भारत में बढ़ रही है, लेकिन बीमारी के आंकड़े डराने के लिए नहीं है, पहले की अपेक्षा अब कैंसर की पहचान प्रारंभिक चरण में होने लगी है, यही वजह है कि पांच साल पहले की अपेक्षा अब कैंसर में सरवाइवल रेट या जीवित रहने की दर पहले की अपेक्षा बढ़ी है। कैंसर की पहचान के लिए सचेत रहने की जरूरत हैं। शरीर में कहीं से खून का रिसाव, गांठ का बनान, अचानक वजन कम होना भूख न लगता या किसी अंग में लंबे समय से दर्द का बने रहना कैंसर हो सकता है। इससे बचाव संभव हैं, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर कैंसर के खतरे से बचा जा सकता है। टारगेटेट दवाओं की मदद से भी अब कैंसर का बेहतर इलाज उपलब्ध है।
टाटा मैमोरियल कैंसर इंस्टीट्यूट के डॉ. पंकज चर्तुवेदी कहते हैं कि मुंह के कैंसर का आंकड़ा बढ़ा है,जबकि अन्य अंगों के कैंसर में मरीजों की सरवाइवल दर बेहतर हुई है। चीन और संयुक्त राज्य (अमेरिका) के बाद कैंसर के मरीजों के मामले में भारत तीसरे स्थान पर है। यहां पर मुंह के कैंसर के 90 प्रतिशत मामले तंबाकू की वजह से हैं। इसे रोक कर ही हम तंबाकू के खतरे से मुकाबला कर सकते हैं। हकीकत तो यह है कि अब भारत को दुनियाभर में मुंह के कैंसर की राजधानी के रूप में जाना जाने लगा है।
सर्वाइकल कैंसर के बारे में लैंसेट ग्लोबल हेल्थ के एक अध्ययन में कहा गया है कि वर्ष 2018 में इससे भारत में सबसे अधिक लोगों की मौत हुई है। चार फरवरी को विश्व कैंसर दिवस पर कैंसर विशेषज्ञ बीमारी पर डाटा साझा करते हुए कहते हैं कि यह संख्या लोगों में घबराहट पैदा करने के लिए नहीं है, बल्कि लोगों को जागरूक करने के लिए है कि ऐसे कई कैंसर हैं, जिन्हें जल्दी पहचाना जा सकता है, जो सफल उपचार परिणामों की संभावना को बेहतर बनाने में मदद करता है। साथ ही इस कारण से कैंसर के इलाज पर खर्च भी कम आएगा और इससे रोगियों पर कैंसर का दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) कम पड़ेगा।

क्या है कैंसर
रक्त कैंसर को छोड़ दें तो, कैंसर एक ऐसी बीमारी है जो शरीर के भीतर तब पैदा होती है जब सामान्य कोशिकाओं का एक समूह अनियंत्रित, असामान्य रूप से बढ़कर एक गांठ (ट्यूमर )के रूप में परिवर्तित हो जाता है। यदि इस अनियंत्रित और असामान्य गांठ को अनुपचारित छोड़ दिया जाए है, तो ट्यूमर रक्त के प्रवाह और लसिका तंत्र के माध्यम से, या आसपास के सामान्य ऊतक में या शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है और पाचन, तंत्रिका तथा संचार प्रणालियों को प्रभावित कर सकता है या हार्मोन को छोड़ सकता है जो शरीर के कार्य को प्रभावित कर सकता है।
40 प्रतिशत कैंसर तंबाकू के कारण
मुंह के कैंसर के मामलों और इससे होने वाली लोगों की मृत्यु को कम करने के लिए निवारक उपाय किए जाने की आवश्यकता है। विश्व कैंसर दिवस पर बात करते हुए, टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल मुंबई के उप निदेशक डॉ. पंकज चतुर्वेदी ने कहा कि मैं मुंह के कैंसर से हो रही मौतों से बहुत दु:खी हूं। पुरुषों में होने वाले 5 मुख्य कैंसर ओरल केविटि, फेफड़े, गला, खाने की नली का कैंसर शामिल है। ये सारे कैंसर तंबाकू के कारण होते है। खासतौर पर भारत में होने वाले इन कैंसर में 40 प्रतिशत तंबाकू के कारण होता है। इसलिए तंबाकू पर प्रभावी नियंत्रण से इन सभी कैंसर से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है।
डा.चतुर्वेदी ने कहा कि पान मसाला का बड़े पैमाने पर विज्ञापन और उसकी बढ़ती बिक्री और खपत को सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाना अत्यंत जरुरी है। क्योंकि पान मसाला से भी कैंसर होता है।
मुंह और फेफड़ों के कैंसर के कारण 25 प्रतिशत से अधिक पुरूषों की मृत्यु होती है जबकि मुंह और स्तन के कैंसर में 25 प्रतिशत से अधिक महिलाओं की मृत्यु होती है। हम तंबाकू के खतरे को रोककर 90 प्रतिशत मुंह के कैंसर को रोक सकते हैं। "
गले के दर्द, मुंह में लंबे समय तक अल्सर, आवाज में बदलाव और चबाने और निगलने में कठिनाई जैसे लक्षणों से ओरल कैंसर का निदान किया जा सकता है। तंबाकू का सेवन करने वाले लोगों को नियमित रूप से मुंह के कैंसर की आत्म-परीक्षण करने की सलाह दी जाती है। स्वस्थ पीढ़ी ही स्वस्थ भारत बनाएगी। इसके साथ ही उन्होेने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा शराब की नीति पर नियंत्रण वक्त की जरुरत है।
संबंध हेल्थ फाउंडेशन के ट्रस्टी संजय सेठ ने कहा, राज्य सरकारें प्लेज फॉर लाइफ - टोबैको फ्री यूथ कैंपेन’जैसे अभियानों को शुरु करके बड़ी पहल कर रही हैं, जिसका उद्देश्य तंबाकू उत्पादों के अत्यधिक नशे की लत की शुरूआत को रोकना है। सरकारों द्वारा इस तरह के ऐतिहासिक कदमों से आने वाले वर्षों में रोकथाम योग्य कैंसरों में भारी कमी आएगी। "


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