तनाव में बच्चों की रचनात्मकता को प्रोत्साहित करें अभिभावक
| 7/23/2021 3:33:14 PM

Editor :- Mini

एम्स के साइक्रायट्रिक विभाग के प्रोफेसर और केन्द्रीय मेंटल हेल्थ ऑथोरिटी के सदस्य डॉ. राजेश सागर ने बताया कि कोविड महामारी ने बच्चों के स्वास्थ्य को किस तरह प्रभावित किया है, और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का प्रबंधन किस तरह करना चाहिए।

प्रश्न- महामारी ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को किस तरह प्रभावित किया है?

बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होते हैं। किसी भी तरह का तनाव या चिंता उनके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा और दीर्घकालीन प्रभाव छोड़ सकता है। महामारी ने बच्चों की सामान्य दिनचर्या को पूरी तरह बदल दिया है, उनके स्कूल बंद हैं, पढ़ाई अब क्लास की जगह ऑन लाइन हो रहे है, दोस्तों के साथ उनका मिलना जुलना बिल्कुल बंद या सीमित हो गया है। इसके साथ ही ऐसे भी कुछ बच्चे हैं जिन्होंने कोविड संक्रमण के कारण अपने अभिभावक या प्रियजनों को खो दिया है।
यह सभी बातें बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं और भावनात्मक रूप से संतुष्टि देने वाले वातावरण से उनको वंचित कर सकती हैं, जो कि उनके विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

प्रश्न- तनाव से ग्रसित बच्चों का इलाज करने के दौरान आपको किस तरह की चुनौती का सामना करना पड़ा?

बड़ों की तुलना में बच्चे तनाव में होते हैं तो अलग तरह की प्रतिक्रिया देते हैं। कुछ बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं, कुछ आक्रामक हो जाते हैं और कुछ खुद को बिल्कुल अकेला कर लेते हैं। इसलिए बच्चों के मानसिक तनाव की स्थिति को समझना मुश्किल होता है। हम जो चीज समझ सकते हैं वह यह है कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और भावनाओं पर उसके आसपास के वातावरण का असर पड़ता है। कभी कभी बच्चे इस तरह की स्थिति को मन में काफी गहराई के साथ आत्मसात कर लेते हैं,अपने प्रियजन को खो देना, घर का मायूस माहौल डर और भय उनके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। बहुत बार बच्चे डर, भय या चिंता को व्यक्त कर पाते में सक्षम नहीं होते हैं। ऐसे समय में बढ़ों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह बच्चों के व्यवहार पर नजर रखें, वर्तमान की गंभीर स्थिति में यह बहुत जरूरी है कि अभिभावक बच्चों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करें कि वह अपनी भावनाओं को जरूरी प्रदर्शित करें, अपने विचार माता पिता के साथ साक्षा करें विभिन्न स्थितियों के बारे में बच्चे क्या सोचते हैं यह भी जरूर बताएं। बच्चों को ऐसा वातावरण देना होगा जिसमें वह अपने बात कहने से हिचके नहीं, यदि वह बात करने के लिए किसी तरह का दवाब महसूस नहीं करते हैं तो वह आसानी से अपनी बात रख सकते हैं। इसके साथ बच्चों को उनकी पसंदीदा शौक जैसे पेटिंग बनाना, फेस पेटिंग, स्टोरी टेलिंग आदि में भी व्यस्त करना होगा। कोविड का बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर किस तरह प्रभाव पड़ा इस विषय को हम केवल एक प्रश्न के माध्यम से नहीं समझ सकते। माता पिता के अलावा बच्चों की देखभाल करने वाले केयरगिवर को भी को भी बच्चों से बात करते हुए सौम्यता से बात करनी होगी, उन्हें शायद नहीं पता होगा कि बच्चे मन ही मन किस तरह के तनाव से गुजर रहे हैं। इसलिए बच्चों को समझने के लिए यह जरूरी है कि रचनात्मकता के जरिए वह खुद को प्रदर्शित करें, इससे भी जरूरी यह है कि बच्चों के साथ संक्रमण और कोविड से होने वाली मृत्यु आदि विषयों पर भी खुलकर बात की जाए।

प्रश्न- एक से पांच साल की उम्र बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास में महत्वपूर्ण आयु मानी जाती है, जिन बच्चों की यह उम्र कोविड काल या महामारी में गुजरी उनके विकास पर इसका किस तरह का प्रभाव पड़ेगा या नकारात्मक असर को किस तरह कम किया जा सकता?

उत्तर- शुरूआत के पांच साल बच्चों के विकास के लिए बेहद अहम होते हैं, वर्तमान मे हालात में जिसमें सकारात्मकता की कमी है, सामाजिक दूरी लंबे समय से बनी हुई और हालात अनिश्चित हैं, यह उनके मानसिक तनाव में विपरित प्रभाव डालेगी। यद्यपि हम बच्चों को संक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए हर तरह का प्रयास करते हैं, बावजूद इसके हमें बेहतर माहौल पर भी ध्यान देना होगा, जहां हम बच्चों को कई तरह की गतिविधियों में शामिल करा सकें। यही नहीं यदि पढ़ाई ऑनलाइन भी कराई जा रही है तो उसे रोचक बनाया जा सकता है। मुझे लगता है कि शिक्षाविदों को इस सुझाव पर विचार करना चाहिए कि किस तरह ऑनलाइन शिक्षा को अधिक रोचक और गतिविधियों भरा बनाया जा सकता है, इस तरीके से हम बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर महामारी के प्रभाव को कुछ कम करने में सफल होगें।

प्रश्न- बड़े बच्चों को भी अपनी शिक्षा और कैरियर की चिंता है, शैक्षणिक सत्र और परिक्षाएं टाली जा रही हैं, इस आयु वर्ग के बच्चों के लिए आपका कोई सुझाव?

उत्तर- बड़े बच्चों का अनिश्चित महसूस करना स्वाभाविक है,कोविड ने इस बच्चों की शिक्षा और कैरियर को प्रभावित किया है। इस स्थिति में केयर गिवर, माता पिता और अध्यापकों की भूमिका अधिक अहम हो जाती है, उन्हें यह बताना होगा कि अनिश्चित वातवरण में कुछ भी कर पाना उनके हाथ में नहीं है, और वह अकेले नहीं है जो इस स्थिति का सामना कर रहे हैं, महामारी क्योंकि वैश्विक स्तर पर फैली है इसलिए हर देश के हर बच्चें के सामने इसी तरह की दुविधा की परिस्थिति है। अभिभावक इस सच्चाई को खुद भी स्वीकार करें और बच्चों को भी इससे अवगत कराएं। इस बारे में शिक्षा बोर्ड भी परीक्षाएं कराने में काफी लचीला व्यवहार अपना रहे हैं, मुझे ऐसा लगता है कि जल्द ही हम ऐसी स्थिति में होगें जबकि वायरस का प्रभाव बच्चों की शिक्षा और कैरियर पर नहीं पड़ेगा।

प्रश्न- महामारी में पैरंटिंग पर अधिक ध्यान दिया गया है, आप अभिभावकों को किस तरह का सुझाव देना चाहते हैं?

उत्तर- कोविड की वजह से प्रोफेशल और व्यक्तिगत लाइफ लगभग एक जैसी हो गई है, लंबे समय तक घर से बैठकर काम करने और घर के साथ ही बच्चों की शिक्षा संबंधी काउंसलिंग करना आदि सब कुछ काफी चुनौतीपूर्ण है। लगभग सभी उम्र के बच्चों की जरूरतें अलग अलग होती हैं, उन्हें समय चाहिए, संसाधन चाहिए, माता पिता का अटेंशन चाहिए और खुशनुमा माहौल चाहिए, घर में तनाव का माहौल मानसिक तनाव को बढ़ा सकता है, जबकि खुशनुमा माहौला तनाव को दूर करने में सहायक हो सकता है। बच्चे तनावमुक्त रहें इसलिए यह जरूरी है कि माता पिता खुद भी तनावमुक्त रहें, बच्चों के तनाव को समझने से लेकर उसे दूर करने की कोशिश माता पिता तब ही कर पाएगें जब वह खुद तनाव में नहीं होगें। उन्हें घर पर काम करने की और बच्चें के साथ क्वालिटी टाइम देने की समय सीमा तय करनी होगी, यदि काफी प्रयास के बाद भी घर पर तनाव का माहौल ठीक नहीं हो रहा तो चिकित्सक, दोस्त या फिर शुभचिंतकों की सहायता ली जा सकती है।


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