केंद्र सरकार ने तीन जून को एक एक्सपर्ट कमेटी की सिफारिश पर भारत में 14 फिक्स्ड डोज कांबिनेशन (एफडीसी) दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके लिए दवा एवं कॉस्मैटिक्स नियमों में बदलाव किया जाएगा। विशेषज्ञों की टीम इस बात का निर्णय लेगी कि किसी भी खास दवा को चिकित्सक की पर्ची से ओटीसी श्रेणी (ओवर द काउंटर) में तब डाला जा सकता है जब औषधि नियंत्रक को लगेगा कि उस दवा के सेवन में जोखिम कम है। दवा से किसी भी समय ज्यादा जोखिम की बात सामने आती है तो नियंत्रक उसे ओटीसी से हटा भी सकता है।
डीजीसीआई के इस फैसले के बाद लोगों की जुबान पर चढ़ी कुछ ओटीसी दवाएं जैसे कि पैरासीटामोल, निमेसुलाइड या ऐसी ही कई अन्य खांसी, बुखार, पेटदर्द, साधारण संक्रमण, पेचिश या फिर सिरदर्द होने पर लोग चिकित्सक की बिना सलाह पर खुद जाकर काउंटर से दवाएं ले लेते हैं, लोगों के बीच प्रचलित ऐसी दवाएं, जिन्हें लेने के लिए चिकित्सक की पर्ची की जरूरत नहीं होती उन्हें ओवर द काउंटर या ओटीसी दवाएं कहा जाता है। लंबे समय से ओटीसी दवाओं की वजह से लोगों में दवाओं का रेशनल या अत्यधिक प्रयोग भी देखा जा रहा है। इन दवाओं को अमूमन फार्मासिस्ट या फिर दवा विक्रेता खुद ही दे देता है, जिसके लिए किसी अस्पताल के पर्चे की भी जरूरत नहीं होती है। अहम यह है कि भारत में ओटीसी दवाओं की बिक्री के लिए किसी तरह के दिशा निर्देश नहीं बनाए गए हैं।
भारत सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति ने पिछले साल एक अप्रैल को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी, इस बावत स्वास्थ्य मंत्राय द्वारा बजट अधिसूचना में कहा गया है, इसलिए जनहित में ड्रग्स एंड कास्मेटिक एक्ट 1940 की धारा 26 ए के तहत इन एफडीसी के निर्माण, बिक्री या वितरण पर रोक लगाना आवश्यक है। एफडीसी ऐसी दवाएं हैं जिसमें एक या एक से अधिक सक्रिय दवा सामग्री होती है, और इसका प्रयोग किसी विशेष बीमारी के संकेत के लिए किया जाता है। ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट और उसके नियमों की अनुसूची के में घरेलू उपचार जैसे पैरासिटामोल, पैराफिन, नीलगिरी का तेल, टिंचर आयोडीन खांसी और सर्दी के उपचार के लिए विभिन्न सूत्र शामिल हैं और संभावित ओटीसी दवाएं हैं। वर्तमान में गैर-दवा-लाइसेंस वाले स्टोर (जैसे, गैर-फार्मासिस्ट) कुछ अन्य शर्तों के अधीन गांवों में डी और सी नियमों की अनुसूची के में घरेलू उपचार के रूप में वर्गीकृत कर कुछ दवाएं बेच सकते हैं।