कमर में बंधी बेल्ट रखेगी शुगर पर नजर
| 4/3/2017 10:04:17 AM

Editor :- Rishi

डायबिटिज के मरीजों को शुगर जांचने के लिए अब बार-बार शरीर से खून नहीं निकालना पड़ेगा। कमर में बंधी बेल्ट ही इस काम के लिए काफी होगी। दरअसल बेल्ट का प्रयोग सेंसर युक्त डिवाइस के साथ किया जाएगा, जो दिन भर में ग्लूकोज के स्तर में आने वाले बदलाव की सूचना दर्ज करेगी। सेंसर में दर्ज शुगर की मात्रा को कंप्यूटर पर फीड पर उसकी रिपोर्ट भी निकाली जा सकेगी। नेशनल डायबिटिज ओबेसिटी एंड कोलेस्ट्राल फाउंडेशन ने सेंसर युक्त शुगर जांच का 1000 से अधिक लोगों पर सफल अध्ययन किया है।
एनडॉक के अध्यक्ष डॉ. अनूप मिश्रा ने बताया ने कि डायबिटिज के मरीजों में फास्टिंग और पीपी के आधार पर ही दवाओं का निर्धारण किया जाता है, जबकि दिन में कई बार रक्त में शुगर का उतार चढ़ाव होता है। ऐसे में मरीजों को दी जाने वाली दवा के सही प्रयोग पर संदेह हो सकता है। बेल्ट युक्त डिवाइस से तीन दिन तक लगातार 288 समय की शुगर जांच की जा सकती है। जिससे एक अनुमान लगाया जा सकता है कि किस समय मरीज को शुगर स्तर कम या किस समय ज्यादा हो सकता है। डॉ. मिश्रा कहते हैं कि टाइप वन डायबिटिज में जबकि शुगर का स्तर कम होने की अधिक संभावना रहती है, मरीज को सही मॉनिटरिंग जरूरी मानी गई है। जिसका सीधा दिल पर असर पड़ता है। फोर्टिस अस्पताल के
इंडोक्रायनोलॉजिस्ट डॉ. एसके वांगनूं ने बताया कि डायबिटिज के मरीजों में एक्यू चेक की अपेक्षा सीजीएमएस (कांटिन्यूअस ग्लूकोज मॉनिटरिंग सिस्टम) के जरिए शुगर का स्तर अधिक नियंत्रित देखा गया।

कैसे काम करती है बेल्ड
दो इंच के सेंसर युक्त डिवाइस को कैथेडर के जरिए पेट के हिस्से की त्वचा में लगाया जाता है, मॉनिटर मशीन को बेल्ट के माध्यम से मरीज को पहनाया जाता है। तीन दिन तक अपने आप सेंसर युक्त बेल्ड रक्त में शुगर के परिवर्तन की सूचना दर्ज करती है। चिप के जरिए इस दौरान ली गई मॉनिटरिंग को कंप्यूटर के जरिए पढ़ा जा सकता है। मरीज को खेलने, कूदने या फिर अन्य किसी चीज के लिए प्रतिबंधित नहीं किया जाता, शारीरिक गतिविधि शुगर स्तर को परिवर्तित करती रहती है। डिवाइस के इस्तेमाल का खर्च 4000 रुपए बताया गया है।

क्या हैं फायदे
-पारंपरिक एक्यू चेक में मरीज को फिंगर प्रिक के जरिए खून से शुगर देखी जाती है।
-इसमें केवल फास्टिंग खाने से पहले व पीपी खाने के बाद की ही शुगर जांच हो पाती है।
-जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि साधारण मौसम बदलने पर भी शुगर का स्तर बदलता है।
-हाइपोग्लीसिमिक यानि कम शुगर होने पर मरीज को पता ही नहीं चलता, जिसमें एक घंटे के भीतर मृत्यु भी हो सकती है।


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