आपदाओं ने भारतीयों के मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत किया

नई दिल्ली
द्दितीय विश्व युद्ध हो, गुजरात के कच्छ का भूकंप या फिर कोविड काल, हर आपदा के बाद भारतीयों ने अधिक मजबूत स्थिति के साथ वापसी की है। कोविड काल के बाद की मानसिक समस्याओं को इस संदर्भ में ही देखा जाना चाहिए, भारतीयों का परिवेश उन्हें चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार करता है। बात की जाएं मानसिक स्वास्थ्य बीमारियों (Mental Health Problems ) की तो भारत की स्थिति पाश्चात्य देशों से कहीं बेहतर है जहां पचास प्रतिशत आबादी तनाव दूर करने के लिए दवा का प्रयोग करते हैं।
उपरोक्त बातें इंस्टीट्यूट ऑफ ह्ययुमन बिहेव्यिर एंड एलायड साइंस (Institute of Human Behavior and allied Science ) के पूर्व निदेशक और मनोचिकित्सक डॉ. एनजी देसाई ने इंडियन वुमेन प्रेस कॉप (Indian Women Press Corp) में आयोजित एक प्रेस वार्ता में कहीं। कामकाजी महिलाओं में कोविड (Post COVID19 Era) के बाद की मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं विषय पर आयोजित वार्ता में डॉ. देसाई ने कहा कि मानसिक रोग के प्रारंभिक चरण को बारीकि से समझना बहुत जरूरी है कहीं ऐसा न हो कि हम तनाव या मानसिक रोग का इतना हव्वा बना दें कि अमेरिका जैसे भारत में भी लोगों की तनाव की दवाओं पर निर्भरता बढ़ जाएं, कुछ विशेष तरह के मानसिक रोग में ही मरीजों को अस्पताल में भर्ती करने या दवा लेने की जरूरत होती है। जबकि एक मजबूत सामाजिक और पारिवारिक ढांचा मानसिक रोग की गंभीर अवस्था से बचा सकता है। डॉ. देसाई ने कहा कि अब हम मानसिक रोग की बात करते हैं तो हम तीन तरह के सपोर्ट पर अधिक ध्यान देते हैं पहला व्यक्ति के परिवार का दूसरा पड़ोसी या रिश्तेदार तीसरा सपोर्ट ऑफियल सपोर्ट कहलता है जिसमें पुलिस, हेल्पलाइन सेंटर या फिर काउंसलर (Counsellor ) को शामिल किया जाता है। एक विशेषज्ञ के तौर पर मैं यह मानता हूं कि हमें प्राथमिक सपोर्ट या फिर पीयर गु्रप के सहयोग को मजबूत करने की जरूरत है, इसके लिए परिवार के सदस्यों को एक दूसरे सदस्य के व्यवहार आदत में बदलाव या छोटी छोटी बातों का आकलन करना होगा, पाश्चात्य देशों की तरह अब हमारे या भी एकल परिवार का चलन बढ़ गया है इस वजह से भी मानसिक तनाव ने हमारे बीच में पैंठ जमा ली है, जबकि पहले पारिवारिक परिवेश हमारे मूल्यों को इतना मजबूत बना देता जिससे तनाव महसूस ही नहीं होता है। डॉ. देसाई ने कहा कि निश्चित रूप से हमें पश्चिमी देशों से बहुत कुछ सीखना चाहिए लेकिन हमारी मानसिक स्थिति विदेशियों से अधिक मजबूत है यह हम सभी को स्वीकार करना होगा इसकी कई वजहें हो सकती हैं। डॉ. देसाई ने बताया कि इहबास में सबसे पहले मानसिक स्वास्थ्य को लेकर हेल्पलाइन शुरू की गई लेकिन उस पर मानसिक तनाव से जुड़ी समस्याओं की कॉल बेहद कम देखी गई। कार्यक्रम का संचालन आईडब्लूपीसी की अध्यक्ष शोभना जैन और उपाध्यक्ष सिमरन सोढ़ी ने किया।

पोषण की कमी भी तनाव की वजह

डॉ. देसाई ने कहा कि तनाव की विभिन्न वजहों को जानने की क्रम में हमें पोषण (Nutrition) को भी जोड़कर देखना चाहिए, हमने मानसिक रोग के शिकार अधिकांश मरीजों में पोषण की कमी देखी। हमारे पारंपरिक खानपान को पोषण युक्त आहार माना जाता है जो हमें एनीमिया या खून की कमी सहित कई बीमारियों से निजात दे सकता है। इसलिए किसी भी मानसिक रोगी का एसिसमेंट करते हुए हमें उसके स्वास्थ्य का भी मूल्यांकन करना चाहिए और एक अच्छा विशेषज्ञ पहले उसे सभी पोषण तत्व युक्त आहार का सेवन करने की सलाह देगा, जिससे मरीज को तनाव की स्थिति से बाहर लाया जा सकता है। कुल मिलाकर मानसिक रोगियों की केवल दवाओं पर निर्भरता न हों वह कोई शौक या अपने पसंद की चीजें कर भी तनाव को मात दे सकते हैं। लेकिन एक कुशल मनोचिकित्सक के संपर्क में अवश्य रहें।

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