एम्स के डॉक्टरों ने सिर से जुड़े जग्गा और कालिया को किया अलग

नई दिल्ली: एम्स ने आखिरकार वह कर दिखाया, जो अब तक देश में इससे पहले कभी नहीं हुआ था। सिर से जुड़े दोनों बच्चे को अलग करने में डॉक्टरों ने सफलता हासिल कर ली है। जन्म के ढाई साल बाद सिर से जुड़े जग्गा और कालिया अब अलग अलग हो गया है। एम्स के डॉक्टरों ने 16 घंटे की मैराथन सर्जरी के बाद दोनों बच्चों को अगल करने में कामयाब हुए हैं। एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि सर्जरी सफल हो गई है, लेकिन अभी बच्चा खतरे से बाहर नहीं है। पोस्ट सर्जरी काफी दिक्कतें होती है, एक को हार्ट में दिक्कत है तो दूसरे को किडनी में। इतनी लंबी सर्जरी के बाद अभी दोनों एनेस्थीसिया के इफेक्ट से बाहर आ रहे हैं।

यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉक्टर ए के महामात्रा ने बताया कि शुरु में जगिया बेहतर था। लेकिन बलिया में किडनी की दिक्कतें थीं और उसे दौरे पड़ते थे। उन्होंने कहा कि आपस में जुड़े होने की वजह से बलिया को दी जाने वाली दवा जगिया में जा रहा था, इसे ट्वीन टू ट्वीन ट्रांसफ्यूजन कहा जाता है। बलिया को दिक्कत थी तो उस पर दवा का सही असर हो रहा था, लेकिन जगिया को किडनी की कोई दिक्कत नहीं थी, इसलिए उसमें इसका बुरा इफेक्ट होने का खतरा था। अब हुआ यह कि जगिया को हार्ट की दिक्कत होने लगी है। जबकि शुरू से जगिया का वजन, बलिया की तुलना में अच्छा था। जगिया में इन्फेक्शन नहीं था। हमें लगता था कि जगिया बेहतर है, लेकिन अभी दोनों एक सामान है, कौन बेहतर है कहा नहीं जा सकता है।
र्जरी के बाद खोपड़ी को ढकने के लिए स्कीन की जरूरत थी, इसलिए पहली सर्जरी के बाद प्लास्टिक एंड रीकंस्ट्रक्टिव सर्जन डॉक्टर मनीष सिंघल ने स्कीन को बढ़ाने के लिए एक्सपेंडर यूज किया। डॉक्टर मनीष ने बताया कि स्कीन बढ़ाया जा चुका था, लेकिन 16 घंटे की सर्जरी थी, इसे अगर छोड़ दिया जाता तो यह फिर सिकुड़ जाता। इसलिए नए स्कीन को स्टोर कर लिया गया। इसके बाद सिर की हड्डी काट कर उसे सेपरेट किया। फिर उसे स्टीच कर दिया। इसके बाद दोनों बच्चे को पीछे से पलट कर बोन काटा गया और खोपड़ी को अगल करने की सर्जरी शुरू की गई। लगभग सात घंटे की सर्जरी में खोपड़ी को काट कर अलग कर लिया गया। अलग होने के बाद दोनों को अलग अलग ऑपरेशन टेबल पर लिया गया, जो अब तक एक ही टेबल पर था। इसके बाद ब्लीडिंग को रोकने का काम किया गया। जैसे ब्लीडिंग कंट्रोल हुआ प्लास्टिक सर्जन की टीम ने स्कीन ग्राफ्ट का काम शुरू किया। जग्गा की खोपड़ी को कवर करने के लिए सिर पर जो स्कीन बढ़ाया गया था उसे यूज किया गया, जबकि बलिया में बैक और थाई से भी स्कीन लिया गया।

वीनस था चैलेंज: डॉक्टर महापात्रा ने कहा कि वीनस नली दोनों बच्चों में कामन थी। बिना इसे अगल किए सर्जरी संभव नहीं थी। इसलिए पहली सर्जरी जो 29 अगस्त को की गई थी, उसके लिए जापान के एक्सपर्ट को बुलाया गया था। इसमें देश में पहली बार वीनस ग्राफ्ट डाल कर प्रोसीजर पूरा किया। अब एक के पास पहले वाला वीनस था और दूसरे के पास ग्राफ्ट वाला वीनस मिल गया। चूंकि यह काफी पतली नस होती है, इसलिए इस सर्जरी में मदद के लिए जापान के एक्सपर्ट को बुलाया गया था। वीनस ग्राफ्ट बनने के बाद दोनों बच्चे को अलग करने की सर्जरी एम्स के न्यूरोसर्जन डॉक्टर ए के महापात्रा और डॉक्टर दीपक गुप्ता की अगुवाई में की।

डॉक्टर के अनुसार सिर से जुड़ा जुड़वां बच्चा काफी रेयर होता है। 25 लाख में से एक ऐसा केस देखा जाता है। ऐसे 50 पर्सेंट बच्चे गर्भ में मर जाते हैं। बाकी बचे 50 पर्सेंट का जन्म होता है, जिसमें से 10 पर्सेंट बच्चे जन्म के एक महीने के अंदर मर जाते हैं। इसके बाद बचे 40 पर्सेंट में से 20 पर्सेंट की सर्जरी हो पाती है। सर्जरी के बाद केवल 25 पर्सेंट सक्सेस रेट है। दुनिया भर में केवल 50 ही ऐसी सर्जरी हुईं हैं। इसमें केवल एक ही सर्जरी के बाद 20 साल तक कोई जिंदा रहा है। देश में अब तक सिर से जुड़े बच्चे की सर्जरी नहीं हुई है। ऐसे दो मामले पहले से हैं, जिसमें से एक ट्वीन हैदराबाद में है, जो गर्ल्स हैं। ऐसा ही एक ट्वीन पटना में भी जिंदा है।

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