चिकित्सकों की सुरक्षा के प्रश्न विषय गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद

नई दिल्ली ,
चिकित्सकों की सुरक्षा के प्रश्न विषय गांधी शांति प्रतिष्ठान में आयोजित राष्ट्रीय परिसंवाद में वक्ताओं ने एक स्वर से कहा कि किसी भी सभ्य समाज के लिए चिकित्सकों के साथ हो रही हिंसा चिंतनीय है। प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना के सहयोग से स्वस्थ भारत न्यास एवं बिहार मेडिकल फोरम द्वारा आयोजित इस राष्ट्रीय परिसंवाद में दिल्ली के वरिष्ठ चिकित्सकों ने अपनी बात रखी। वरिष्ठ न्यूरो सर्जन डॉ. संजीव कुमार, वरिष्ठ ऑन्कोलोजिस्ट डॉ. सुशील कुमार, बिहार मेडिकल फोरम के सचिव डॉ. राजेश पार्थ सारथी, वरिष्ठ होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ. पंकज अग्रवाल, सिंपैथी के निदेशक डॉ. आर.कांत, आइएमए व डीएमए सदस्या डॉ. ममता ठाकुर, डॉ. मनीष कुमार, फोर्डा के अध्यक्ष डॉ. सुमेध संदनशिव, सहित तमाम चिकित्सकों ने एक स्वर से कहा कि कोई भी चिकित्सक यही चाहता है कि उसका मरीज हर हाल में ठीक हो। ऐसे में कुछ लोगों द्वारा नकारात्मकता को बढ़ावा देना और चिकित्सकों को मानसिक रूप से परेशान करना न्यायोचित नहीं है।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में वरिष्ठ स्वास्थ्य पत्रकार धनंजय कुमार ने कहा कि जिस समय पूरा देश चिकित्सकों की कमी से जूझ रहा है वैसे समय में चिकित्सकों के साथ दोस्ताना व्यवहार करने की बजाय नकारात्मक व्यवहार समाज के लिए ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि इस दिशा में सरकार को भी मजबूत कदम उठाने चाहिए।
स्वस्थ भारत न्यास के चेयरमैन आशुतोष कुमार सिंह ने कहा कि चिकित्सक इस देश के स्वास्थ्य व्यवस्था की बड़ी पूंजी हैं। हमारी धरोहर हैं। जितना सादगी के साथ हम उनका उपयोग करेंगे उतना ही बेहतर परिणाम वो देने की स्थिति में रहेंगे।
बिहार मेडिकल एसोसिएशन के सचिव एवं वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. राजेश पार्थ सारथी ने कहा कि चिकित्सक अपने काम में लगा रहता है। उसके पास इतना भी समय नहीं होता कि वह बार-बार अपने पक्ष में सफाई देता रहे। इसके कारण चिकित्सकों का पक्ष बहुत कम सामने आ पाता है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से जज के फैसले का सम्मान होता है और उसके खिलाफ बोलने वालों पर कंटेप्ट ऑफ कोर्ट का मामला चलता है, सजा होती है। इसके पीछे का तर्क यही है कि जज की कुर्सी पर बैठा आदमी न्याय कर रहा है, दो पक्षों को सुनने के बाद सच को वह सामने रखकर फैसला सुनाता है। अगर उसके फैसले का आप अनादर करते हैं तो आप पूरी व्यवस्था का अनादर कर रहे होते हैं। उसी तरह गर कोई चिकित्सक के साथ मारपीट या हिंसा करता है तो सिर्फ अकेले वह चिकित्सक प्रभावित नहीं होता बल्कि पूरी चिकित्सकीय व्यवस्था प्रभावित होती है। उन्होंने आम लोगों को विश्वास दिलाते हुए कहा कि हमारा सिर्फ कर्म का अधिकार है और हम अपनी ओर से द बेस्ट करते हैं बाकी किसी की जिंदगी एवं मौत पर सिर्फ और सिर्फ ऊपर वाले का ही हाथ है। 400 वर्ष पूर्व आई अंग्रेजी पैथी के इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि किस तरह से शाहजहां की बेटी का इलाज एक अंग्रेज ने किया था और उसकी बेटी ठीक हो गई थी। बदले में उस अंग्रेज चिकित्सक ने फोर्ट विलियंम्स मांग लिया था। यानी उसने एक तरह से साम्राज्य स्थापित करने का अधिकार ही मांग लिया था। और उसके बाद अंग्रेजों को भारत में अपना पैर पसारने में आसानी हो गई। उनका कहना था कि जिस पैथी की नींव ही लाभ कमाने के लिए पड़ी हो उस पैथी से चैरिटी भाव या सेवा भाव की परिकल्पना करेंगे तो हम न्यायोचित परिणाम नहीं प्राप्त कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि गर डॉक्टरों को खुद अपनी सुरक्षा की चिंता करनी पड़ेगी तो फिर वे समाज के स्वास्थ्य की चिंता ठीक से नहीं कर पाएंगे।

फोर्डा के अध्यक्ष डॉ. सुमेध संदनशिव ने चिकित्सकों के प्रति लोगों के मन में अविश्वास भाव को रेखांकित करते हुए कहा कि कोई भी मरीज चिकित्सकों को पीटने के लिए नहीं आता है लेकिन परिस्थियां ऐसी बना दी गई हैं कि लोग उग्र हो जाते हैं। उन्होंने इस स्थिति का जिम्मेदार लैक ऑफ इंफ्रास्ट्रक्चर, लैक ऑफ सर्विस और लैक ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन को देते हुए कहा कि गर सरकार इन बिन्दुओं पर ध्यान दे तो समस्या का समाधान संभव है। उन्होंने कहा कि चिकित्सक भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी एवं अब्दुल कलाम आजाद जैसे महान हस्तियों को भी नहीं बचा पाए। मौत के आगे कोई नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हमें अपनी सुरक्षा के लिए हड़ताल करना पड़ता है लेकिन हम नहीं चाहते हैं कि हड़ताल हो।

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