सर्दियों में बच्चे को निमोनिया से बचाने के लिए रखें सावधानी

जिस देश में 43 मिलीयन लोग निमोनिया से पीड़ित हैं वहां पर इसकी रोकथाम और जांच के बारे में ख़ास कर सर्दियों में जागरूकता फैलाना बेहद आवश्यक है। इसका एक कारण यह भी है कि आम फ्लू, छाती के संक्रमण और लागातार ख़ासी के लक्ष्ण इससे मेल खाते हैं।
निमोनिया असल में बैक्टीरिया, वायरस, फंगस या परजीवी से फेफड़ों में होने वाली एक किस्म की इनफैक्शन होती है, जो फेफड़ों में एक तरल पदार्थ जमा करके खून और ऑक्सीजन के बहाव में रूकावट पैदा करती है। बलगम वाली खांसी, सीने में दर्द, तेज़ बुख़ार और सांसों में तेज़ी निमोनिया के लक्ष्ण हैं। अगर आपको या आपके बच्चे को फ्लू या अत्यधिक ज़ुकाम जैसे लक्ष्ण हैं जो ठीक नहीं हो रहे तो तुरंत डॉक्टर के पास जाकर सीने का एक्सरे करवाएं ताकि निमोनिया होने ना होने का पता लगाया जा सके।
डब्लयूएचओ की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक स्ट्रेपटोकोक्स निमोनिया पांच साल से छोटी उम्र के बच्चों के हस्पताल में भर्ती होने व मृत्यु होने का प्रमुख कारण है। डब्लयूएचओ के आंकड़ों के मुताबिक पांच साल से छोटी उम्र के 1, 20, 000 बच्चों की मौत निमोनिया की वजह से होती है और भारत में हर एक मिनट में एक बच्चे की निमोनिया की वजह से मौत हो जाती है।
आईएमए के प्रेसीडेंट इलेक्ट डॉ के के अग्रवाल ने कहा, “टे बच्चें, नवजातों और प्रिमेच्योर बच्चें जिनकी उम्र 24 से 59 महीने है और फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं हैं, हवा नली तंग है, कमज़ोर पौष्टिकता और रोगप्रतिरोधक प्रणाली वाले बच्चों को निमोनिया होने का ज़्यादा खतरा होता है। अस्वस्थ व अस्वच्छ वातावरण, कुपोषण और स्तनपान की कमी की वजह से निमोनिया से पीड़ित बच्चों की मौत हो सकती है इस बारे में लोगों को जागरूक करना बेहद आवश्यक है। कई बच्चों की जान बचाई जा सकती है और यह डॉक्टरों का फर्ज़ है कि वह नई माओं को अपने बच्चों को स्वस्थ रखने एवं सही समय पर वैक्सीन लगवाने के प्रति शिक्षित करें।“
निमोनिया कई तरीकों से फैल सकता है। वायरस और बैक्टीरीया अक्सर बच्चों के नाक या गले में पाए जाते हैं और अगर वह सांस से अंदर चले जाएं तों फेफड़ों में जा सकते हैं। वह ख़ासीं या छींक की बूंदों से हवा नली के ज़रिए भी फैल सकते हैं। इसके साथ ही जन्म के समय या उसके तुरंत बाद रक्त के ज़रिए भी यह फैल सकता है।
वैक्सीन, उचित पौष्टिक आहार और पर्यावरण की स्वच्छता के ज़रिए निमोनिया रोका जा सकता है। निमोनिया के बैक्टीरिया का इलाज एंटीबायटिक से हो सकता है लेकिन केवल एक तिहाई बच्चों को ही एंटीबायटिक्स मिल पा रहे हैं। इस लिए ज़रूरी है कि सर्दियों में बच्चों को गर्म रखा जाए, धूप लगवाई जाए और खुले हवादार कमरों में रखा जाए। यह भी ज़रूरी है कि उन्हें उचित पोष्टिक आहार और आवश्यक वैक्सीन मिले।
नियूमोकोकल कोंजूगेट वैक्सीन और हायमोफील्स एनफलुएंजा टाईप बी दो प्रमुख वैक्सीन हैं जो निमोनिया से बचाती हैं। लेकिन 70 प्रतिशत बच्चों की महंगी कीमत और जानकारी के अभाव की वजह से यह वैक्सीन लगवाई नहीं जाती। इस लिए सरकार को चाहिए कि वह राष्ट्रीय स्तर पर इस वैक्सीन को बच्चों तक पहुंचाने के लिए योजना बना कर लागू करे ताकि इस बीमारी को कम किया जा सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *