द लिव लव लाफ फाउंडेशन (लिवलवलॉफ) एक चैरिटेबल ट्रस्ट है, इसकी स्थापना 2015 में दीपिका पादुकोण द्वारा की गई थी। इस संगठन का लक्ष्य तनाव,चिंता और अवसाद का अनुभव करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के मन में आशा की किरण जगाना है। एलएलएल के प्रयास मुख्यत: जागरूकता बढ़ाने और किफायती मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाने पर केंद्रित हैं। लोगों में बढ़ते तनाव और मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लिव लव लॉफ फाउंडेशन के चेयरपर्सन डॉ़ श्याम भट से विस्तृत बात हुई। प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
प्रश्न- ग्रामीण भारत में मानसिक स्वास्थय की क्या चुनौतियां हैं? क्या यहां मानसिक बीमारियों को लंबे समय तक नज़रअंदाज़ किया जाता है?
ग्रामीण क्षेत्रों में, मानसिक बीमारियों पर लोगों का ध्यान तभी जाता है जब वह गंभीर स्थिति में पहुंच जाती हैं। वहीं शहरी क्षेत्रों में, समाज के कुछ वर्गों के लोग – उदाहरण के लिए, दफ्तर में काम करने वाले लोग – जब असहज महसूस करते हैं, तब चिकित्सकीय मदद लेते हैं। परंपरागत रूप से, ग्रामीण क्षेत्रों में, मानसिक बीमारियों को भूत बाधा के रूप में भी देखा जाता है, यह सोच अभी भी कुछ ग्रामीण समुदायों में देखी जा सकती है। वहां इस बात की जानकारी अभी भी बहुत कम है कि चिकित्सकीय मदद से इसका इलाज किया जा सकता है। लेकिन अब यह स्थिति बदल रही है और लिवलवलाफ अपने प्रयासों से इस प्रकार की धारणा में बदलाव ला रहा है, साथ ही जमीनी स्तर पर बदलाव लाने में मदद कर रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक लांछन के प्रमुख कारण हो सकते हैं। यही कारण है कि लोग झाड़ फूंक करने वाले ओझाओं के पास जाते हैं। बीमारी से पीड़ित लोग सामाजिक तानों और अपने तथा अपने परिवार को शर्मिंदगी से भी बचाना चाहते हैं। लेकिन, एलएलएल के प्रयासों से पता चला है कि जब वे बेहतर महसूस करेंगे तभी उन्हें बदलाव का अहसास होगा। हमारा ग्रामीण कार्यक्रम 3 A पर केंद्रित है – अवेयरनेस, एक्सेस और अफोर्डेबिलिटी।
प्रश्न- आपके अनुसार भारत में मानसिक बीमारियों के तेजी से बढ़ने की समस्या कितनी गंभीर है? यह बीमारी कितनी तेजी से बढ़ रही है?
द लैंसेट साइकिएट्री के अनुसार, 2017 में, सात में से एक भारतीय अलग-अलग गंभीरता के मानसिक रोगों से पीड़ित था। भारत में 197·3 मिलियन लोग मानसिक रोगों से ग्रसित हैं, जिनमें 45·7 मिलियन अवसाद से जुड़े रोगों और 44·9 मिलियन तनाव से जुड़े रोगों से पीड़ित थे। तनाव का दायरा अनुमान से कहीं अधिक है, कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि 50 प्रतिशत से अधिक कॉर्पोरेट शहरी भारतीय किसी न किसी प्रकार के तनाव से पीड़ित हैं, यह तनाव उनके कामकाज और जीवन की गुणवत्ता पर असर डालता है। भारत में सभी प्रकार के रोगों में मानसिक बीमारियों की हिस्सेदारी 1990 के बाद से लगभग दोगुनी हो गई है।
प्रश्न- वर्तमान में उपचार के लिए किन विकल्पों को अपनाया जा रहा है? क्या उपचार की कोई नए एप्रोच सामने आई है?
मानसिक बीमारियों का इलाज उनकी गंभीरता के आधार पर साइकोथैरेपी की मदद से, दवाओं के साथ, या फिर दवाओं के बिना किया जाता है। इलाज की कुछ नई एप्रोच भी हैं, जिसमें मन और शरीर को एकीकृत करने की जरूरत को लेकर लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया जाता है, इसके साथ ही ध्यान जैसी पारंपरिक प्रथाओं का उपयोग करना भी इसमें शामिल है। इसके अलावा कई नए बायोलॉजिकल इलाज भी हैं, जिनमें ब्रेन स्टिमुलेशन (रिपिटिटिव ट्रांसक्रानियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन), और नए फार्माकोलॉजिकल एजेंट भी शामिल हैं, जिनकी जांच चल रही है। यहां हमें इलाज के बजाय रोकथाम पर जोर देना होगा। इलाज करने की तुलना में इसे रोकना बहुत आसान है। वहीं भारत की बात करें, तो हमारी आबादी बहुत ज्यादा है, इसमें मानसिक बीमारी से प्रभावित लोग भी शामिल हैं और मानसिक बीमारी का इलाज करने के लिए योग्य मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर बहुत ही कम हैं। तनाव, चिंता या अवसाद का आकलन और स्क्रीनिंग करने के लिए किसी भी प्राइमरी केयर फिजिशियन को पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
प्रश्न- मानसिक बीमारियों से निपटने के लिए योग, ध्यान, होम्योपैथी जैसी वैकल्पिक चिकित्सा कितनी प्रभावी हैं?
चिंता और अवसाद के सामान्य उपचार के अलावा योग, ध्यान और कुछ आयुर्वेदिक तरीके भी मददगार हो सकते हैं। ध्यान एक शक्तिशाली और प्रभावी तरीका है जो तनाव को कम करने और हल्की चिंता और अवसाद का इलाज करने में मदद करता है। हालांकि जब कोई व्यक्ति भावनात्मक रूप से अधिक गंभीर स्थिति महसूस कर रहा हो, तो ऐसी स्थिति में मनोवैज्ञानिक की देखरेख में ही ध्यान किया जाना चाहिए। पारंपरिक मनोचिकित्सा में ध्यान को शामिल करना एक अत्यधिक प्रभावी उपचार साबित हुआ है। प्राप्त सबूतों से पता चलता है कि ये तरीके ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम को व्यवस्थित करती हैं और उत्तेजना को कम करती हैं। इसके साथ ही ये लाभ शरीर के साथ-साथ दिमाग की संपूर्ण सेहत को बेहतर बनाते हैं। इन प्राचीन तरीकों की क्षमता का वास्तव में लाभ उठाने और आधुनिक चिकित्सा के साथ जोड़कर इन्हें उपयोग करने के लिए और भी अधिक रिसर्च की जरूरत है।
प्रश्न- इस चुनौती से निपटने में मदद में सरकार (केंद्र और राज्य) की क्या भूमिका हो सकती है? कृपया उदाहरण सहित विवरण प्रदान करें।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में तेजी से बदलाव आ रहा है। एक ओर जहां मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, वहीं अब ज्यादा से ज्यादा लोग चिकित्सकीय मदद मांग रहे हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर तृतीयक संस्थानों तक, हेल्थ केयर के सभी स्तरों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी सेवाओं को मजबूत बनाने पर जोर दिया जा रहा है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2016) और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम (2017) से भी पता चलता है कि किस प्रकार नीतिगत स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों को पहचानने और उन पर ध्यान के मामले में काफी प्रगति हुई है। हालांकि, जागरूकता बढ़ने के साथ ही, अयोग्य कौन्सेलेर्स भी खुद को स्वयं नियुक्त कर रहे हैं| इसकी संख्या में जोरदार इजाफा हुआ है। देश में अच्छी गुणवत्ता वाली मानसिक चिकित्सा उपलब्ध हो, इसके लिए इन्हें नियंत्रित किया जाना बहुत ही जरूरी है।
प्रश्न- इस चुनौती से निपटने के लिए लिव लव लॉफ फाउंडेशन क्या कदम उठा रहा है, कुछ ताजा उदाहरण भी दीजिए?
द लिव लव लॉफ फाउंडेशन (लाइवलवलाफ) एक चैरिटेबल ट्रस्ट है, जिसकी स्थापना 2015 में फिल्म अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने की थी। इस संगठन का लक्ष्य तनाव,चिंता और अवसाद का अनुभव करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आशा प्रदान करना है। एलएलएल के प्रयास मुख्यत: जागरूकता बढ़ाने और किफायती मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ाने पर केंद्रित हैं।
मानसिक स्वास्थ्य अभियान से जुड़े लोग
एलएलएल के कार्यक्रमों और प्रयासों में अब ग्रामीण सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य, किशोरों के लिए मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा, क्षमता निर्माण, आमलोगों के बीच जागरुकता फैलाना और सामाजिक कलंक को कम करने से जुड़े अभियान जैसे दोबारा पूछो (2016) (मानसिक स्वास्थ्य पर भारत का पहला राष्ट्रव्यापी जन जागरूकता अभियान) और #NotShamed (2018) को शामिल किया गया है। इसके अलावा, LLL द्वारा रिसर्च भी की जा रही है, साथ ही एक निःशुल्क परामर्श हेल्पलाइन को फंड किया जा रहा है। किशोर मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में अब तक 210,000 छात्र और 21,000 शिक्षक शामिल हो चुके हैं। एलएलएल को 2019 में प्रतिष्ठित डॉ. गुइस्लैन “ब्रेकिंग द चेन्स ऑफ स्टिग्मा” ग्लोबल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) ने 2020 में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए हमारी संस्थापक, दीपिका पादुकोण को क्रिस्टल अवार्ड से सम्मानित किया था। 2021 में, हम 20 भारतीय राज्यों के 100 गैर सरकारी संगठनों के पहले समूह में शामिल हुए, जिसे ग्रो फंड की ओर से अनुदान प्राप्त हुआ।
व्यायाम और आहार दूर करता है तनाव
सप्ताह में कम से कम 30 मिनट का व्यायाम हमें मानसिक बीमारियों से सुरक्षित रखता है, साथ ही तनाव और चिंता के खतरे को कम करता है। दूसरा है पर्याप्त नींद। देर से सोने से तनाव और चिंता का खतरा बढ़ जाता है। 7-9 घंटे की नींद लेना और एक ही समय पर सोना और जागना बहुत जरूरी होता है। बेहतर मानसिक सेहत के लिए पोषण भी बहुत महत्वपूर्ण है। यह शरीर के लिए बहुत जरूरी होने के साथ-साथ दिमाग के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। ढेर सारे फलों और सब्जियों वाले आहार का सेवन करना, कम कैलोरी वाला मांसाहारी आहार लेना, चीनी, फास्ट फूड और प्रोसेस्ड कार्बोहाइड्रेट से परहेज करना हमारे लिए बहुत ही उपयोगी है। एक अच्छा आहार न्यूरोट्रांसमीटरों की मदद करके और स्वस्थ बैक्टीरिया को पोषण देकर मानसिक सेहत में सुधार कर सकता है। इसके अलावा अन्य लोगों के साथ हमारा जुड़ाव भी बेहद जरूरी है।