सेहत संवाददाता
हाल के वर्षों में थैलेसीमिया के मरीजों की संख्या में काफी वृद्धि देखी गई है। रक्त विकार की इस आनुवांशिक बीमारी को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। अंतर्राष्ट्रीय थैलेसीमिया दिवस के उपलक्ष्य में इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल एवं थैलेसीमिया इंडिया ने “जीनोमिक्स और बोन मैरो ट्रांसप्लांट से थैलेसीमिया के लिए देखभाल और इलाज में बदलाव“ विषय को लेकर नेशनल सेमिनार का आयोजन किया। जिसमें थैलेसीमिया के इलाज की आधुनिकतम तकनीक जीन थेरेपी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट पर चर्चा की गई।
थैलेसीमिया के मरीजों के लिए अस्थि-मज्जा प्रत्यारोपण या फिर बोन मैरो ट्रांसप्लांट एक प्रमुख विकल्प है, जो थैलेसीमिया के उपचार में मदद कर सकता है। संगोष्ठी में थैलेसीमिया के इलाज के प्रबंधन में नवीनतम शोध और उपचारों पर प्रकाश डाला गया। अस्थि-मज्जा प्रत्यारोपण की चर्चा और जीनोमिक्स के उपयोग का उल्लेख करना वास्तव में ऐसे मरीजों के लिए लाभदायक है। जीनोमिक्स के उपयोग से अधिक व्यक्तिगतकृत चिकित्सा उपाय तैयार कर सकते हैं जिससे निश्चित रूप से रोगियों को सहायता मिलेगी।
क्या है थेलैसीमिया बीमारी
हर साल लगभग 10,000 बच्चे थैलेसीमिया के साथ पैदा होते हैं, यह एक आनुवंशिक विकार है जो शरीर की पर्याप्त लाल रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने की क्षमता को ख़राब कर देता है। इससे 150,000 से अधिक रोगियों का मौजूदा बोझ बढ़ गया है। लाल रक्त कोशिकाएं शरीर के विभिन्न अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए जिम्मेदार होती हैं, जिससे उनका सामान्य कामकाज आवश्यक हो जाता है। भारत में, अधिकांश बच्चे कमी की भरपाई के लिए नियमित रक्त-आधान पर निर्भर रहते हैं। हालाँकि, ट्रांसफ़्यूज़न थेरेपी कुछ जटिलताओं जैसे आयरन अधिभार और गंभीर प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं के साथ आती है, जिसके लिए अतिरिक्त सहायक उपचार की आवश्यकता होती है। उच्च-गुणवत्ता वाले उपचार की अपर्याप्त पहुंच से विभिन्न जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं, जो रोगियों के जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
जीन थेरेपी और बोन मैरो से जागी उम्मीद
सेमिनार के दौरान इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में बोन मैरो ट्रांसप्लांट और सेल्युलर थेरेपी विभाग के निदेशक डॉ. गौरव खरया ने बताया कि उपलब्ध एकमात्र उपचारात्मक विकल्प बोन मैरो ट्रांसप्लांट है। लेकिन वर्तमान में, हर साल 10,000 नए मामलों के बावजूद, करीब 500 बच्चे ही थैलेसीमिया के लिए अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण करवाते हैं। बीएमटी या बोन मैरो ट्रांसप्लांट के प्रयोग से पिछले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण सुधार देखा गया है। आधे-मिलान या हाफ मैच के साथ भी, सफलता की दर 80 प्रतिशत है। कुछ उदाहरण के साथ उन्होंने कहा कि 90 प्रतिशत हासिल करना संभव है। उल्लेखनीय है कि डॉ. खार्या देश में सालाना सबसे अधिक संख्या में बाल चिकित्सा अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण करते हैं।
थैलेसीमिया बाल सेवा योजना को सक्रिय करने की आवश्यकता
थैलेसीमिया इंडिया की सचिव शोभा तुली ने सरकार से थैलेसीमिया स्क्रीनिंग को अनिवार्य करने और मिशन मोड पर रोकथाम कार्यक्रम शुरू करने का आह्वान किया। साथ ही कहा कि थैलेसीमिया रोगियों को सुलभ और निरंतर उपचार विकल्पों के साथ सशक्त बनाना भी बेहद महत्वपूर्ण है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, जनजातीय मामलों का मंत्रालय और कोयला मंत्रालय थैलेसीमिया बाल सेवा योजना (टीबीएसवाई) के माध्यम से 2017 से इन प्रयासों का समर्थन कर रहे हैं, जो वंचित परिवारों को अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण की लागत को पूरा करने में मदद करता है। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन -1 (एनएचएम-1) के निदेशक डॉ. हर्ष मंगला ने विस्तार से इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डाला। नेशनल सेमिनार में कोयला मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव रूपिंदर बराड़ ने कहा कि थैलेसीमिया देखभाल का समर्थन करने की हमारी प्रतिबद्धता हर बच्चे के लिए एक स्वस्थ भविष्य के प्रति हमारे व्यापक मिशन को दर्शाती है।
कार्यक्रम में थैलेसीमिया के खिलाफ लड़ाई में आगे सहयोग और नवाचार की आवश्यकता पर जोर दिया गया, जिसमें डॉ. शिवकुमार पट्टाभिरामन, एमडी, अपोलो हॉस्पिटल्स, दिल्ली डॉ. अनुपम सिब्बल, ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर, अपोलो हॉस्पिटल्स; और डॉ. विनीता श्रीवास्तव, संयुक्त सचिव, जनजातीय कार्य मंत्रालय उपस्थित रहीं।