विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 07 अप्रैल (विश्व स्वास्थ्य दिवस) को इस वर्ष डिप्रेशन के बारे में बात करें को अपना थीम बनाया है विशेषज्ञों के अनुसार डिप्रेशन के कई कारण हो सकते है और इसका प्रभाव भी शरीर पर अलग-अलग पड़ सकता है, इसमें एक कारण इनफर्टिलिटी भी हो सकता है। इस बारे में और अधिक जानकारी देते हुए इंदिरा आईवीएफ हास्पिटल के विशेषज्ञ डा.अरविंद वैद का कहना है कि आजकल हमारे पास ऐसे मरीजों की संख्या में काफी तेजी से इजाफा हो रहा है। उर्वशी उम्र (32 साल) एक मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत युवती कार्य और परिवार के बीच में संमजस बैठाने में डिप्रेशन का शिकार हो गई और पिछले दो साल से वह बेवी प्लालिंग करने के बाद वह प्रेग्नेट नहीं हो पा रही है।
डा.अरविंद वैद के अनुसार जब कोई महिला डिप्रेशन (अवसाद) या लगातार अत्यधिक तनाव के दौर से गुजरती है तो उसकी सामान्य गर्भधारण क्षमता बड़ी आसानी से बाधित हो सकती है। लंबे समय से तनाव का दौर ओवुलेशन (अण्डोत्सर्जन) के लिए जरूरी हार्मोन चक्र को बाधित करता है जिसका मतलब है कि वह महिला या तो ओवुलेशन का चक्र पूरा नहीं कर पाती या यह चक्र बार-बार बदलता रहता है। पुरुषों का अवसाद भी इनफर्टिलिटी का कारण बन सकता है क्योंकि तनाव के कारण किसी पुरुष का स्पर्म काउंट भी कम देखा गया है।
पुरुष और महिलाएं दोनों तनाव और डिप्रेशन के कारण समान रूप से इनफर्टिलिटी के शिकार होते हैं। अवसादग्रस्त महिलाओं में गर्भधारण की संभावना कम हो जाती है और कई बार इलाज भी बीच में ही छोड़ देती हैं जिससे उनके गर्भधारण करने की संभावना कम होती जाती है। इसके अलावा सेक्स जीवन पर भी इसका उतना भी अधिक असर पड़ता है। मूड का ओवुलेशन या एम्ब्रायो इंप्लांटेशन (भ्रूण प्रत्यारोपण) पर भी प्रभाव पड़ सकता है और बहुत ज्यादा तनाव के कारण गर्भाशय नली में सिकुड़न भी आ सकती है या स्पर्म का निर्माण कम हो सकता है।
डिप्रेशन के दौरान हार्मोन लेवल की समस्याएं मस्तिष्क की गतिविधियों में बदलाव के साथ ही एक-दूसरे से जुड़ी रहती हैं। एंडोक्राइन सिस्टम हाइपोथेलेमस में मस्तिष्क के साथ जुड़ा होता है जो नींद, भूख और सेक्स की इच्छा जैसी कई शारीरिक गतिविधियों पर नियंत्रण रखता है। हाइपोथेलेमस भी पीयूष ग्रंथि को संचालित करता है और इससे यह ग्रंथि अन्य ग्रंथियों के हार्मोनल स्राव पर नियंत्रण करता है तथा कुछ ऐसे न्यूरोट्रांसमीटरों का इस्तेमाल करता है जिनका ताल्लुक अवसाद से होता है क्योंकि यही एंडोक्राइन सिस्टम को भी प्रबंधित करता है। इन न्यूरोट्रांसमीटर, सेरोटोनिन, नोरपाइनफ्राइन और डोपामाइन की भूमिका भावनाओं पर काबू पाने, तनाव की प्रतिक्रियाएं देने और नींद, भूख तथा यौन इच्छा की शारीरिक क्रियाओं को संचालित करने में होती है।
डा.अरविंद वैद का कहना है कि उन लक्षणों का डायग्नोज करना सबसे जरूरी होता है जो गर्भधारण में बाधा बनते हैं। यदि आपकी आंखों में आंसू रहते हैं, चीजों को उतना स्पष्ट नहीं देख पाते हैं जितना सामान्य स्थिति में आप देखते हैं, नींद और/या भूख की समस्या है, पहले की तरह इन कार्यों का लुत्फ नहीं उठा रहे हैं और चिड़चिड़ापन महसूस करते हैं तो संभव है कि आप अवसादग्रस्त हैं। अत्यधिक तनावग्रस्त हार्मोन वाली महिलाओं में सामान्य महिलाओं की अपेक्षा गर्भधारण की संभावना कम रहती है।
अवसाद किसी परिस्थिति में कुंठित और कमजोर बना देता है जिससे किसी व्यक्ति के जीवन के वे सभी पहलू प्रभावित होते हैं जिन्हें हम अपने जीवन में बदलाव के नजरिये से देखते हैं और इससे व्यक्तिगत संबंध, पोषण तथा जीवन का आनंद लेने की संपूर्ण क्षमता प्रभावित होती है।
महिलाएं अपने तनाव के स्तर पर काबू पाते हुए निश्चित रूप से गर्भधारण की संभावनाएं बढ़ा सकती हैं। शोध के मुताबिक, जो महिलाएं थेरापी/इलाज या मदद के लिए मित्रों और परिजनों से संपर्क करती हैं, उनमें अवसाद के कारण खुद को अलग-थलग रखने वाली महिलाओं के मुकाबले गर्भधारण की संभावना लगभग दोगुनी हो जाती है।