धूल के कण, प्रदूषण, अगरबत्ती या फिर पालतू पशु का संपर्क आपको छींकने, खांसने या फिर सांस लेने में दिक्कत पैदा करता है तो निश्चित मानिए कि आपक 200 तरह की एलर्जी में से किसी एक एलर्जी के शिकार हो चुके हैं, जिसको नजर अंदाज करना भविष्य में अस्थमा का कारण बन सकता है। दिल्ली की आबादी के 30 प्रतिशत लोग इस परेशानी से जूझ रहे हैं हैं, जो बीते 30 साल में 30 प्रतिशत बढ़ गई है इंडियन स्टडी ऑन एपिडेमोलॉजी ऑफ अस्थमा, रेस्पेरेटरी और क्रानिक ब्रायंकायटिस ने एलर्जी के बढ़ने असर को जानने के लिए दिल्ली एनसीआर में 12 केन्द्रों पर अध्ययन किया। इसमें नेजल या नाक के जरिए होने वाली एलर्जी और अस्थमा एलर्जी को देखा गया।
नेशनल सेंटर ऑफ रेस्पेरेटरी एलर्जी के चीफ और अध्ययन के प्रमुख डॉ. राजकुमार ने बताया कि एलर्जी के स्तर का पता लगाने के लिए दिल्ली के 918 लोगों में स्किन प्रिक टेस्ट किया गया। जिसमें 548 पुरुष और 370 महिलाएं शामिल थीं। 30 प्रतिशत लोगों में एलर्जी के पहले चरण के शिकार पाए गए, महत्वपूर्ण यह है कि एलर्जी के शिकार 74 प्रतिशत मरीज सही फिजिशियन के पास ही नहीं पहुंचे। शहरी क्षेत्र में रहने वाले उच्च आय वर्ग में एलर्जी का प्रतिशत 9.4, मध्यम आय वर्ग में 7.3 और निम्न आय वर्ग और ग्रामीण क्षेत्र में इसका प्रतिशत 3.9 देखा गया। डॉ. राजकुमार ने बताया कि नेजल एलर्जी के शिकार 15 प्रतिशत मरीजों को अस्थमा होने की संभावना 90 प्रतिशत बढ़ जाती है। यदि वह सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा प्रदूषण या एलर्जी बढ़ाने वाले तत्व जैसे पोलेन डस्ट, निर्माणाधीन साइट या फिर पालतू पशु के संपर्क में रहते हैं तो खतरा अधिक बढ़ जाता है। वल्लभाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए अध्ययन में इस बात का खुलासा किया गया है। इससे पहले संस्थान ने वर्ष 1986 में एलर्जी और इससे होने वाली परेशानी पर शोध किया था।
कैसे होती है एलर्जी की जांच
स्किन सेंसिविटी एयरोएलर्जिन इन इंडिया के तहत किए गए अध्ययन में 150 से 200 तरह की एलर्जी को देखी गई। जिसमें से 80 प्रमुख तरह की एलर्जी के एंटिजन की जांच पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट में होती है। केवल खुशबू या बदबू से होने वाली एलर्जी की जांच का एंटीजन फिलहाल नहीं खोजा गया है, जबकि बच्चों की फूड एलर्जी की जांच के लिए खून के आईजीई एंटीजन से भी पता लगाया जा सकता है। स्किन प्रिक टेस्ट से भी एलर्जी के एंटीजन से एलर्जी का पता लगाया जा सकता है। मेट्रो शहर में प्रमुख 20 तरह की एलर्जी के एंटीजन ही काम में लाए जाते हैं।