नई दिल्ली,
दिल्ली की भीड़भाड़ वाली संकरी जगहों पर मंदिर या गुरूद्वारे में आपको ऐसे कई बेघर लोग मिल जाएगें, जिसके पास खुद को ठंड से बचाने के लिए गरम कपड़े भी नहीं होते, इनमें से अधिकांश मानसिक रोगी भी होते हैं। एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में बीस हजार और देशभर में एक लाख बेघर मानसिक रोगी हैं, जिसकी सेहत और पुर्नवास के लिए कभी कोशिश नहीं की जाती। एक हकीकत यह भी है 80 प्रतिशत ऐसे लोगों से परिजन भी नाता तोड़ लेते हैं। पुलिस या स्थानीय प्रशासन की मदद से इन्हें आश्रय स्थल तक पहुंचाया जाता है। इस संदर्भ में कई स्वयं सेवी संगठन बेहतर काम कर रहे हैं।
ऐसे बेघर लोगों को आश्रय देने और उनके अधिकारों पर चर्चा करने के लिए पहली बार राजधानी में राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के संयोजन और इंस्टीट्यूट ऑफ एलायड साइंसेस के प्रमुख डॉ. एनजी देसाई ने कहा कि आईसीएमआर द्वारा 2009 में कराए गए एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली की दस प्रतिशत आबादी मानसिक रोग की शिकार हैं। जिसमें सीजोफ्रेनिया, डिप्रेशन और एंजाइटी प्रमुख है। देखा गया है कि मानसिक रोगियों को जिस तरह के पारिवारिक सहयोग की जरूरत होती है वह उन्हें नहीं मिल पाती, यही वजह है कि अधिकार मानिसक रोगियों को विक्षिप्त हालत में पुलिस स्टेशन पहुंचाया जाता है। बेघर मानसिक रोगियों के मानवाधिकार के लिए नालसा नेशनल लीगल सर्विस अर्थारिटी सहित कई संस्थाएं काम कर रही हैं।
बाघा बॉर्डर पर अपनों को नहीं लेने पहुंचे लोग
पाकिस्तानी एजेंसी द्वारा बंधक बनाए गए 72 लोगों को वर्ष 2007 में भारत सरकार और एजेंसियों की मदद से मुक्त कराया गया, लेकिन 22 लोगों को उनके परिजन सूचना देने के बाद भी लेने नहीं पहुंचे। अमृतसर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रमुख डॉ. बीएल गोयल ने कहा कि परिजनों ने उन्हें पहचानने से मना कर दिया गया। इसके बाद सभी मानसिक बेघर 22 लोगों को पिंजरवाला भेजा गया। आंकड़ों के अनुसार पंजाब में तीन हजार मानसिक रोगी हैं। बेघर महिला मानसिक रोगियों से बहुत बार बलात्कार किया जाता है।