नई दिल्ली,
वेंटिलेटर के बिना भी अब ऐसे मरीज सांस ले सकेगें जो गंभीर बीमारी या दुर्घटना के शिकार हैं, इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर ने इस बावत डायफ्रेज्मिेटिक पेसिंग कार्यक्रम शुरू किया है, यह एक तरह का सांस लेने का पेसमेकर हैं। भारत में इसे लाने का श्रेय अमेरिका के जाने माने गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जन डॉ. रेमंड पी आंडर्स को जाता है, जिनके साथ इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर ने हाथ मिलाया है। इस पेसमेकर की मदद से लकवा या स्पाइनल इंजरी के शिकार मरीज बिना वेंटिलेटर के भी सांस ले सकेंगे।
डॉ. आंडर्स ने बताया कि चोट या न्यूरोमॉस्कुलर बीमारी के चलते कई बार मरीज आंशिक या पूर्ण रूप से लकवा या पैरालाइज्ड हो जाते हैं, इसके लिए उन्हें मकेनिकल वेंटिलेटर की जरूरत होती है, ऐसे मरीजों के लिए डायफ्रैज्मिेटिक पेसिंग काफी कारगर है, यह एक तरह का डिवाइस है, जिसके कुछ तार त्वचा के अंदर होते हैं जबकि बाकी का हिस्सा मरीज को साथ रखना होता है, इस पूरी प्रक्रिया को मरीज के अंदर फिक्स करने में दस से पन्द्रह मिनट का समय लगता है। डॉ. आंडर्स ने सबसे पहले इस तकनीक का प्रयोग स्पाइडर मैन मूवी के हीरो पर किया था, अब तक सबसे अधिक समय तक वेंटिलेटर पर 24 साल तक रहने वाले मरीज को भी सफलतापूर्वक यह पेसमेकर लगाया जा चुका है। इस अवसर पर इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. एचएस छाबड़ा ने बताया कि सांस का कृत्रिम पेसमेकर इलाज में होने वाले खर्च को कम करेगा, पेसमेकर के लिए मरीज का चयन कुछ मानकों के आधार पर किया जाता है, कुछ मामलो में मरीज की स्थिति ठीक होने पर पेसमेकर को हटा दिया जाता है।