नई दिल्ली
रमजान का पाक महीने शुरू हो गया है। डायबिटिज के शिकार रोज़ेदारों को इस समय क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए, इसका ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है। किसी समय यदि रोज़ेदार का शुगर स्तर 60 एमजीडीएल से कम हो गया है तो उसे रोजा छोड़ देना चाहिए और तुरंत इलाज कराना चाहिए।
जाने माने डायबेटोलॉजिस्ट और फोर्टिस एनडॉक के प्रमुख डॉ. अनूप मिश्रा द्वारा लिखी किताब डायबिटिज विथ डिलाइट में इस बारे में विस्तृत जानकारी दी है। डॉ. अनूप कहते हैं कि सहरी वह समय होता है जब रोज़ेदार अपना रोजा कुछ खाकर शुरू करते हैं। इस समय यह ध्यान रखना चाहिए कि खाने में ऐसी चीजें शामिल की जाएं, जिसमें कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा बेहतर हो, सहरी का खाना रोजा शुरू के कुछ देर पहले लेना चाहिए। गेहूं का आटा, दालें, अनपॉलिश चावल आदि में भरपूर कार्बोहाइड्रेट होता है यह देरी से पचता है तो भूख का आभाष जल्दी नहीं होता। जबकि इफ्तार में कम शर्करा या कार्बोहाइडे्रट्स युक्त ऐसी चीजों को खाने में शामिल करना चाहिए, जिससे खून में जल्दी शर्करा पहुंच सके। व्यायायम को इन दिनो नहीं करना चाहिए, जबकि सहरी और इफ्तार में फलों का जूस और
तरल चीजें शामिल करनी चाहिए।
किसको नही करना चाहिए रमजान
– डायबिटिज के ऐसे मरीज, जिन्हें पूर्व में डायबिटिक किटोएसिडाटिस हुआ हो।
– लंबे समय से लगातार ब्लडप्रेशर और शुगर अनियंत्रित बना हो
– डायबिटिज के ऐसे मरीज जो पिछले कई दिनों से लो शुगर लेवल से परेशान हों।
– गर्भावस्था या फिर किडनी या लिवर खराब होने की अवस्था में भी रमजान नहीं रहना चाहिए।
क्या हो सकती है दिक्कत
डायबिटिज के मरीज यदि रमजान रखते हैं और सहरी और इफ्तार के खाने में ध्यान नहीं देते तो मरीज को हाइपोग्लाइसीमिया या हाइपरग्लासीमिया हो सकता है। दोनों ही स्थिति मरीज के लिए ठीक नहीं। भूने हुए आलू, टिक्की या फिर ऐसे कम फाइबर की खाने की चीजें तेजी से खून मे शर्करा की मात्रा बढ़ती है, जिसे हाइपरग्लाइसीमिया कहते हैं। डायबिटिज के ऐसे मरीज जो इंसुलिन पर है उनमें अगर शुगर लेवर कम होने या हाइपोग्लाइसीमिया की शिकायत होती है। इसके साथ ही पानी का सेवन न करने से खून की नसों में रूकावट, खून का थक्का जमना या थंब्रोसिस भी हो सकता है।