नई दिल्ली,
घर के किसी बुजुर्ग को यदि भूलने की शिकायत हो तो उन्हें एम्स के मैमोरी क्लीनिक में दिखाया जा सकता है। उम्र के साथ कम होती याद्दाश्त के इलाज के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में विशेष व्यवस्था की गई है। यहां हर बुधवार को ओपीडी में मैमोरी क्लीनिक लगाया जाता है, जिसमें सिनियर सिटिजन भूलने संबंधी परेशानियों का हल व इलाज ढुंढा जा सकता है। संस्थान के न्यूरोरोलॉजी विभाग के जेआरएफ द्वारा इस क्लीनिक को शुरू किया गया है। हर बुधवार को दोपहर दो से पांच के बीच जाकर बीमारी की जानकारी ली जा सकती है।
60 साल की उम्र के बाद भूलने की शिकायत अब वक्त से पहले ही दस्तक देने लगी है। 45 से 55 साल के बीच ही लोग रोजमर्रा की दिनचर्या में भूलने की आदत के शिकार हो रहे हैं। पहले केवल सिनियर सिटिजन के लिए डिमेन्शिया और अल्जाइमर के 66 फीसदी मरीज देखे जाते थे। एम्स के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. राजीव भाटिया ने बताया कि साधारण भूलने की आदत एक समय के बाद गंभीर समस्या हो सकती है। इसलिए ऐसे लक्षणों को नजरअंदाज न कर तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। जबकि शुरूआत में बीमारी के लक्षण पहचान में आने के बाद बुजुर्गो को आपसी सहयोग और पारिवारिक माहौल देकर सही किया जा सकता है। ऐसा भी देखा गया है कि अकेला पन बुजुर्गो में भूलने की आदत का कारण बन रहा है। एम्स में हर बुधवार को लगने वाली मैमोरी क्लीनिक में ऐसे ही बुजुर्गो की समस्या का हल किया जाता है।
क्या है डिमेन्शिया
उम्र बढ़ने के साथ ही मस्तिष्क के सोचने की क्रियाशीलता प्रभावित होती रहती है। तनाव व दिल की बीमारियों के साथ बुढ़ापे की शुरूआत होती है तो भूलने की बीमारी की संभावना 40 फीसदी देखी गई है। बीमारी के शुरूआती लक्षण रात में नींद का कम आना व बार-बार पेशाब आना हैं। 55 फीसदी मामलों में डिमेन्शिया अलजाइमर में बदल जाता है, जिसमें मरीज के साथ एक व्यक्ति का नियमित रूप से रहना जरूरी हो जाता है। 5 प्रतिशत मामले में बीमारी को जेनेटिक माना गया है।
क्या हैं प्रमुख सुझाव
-दवाओं के अलावा पारिवारिक माहौल भी जरूरी
-काउंसलिंग केन्द्र के जरिए बुजुर्गो के एकांतपन को दूर करें
-पीएचसी व सीएचसी पर प्रशिक्षित स्वयंसेवी कार्यकताओं की हो नियुक्ति
-बीमारी के लक्षण व एहतियात का हो अधिक से अधिक प्रचार