नई दिल्ली,
दिल्ली के पुष्पविहार में रहने वाले मदन गिरि के दो बेटे हैं, बड़े बेटे आर्यन को ऑटिज्म की बीमारी है। न्यूरोलॉजिकल मानी जाने वाली इस बीमारी में आर्यन का केस कुछ अलग निकला। एम्स की ओपीडी में दिखाने के बाद पता चला कि शुरूआत में मां सुषमा आर्यन की परवरिश में समय नहीं दे पाई जिसका असर उसकी संवाद, देखने और सुनने की क्षमता पर पड़ा और अब उसे विशेष बच्चों की श्रेणी में रखा गया है।
सुषमा ने बताया कि निजी कंपनी में काम करने के कारण केवल छह महीने की मेटरनिटी लीव मिली, इसके बाद उसने ऑफिस जाना शुरू कर दिया। आर्यन की देखभाल के लिए घर में एक आया रखी गई। जिसके संरक्षण में वह बड़ा तो हुआ, लेकिन जब ध्यान दिया गया तो पता चला कि एक साल की उम्र के बाद भी बोल नहीं पा रहा है। मां सुषमा ने बताया कि छह महीने उसके मस्तिष्क का सामान्य विकास हुआ, अब आर्यन का एम्स में इलाज चल रहा है। दरअसल मां और पिता के व्यस्त होने के कारण आर्यन के अंदर संवाद की क्षमता उस उम्र में विकसित नहीं हो पाई जबकि उसे इसकी सख्त जरूरत थी। एम्स के बाल रोग विभाग की डॉ. सविता सपरा ने बताया कि जन्म के बाद 23 महीने तक की बच्चे की गतिविधि यह पता लगाने के लिए काफी है कि उसका मानसिक विकास सामान्य गति से हो रहा है या नहीं। जबकि ओपीडी में आने वाले 70 प्रतिशत माता पिता की यह शिकायत होती है कि वह इस पर ध्यान नहीं दे पाते। न्यूरोबिहेव्यिर डिस्ऑर्डर मानी जाने वाली इस बीमारी में अब अन्य वजहें भी देखी जा रही हैं। जिसमें बच्चे से संवाद की कमी प्रमुख है, छह की उम्र से 23 महीने के अंतराल में यदि बच्चे के साथ उसकी गतिविधियों पर प्रतिक्रिया न दी जाएं तो संभव है कि तीन साल की उम्र तक उसमें ऑटिज्म और संवाद संबंधी परेशानियां हो जाती हैं।
क्या है ऑटिज्म
न्यूरोबिहेव्यिर डिस्ऑर्डर बच्चों के सामान्य विकास संबंधी जुड़ी बीमारी है। जिसे कुछ विशेष तरह के प्रशिक्षण से ठीक किया जा सकता है। दरअसल हर बच्चा जन्म से सीखने के कुछ गुण लेकर पैदा होता है। लेकिन कई बार सही परवरिश न मिलने से मस्तिष्क के सेंसर व न्यूरोंस विकसित नहीं हो पाते है और बच्चें में व्यवहार संबंधी परेशानियां शुरू हो जाती है। जैसे कुछ बोलने पर जवाब न देना, एक ही बात पर बार-बार कहना, अन्य बच्चों से अलग रहना, खिलौनों की जगह अन्य चीजों से खेलना आदि।
क्या है बीमारी का आंकड़ा
यूएस द्वारा अप्रैल वर्ष 2012 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार प्रत्येक 88 बच्चों में एक बच्चा ऑटिज्म का शिकार है। जबकि 12-24 लाख बच्चे ऑटिज्म के शिकार हैं। जबकि अकेले इस समय एम्स में बीमारी के 500 बच्चों का इलाज किया जा रहा है। हर साल ऑटिज्म के 170 नये बच्चे देखे जा रहे हैं। जबकि वर्ष 2002 तक यह आंकड़ा 50 तक सीमित था।
मदद के लिए ईमेल
एम्स के चाइल्ड न्यूरोलॉजी विभाग ने ऑटिज्म बच्चों की मदद के लिए एम्स से संपर्क किया जा सकता है। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. शेफाली गुलाटी ने बताया कि बच्चों के साथ ही माता पिता को प्रशिक्षण की जरूरत होती है। बीमारी के प्रबंधन के लिए प्रयास नामक कार्यक्रम शुरू किया गया है, जिसमें कई चरणों में बच्चों के मानसिक विकास पर निगरानी रखने सिखाया जाता है।