नई दिल्ली,
ऑक्सफ़र्ड यूनिवर्सिटी के द्वारा तैयार की गई कोविड वैक्सीन के फेज वन और टू के ट्रायल बेहद आशाजनक हैं। इस वैक्सीन का कुल 1055 लोगों पर ट्रायल किया गया है जिसके नतीजों से पता चला है कि न केवल यह सुरक्षित है बल्कि वायरस से लड़ने वाले एंटीबॉडी का निर्माण भी कर रही है। पूरी दुनिया में कोविड वैक्सीन को लेकर ट्रायल किये जा रहे हैं। यह ह्यूमन ट्रायल की पहली रिपोर्ट आई है जिसमें पूरी दुनिया के लोगों को आशा की एक किरण दिखाई दी है। भारतीय चिकित्सक भी इस वैक्सीन की शुरूआती रिपोर्ट के प्रति सकारात्मक नजरिया अपना रहे हैं।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में कोविड वैक्सीन प्रोजेक्ट के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर व कम्युनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ. संजय राय ने कहा कि इस वैक्सीन की आई रिपोर्ट को देखकर कहा जा सकता है कि वैक्सीन का ट्रायल सही दिशा में जा रहा है। डॉ. संजय ने आगे बताया कि इनके द्वारा फेज वन और टू पूरा कर लिया गया है जिनमें एक हजार से अधिक लोगों पर ट्रायल किया गया है। इसमें साफ तरीके से दिखाई दे रहा है कि यह सुरक्षित भी है और एंटीबॉडी भी बन रही हैं और बहुत कारगर भी है।
उन्होंने बताया कि अब आने वाले समय में ध्यान दिया जाएगा कि जो एंटीबॉडी बनकर तैयार हुई हैं, ये कितने समय तक कारगर बनी रहेगी। उन्होंने कहा कि हमारी वैक्सीन इससे बिलकुल अलग है, जिसका एम्स में ट्रायल किया जाएगा, उसका कांसेप्ट इससे अलग है। इस बारे में डॉ. डी. के. दास ने कहा कि रिपोर्ट में इस वैक्सीन के सुरक्षित मानकों पर खरा उतरने की बात कही गई है कि किसी में भी वैक्सीन का बड़ा साइड इफ़ेक्ट नही देखा गया है। मामूली साइड इफ़ेक्ट सामने आया था जो पैरासिटामोल जैसी दवा देने से ठीक हो गया था। डॉ. दास ने बताया कि यह स्टडी 18 से 55 साल के लोगों पर की गई थी। यहाँ तक तो ठीक है। लेकिन कोविड वायरस का अटैक बुजुर्ग लोगों पर अधिक ख़तरनाक देखा जा रहा है इसलिए इससे बड़ी उम्र के लोगों पर स्टडी करने की जरूरत है। 60 साल की उम्र के लोगों पर स्टडी करने के बाद ही असल जानकारी मिल पायेगी कि उनके लिए यह कितनी सुरक्षित है। क्योंकि अगर वैक्सीन तैयार हुई है तो सबसे पहले बुजुर्ग लोगों को लगनी चाहिए। इसके बाद हेल्थ केयर वर्कर, फिर पुलिस और अन्य लोग जो आम लोगों की सेवा में लगे हुए हैं। डॉ. दास ने बताया कि ऑक्सफ़र्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित वैक्सीन में बूस्टर डोज भी है, जिसका इस्तेमाल 28 दिनों के बाद किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, जिन लोगों को बूस्टर डोज दिया गया था उनमें एंटीबॉडी ज्यादा बेहतर व स्ट्रांग पाया गया। इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि स्ट्रांग एंटीबॉडी बनाने के उद्देश्य से वैक्सीन की बूस्टर डोज भी दिया जा सकता है।