मानव शरीर से निकलने के बाद अब लिवर को मानव शरीर जैसी काम करने वाली मशीन पर तीन दिन तक जीवित रखा जा सकेगा। ऑगर्न-ऑक्स नाम की इस मशीन को देश में ड्यूरेट लाइफसाइंस ने लांच किया गया है। लिवर प्रत्यारोपण को अधिक बेहतर और सफल बनाने के लिए इस मशीन का प्रयोग यूरोप के कई देशों में हो रहा है। जबकि भारत में इसे दो महीने पहले लांच किया गया।
मेदांता इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर ट्रांसप्लांटेशन के अध्यक्ष और ऑक्सफोर्ड ब्रिटेन के वैज्ञानिक सलाहकार डॉ. एएस सोएन ने बताया कि नई मशीन से लिवर प्रत्यारोपण की गुणवत्ता को और अधिक बेहतर किया जा सकेगा, इससे प्रत्यारोपण के लिए आने वाले ऐसे 40 प्रतिशत लिवर को संरक्षित किया जा सकेगा, जो बेवजह बेकार हो जाते हैं। दरअसल इस मशीन में शरीर के बाहर भी लिवर को उसी परिस्थिति में रखा जा सकेगा जिसमें वह शरीर में काम करता है। इसके लिए लाइफसाइंस ने मशीन में ब्लड प्रेशर, तापमान, ऑक्सीजन सहित सभी पैरामीटर्स को ध्यान में रखा। डॉ. सोएन ने बताया कि सड़क दुर्घटना के शिकार या मस्तिष्क मृत शरीर से लिए गए लिवर को एक निर्धारित समय तक प्रत्यारोपित करना जरूरी है। इसमें थोड़ी भी देरी होने पर लिवर खराब होने की संभावना बढ़ जाती है। ऑगर्न- ऑक्स पर पहुंचने के बाद लिवर को 24 घंटे से तीन दिन तक प्रयोग में लाया जा सकेगा। इससे लिवर खराब होने का खतरा कम होगा। मशीन की मदद से भारत में पहला प्रत्यारोपण एक महीने पहले बंगलूरू में किया गया। लाइफ साइंस के सीईओ सुबिथ कुमार ने बताया कि पहले लिक्विड के सहारे लिवर को संरक्षित किया जाता था, जिसमें कोशिकाओं की क्षति हो जाती थी। जबकि मशीन में उनकी क्षति को रोका जा सकता है। मशीन के रैंडम क्लीनिकल ट्रायल को साइंस जर्नल नेचर में ऑन लाइन प्रकाशित किया गया है। ऑगर्न ऑक्स की मदद से लिवर प्रत्यारोपण के खर्च को सात से आठ प्रतिशत तक कम किया जा सकता है।