नई दिल्ली: जीन की वजह से बच्चो में बहरेपन हो सकता है। यहीन मानिए यह सच है। डॉक्टर का कहना है कि जीन 26 में डिफेक्ट की वजह से बच्चों में सुनने की क्षमता चली जाती है और वह बहरेपन का शिकार हो जाता है। डॉक्टर के अनुसार खून के रिश्तो में शादी करने वाले समूह में बच्चों में सुनने की क्षमता संबंधी परेशानी अधिक देखी जाती है। दो से तीन प्रतिशत मामलो में गर्भधारण के समय रूबेला या टार्च वायरस का हमला भी नवजात में बहरेपन की वजह बन सकता है। नवजात शिशु में बहरेपन का सही समय पर पता लगाने के लिए राष्ट्रीय बेहरपन नियंत्रण कार्यक्रम के तहत जन्म के पहले, दूसरे, तीसरे और सातवें दिन नवजात की ओऐई जांच को अनिवार्य किया गया है।
पदमश्री ईएनटी एक्सपर्ट डॉक्टर जे एम हंस ने बताया की देश की कुल आबादी की 10 प्रतिशत जनता बहरेपन का शिकार है, जिसमे 10 प्रतिशत बच्चे बहरेपन का शिकार है, जिसे टोटल बहरापन कहा जा सकता है। इसकी दो एहम वजह होती है जिसमें से एक ध्वनि प्रदुषण और खून के रिश्तो में विवाह पर बच्चों में बहरेपन की बीमारी देखी जा रही है। डॉक्टर का कहना है एक ही समूह या फिर गोत्र में विवाह पर जीन 26 का महिला या पुरुष के जरिए खून के जरिये बच्चे के शरीर में ट्रांसफर हो जाता है, इस तरह के बहरेपन में बच्चा जन्म से ही सुनने के विकार लेकर पैदा होता है। जबकि लंबे समय तक प्रदुषण में रहने वाले बच्चो में भी बहरेपन की शिकायत देखी गयी है। 60 बीबीएम ध्वनि से ऊपर का शोर सुनने पर बच्चे अक्सर बहरेपन का शिकार होते है। ऐसे बच्चो की सुनने की शक्ति की कॉकलियर इम्प्लांट क जरिए शत प्रतिशत सही किया जा सकता है। जबकि ऐसा बहरापन जिसमे बच्चे की बोलने शक्ति भी प्रभावित हो रही हो उनमे ब्रेन इम्प्लांट के जरिये बच्चो को ठीक किया जाता है। आधुनिक मशीन के जरिये 6 से आठ महीने तक के बच्चों को ठीक किया जा सकता है।
बच्चों की प्रतिक्रिया पर दे ध्यान:
बच्चों में सुनने की क्षमता है या नहीं या फिर कम है इसका ध्यान मां को देना चाहिए, सामान्यतौर पर अगर बच्चा शोर करने वाले खिलौनों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहा तो सतर्क हो जाना चहिए और बिना देरी किए ईएनटी के डॉक्टर के पास इलाज के लिए जाना चाहिए।