गर्भनाल से सुरक्षित नवजात का भविष्य

सिने अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन ने अपनी बेटी के जन्म के बाद गर्भनाल सुरक्षित कराया, जिसके बाद दम्पतियों में गर्भनाल सरंक्षण का क्रेज बढ़ा है। भविष्य में बच्चों को बीमारी से सुरक्षित रखने के लिए कार्ड ब्लड संरक्षण को सबसे सटीक उपाया माना गया है। जिसमें एक तरह से जन्म देने वाली मां ही बच्चों के भविष्य की बीमारियों के लिए रक्षा कवच तैयार कर सकेगी। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधार परिषद आईसीएमआर की सहमति के बाद जल्द ही अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भी कार्ड संरक्षण का काम शुरू किया जाएगा। अभी तक संस्थान कुछ ही मामलों में स्टेम सेल्स संरक्षण का काम कर रहा है। आरबो प्रमुख डॉ. आरती विज ने बताया कि स्टेम सेल्स संरक्षण के तहत अभी सीमित संख्या में गर्भनाल का संरक्षण किया जा रहा है।

कैसे होता है संरक्षण
जन्म के बाद नवजात को मां से जोड़ने वाले गर्भनाल में हजारों की संख्या में स्टेम सेल्स मौजूद होते हैं, इन सेल्स को संरक्षित कर रक्त संबंधी विकार व क्षतिग्रस्त अंगों को सही किया जा सकता है। जन्म के तुरंत बाद 5 घंटे के अंतराल में मां से बच्चे को अलग करने वाली नाल को किट में संरक्षित किया जाता है। प्राइवेट व व्यक्तिगत बैंकिंग के बाद माता पिता को बारकोड कार्ड दिया जाता है, जरूरत पड़ने पर बैंक में इसी बारकोड का मिलान कर नाल को इस्तेमाल किया जाता है। निजी कंपनियां फिलहाल 75 हजार के शुल्क पर 21 साल तक नाल संरक्षण का काम कर रही है। शुल्क को किश्तों में भी अदा किया जा सकता है। सरकारी अस्पताल में संरक्षण का शुल्क फिलहाल निर्धारित नहीं किया गया है।

किस बीमारी के लिए कारगर
आईसीएमआर द्वारा कार्ड ब्लड को 78 प्रमुख बीमारियों के इलाज के लिए स्वीकृत किया है। जिसमें रक्त संबंधी बीमारियां जैसे थैलीसीमिया व हीमोफीलिया मस्तिष्क संबधी बीमारी हेपेटाइटिस, मधुमेह, रिहृयुमेटायड आर्थराइटिस, किडनी, दिल व मधुमेह आदि का इलाज किया जा सकता है। दरअसल क्षतिग्रस्त अंग में संरक्षित स्टेम सेल्स प्रत्यारोपित की जाती हैं, स्टेम सेल्स ही वह मात्र सेल्स होती है, जिनमें अपनी तरह की कई सेल्स बनाने की क्षमता होती है।

सरकारी हस्पतक्षेप बढ़ेगा
लोगों में गर्भनाल संरक्षण की जागरूकता न होने के कारण दो करोड़ की आबादी में केवल 1500 लोगों ने ही राजधानी में गर्भनाल को सुरक्षित कराया है। निजी कंपनियों के सहयोग से अब गर्भनाल संरक्षण को सरकारी अस्पतालों में भी शुरू करने की पहल की जा रही है। संरक्षण का व्यवसायिक उपयोग न हो इसलिए क्षेत्र में सरकारी दखल बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है, जिसके तहत अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के आरबो (आर्गन रिट्राइवल बैंकिंग आर्गेनाइजेशन) की मदद ली जाएगी।

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