नई दिल्ली,
लव हार्मोन के नाम से जाने जाने वाले ऑक्सिटोसिन इंजेक्शन का प्रयोग सरकार ने एक जुलाई से बंद कर दिया है। केवल केरल की एक सरकारी कंपनी को दवा बनाने का अधिकार दिया गया है। देश में सबसे अधिक इसका इस्तेमाल नवजात के जन्म के समय गर्भवती महिलाओं को पोस्ट डिलिवरी खून के प्रवाह को रोकने के लिए किया जाता है। डब्लूएचओ ने विश्वभर की लगभग तीस हजार महिलाओं पर किए गए एक अध्ययन में कार्बेटोसिन को ऑक्सिटोसिन से अधिक प्रभावी माना है।
न्यू इंगलैंड जर्नल ऑफ मेडिसन मे छपे शोध के अनुसार कार्बटोसिन में वातावरण में उपस्थिति हीट को संतुलिन करने की क्षमता है। इससे पहले डब्लूएचओ खुद डिलिवरी के बाद होने वाले रक्तस्त्राव को रोकने के लिए ऑक्सिटोसिन हार्मोन के इस्तेमाल की सलाह देता था। लेकिन ऑक्सिटोसिन को संरक्षित रखने के लिए दो से तीन डिग्री सेल्सियस तापमान का होना बेहद जरूरी है। जबकि भारत सहित अन्य देशों में ऑक्सिटोसिन के इस्तेमाल के समय तापमान का ध्यान नहीं रखा जाता। डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग 70 हजार महिलाएं पोस्ट पार्टम हैमेरेज यानि डिलिवरी के समय होने वाले रक्तस्त्राव की वजह से मर जाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी की गई आधिकारिक सूचना के अनुसार नई दवा से रक्तस्त्राव को रोका जा सकेगा, क्योंकि कार्बेटोसिन को 75 प्रतिशत आद्रता के बीच 30 डिग्री सेल्सियस में लगभग तीन साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है। डब्लूएचओ के रिप्रोडक्टिव हेल्थ विभाग के डॉ. मेटिन गूलमेजोग्लू ने बताया कि नई दवा से ऐसे देशों में डिलिवरी के समय माताओं को बचाया जा सकेगा, जहां इंजेक्शन को संरक्षित करने के लिए रेफ्रिजरेटर नहीं होते हैं।
मालूम हो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रस्ताव के बाद केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने एक जुलाई से ऑक्सिटोसिन के इस्तेमाल को पूरी तरह बंद कर दिया है।