दूध के साथ गुड़ का प्रयोग कम करेगा छाती की अकड़न

प्रदूषण का असर सांसों पर पड़ रहा है, सामान्य गहरी सांस लेने में पहले से अधिक समय लग रहा है, धूल के कण सीधे रूप से फेफड़ों तक पहुंच रहे हैं। दिनभर में यदि चार से पांच घंटे भी आप नियमित प्रदूषण के संपर्क में हैं तो गले में खराश, छाती में जकड़न और जुकाम की शिकायत बढ़ सकती है। एलोपैथी की जगह इससे निजात पाने के लिए देसी या आयुर्वेद भी अपनाया जा सकता है, जो शत प्रतिशत सुरक्षित है।
राजनबाबू टीबी अस्पताल के आयुर्वेदाचार्य डॉ. आरपी पाराशर ने बताया कि घरेलू उपाय और आयुर्वेद की कुछ जड़ी बूटी के प्रयोग से प्रदूषण के विषाक्त प्रभाव से बचा जा सकता है। वाक्, कफ और पित्त से जुड़ी समस्याओं में प्रदूषण का असर ऐसे लोगों पर अधिक पड़ता है जो नाड़ी जांच में कफ रोगों के करीब होते हैं। एलर्जी, फ्लू, छाती में जकड़न, गले में खराश और छींक आदि आना कफ के लक्षण हैं। देशी इलाज से इसके प्रभाव से बचा जा सकता है, जिसमें गुड़ या शक्कर के साथ दूध का सेवन बेहतर है, दिनभर घर से बाहर या प्रदूषण के संपर्क में रहने वाले लोगों को रात में एक गिलास दूध के साथ गुड़ लेना चाहिए, इसके साथ ही दिनभर भर में कम से कम छह गिलास पानी का सेवन आयुर्वेद में जरूरी बताया गया है जो तीनों तरह की समस्या से शरीर को सुरक्षित करता है। छाती में यदि गंभीर जकड़न है और सांस लेना मुश्किल हो रहा है तो गुग्गल, लौंग, काली मिर्च, पिप्पल और हल्दी के उबले हुए पानी का सेवन करना चाहिए। पानी की भांप भी सांस लेने के रास्ते की जकड़न को दूर कर सकती है।

कुछ छोटे और जरूरी उपाय
– सोंठ पाउडर और तुलसी के पत्तों का सेवन है बेहतर
– एहतियात के तौर पर घर में कुछ दिन धूप बत्ती का न करें प्रयोग
– बाथरूम में गीजर है तो हवा के बाहर निकलने का करें सटीक बंदोबस्त
– किचन में वेंटिलेशन का करें उचित प्रबंधन

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