नई दिल्ली,
इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल ने पिछले दो महीने में घुटने की समस्या से परेशान 25 लोगों को सोने का घुटना लगाया है। विभिन्न आयु वर्ग के यह मरीजों में घुटने बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुके थे, घुटना प्रत्यारोपण के अन्य विकल्प की अपेक्षा अब सोने का घुटना अधिक बेहतर माना जा रहा है।
चिकित्सकों का कहना है कि कम उम्र में यदि घुटना खराब होता है तो ऐसी स्थिति में इस्तेमाल किए गए सोने के घुटने के बाद मरीज को भविष्य में दूसरे किसी इंप्लांट की जरूरत ही नहीं पड़ती, और सोने का घुटने का खर्च अन्य तरह के मेटेलिक इंप्लांट जितना ही होता है। इसलिए यह अधिक महंगी सर्जरी भी नहीं।
विश्व बुजुर्ग दिवस पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में बोलते हुए अस्पताल के वरिष्ठ आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. राजू वैश्य ने बताया कि आर्थोप्लास्टिक प्रत्यारोपण में गोल्ड नी को सबसे आधुनिक इंप्लांट माना गया है, जिसका ऊपरी धरातल बायोनिक गोल्ड होता है, जो घुटने के मुख्य पद्धार्थ तक किसी तत्व को पहुंचने नहीं देता है। यह एक तरह का घेरा होता है जो घुटने के टिश्यू और सेल्स को क्षतिग्रस्त होने से भी बचाता है।
डॉ. राजू वैश्य ने बताया कि गोल्ड नी में मेटल की सात परतें होती हैं, जो घुटने को भीरत से सुरक्षित रखती हैं, इससे टिश्यू को सुरक्षित रखने के साथ ही मरीज को घुटने का मूवमेंट अधिक बेहतर रखने में भी मदद मिलती है। यही वजह है कि सामान्य मेटल के घुटने के एवज में गोल्ड नी प्रत्यारोपण में घुटने की उम्र 15 से 20 साल की जगह 30 से 35 साल मानी गई है। डॉ. राजू कहते हैं कि गोल्ड नी में मौजूद बायोनिक गोल्ड टायटेनियम नियोबियम नाइट्रेट का बना होता है जो घुटने को पीले रंग का आभाष देता है इसके साथ ही बायोनिक गोल्ड की परत घुटने को अधिक मजबूती से जोड़ने का काम करती है। इसके अलावा भी गोल्ड नी की कई खुबियां होती है, इससे घुटने में दोबारा घर्षण की उम्मीद न के बारबर होती है यह बेहद हल्का और संक्रमण रहित अधिक दिनों तक चलने वाला इंप्लांट माना गया है।