नई दिल्ली,
“हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी इस छह साल और 11 किलो की सबसे कम उम्र और कम वजन (हमारे अनुसार, भारत में सबसे कम उम्र एवं सबसे कम वजन के बच्चे में से एक पर पोयम इंडोस्कोपिक प्रोसीजर का सफल प्रयोग) वाली इस बच्ची में ‘स्पेशल एंडोस्कोपिक प्रोसीजर’ को किया गया। कमजोर और कम वजन की बच्ची में संक्रमण और सांस की समस्या का सबसे अधिक जोखिम था। पोयम (पी.ओ.ई.एम.) प्रोसीजर में इस्तेमाल होने वाले वयस्क एंडोस्कोपिक और सहायक उपकरण का उपयोग एक छोटे बच्चे में करना एक जटिल कार्य था।” प्रो. (डॉ.) अनिल अरोड़ा
हाल ही में सर गंगा राम अस्पताल के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी डिपार्टमेंट में एक 6 साल की बच्ची इलाज के लिए पहुंची, जो लगभग तीन साल से खाना निगल नहीं पा रही थी। उसे बार-बार उल्टियां होने की समस्या थी और उसके मुंह और नाक से भोजन की उल्टियां हो रही थी, जिसकी वजह से उसका वजन काफी कम हो गया था।
डॉ. (प्रो.) अनिल अरोड़ा, चेयरमैन, इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर, गैस्ट्रोएंटरोलॉजी एंड पैन्क्रियाटिकोबिलरी साइंसेज, सरगंगा राम अस्पताल के अनुसार, “जब वह हमारे पास आई तो वह बहुत पतली, कमजोर और मैरास्मिक (प्रोटीन कुपोषण) की शिकार थी। बच्ची का वजन उसकी उम्र के सामान्य वजन से 8-10 किलोग्राम कम था। एंडोस्कोपी, बेरियमस्वॉलो और उसके बाद हाई रेजोल्यूशन (एसोफैगलमैनोमेट्री) के साथ मूल्यांकन करने के बाद हमने पता लगाया कि वह ऐकलेजिया कार्डिया (खाना निगलने की बीमारी) से पीड़ित है।”
इतनी कम उम्र के बच्चों में ऐकलेजिया कार्डिया का उपचार सर्जिकल इंटरवेंशन होता है, लेकिन उसकी तुलना में हमने इस बच्ची में पोयम (पीओईएम – पेर ओरलएंडोस्कोपिक मायोटॉमी) नामक एंडोस्कोपिक प्रोसीजर करने का फैसला किया।
प्रो. (डॉ.) अनिल अरोड़ा ने आगे कहा, “हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी इस छह साल और 11 किलो की सबसे कम उम्र और कम वजन (हमारे अनुसार, भारत में सबसे कम उम्र एवं सबसे कम वजन के बच्चे में से एक पर पोयम इंडोस्कोपिक प्रोसीजर का सफल प्रयोग) वाली इस बच्ची में ‘स्पेशल एंडोस्कोपिक प्रोसीजर’ को करना एक अहम उपलब्धि है। इतनी कमजोर और कम वजन की बच्ची में संक्रमण और सांस की समस्या का सबसे अधिक जोखिम था। पोयम (पी.ओ.ई.एम.) प्रोसीजर में इस्तेमाल होने वाले वयस्क एंडोस्कोपिक और सहायक उपकरण का उपयोग एक छोटे बच्चे में करना एक जटिल कार्य था।”
डॉ. शिवम खरे, कंसलटेंट, डिपार्टमेंट ऑफ़ गैस्ट्रोएंटरोलॉजी, सर गंगा राम अस्पताल के अनुसार, “पीओईएम प्रक्रिया में चार चरण होते हैं: म्यूकोसल एंट्री), (सबम्यूकोसल टनल) का निर्माण, (सी) (मायोटॉमी) की शुरुआत और विस्तार और डी (म्यूकोसल एंट्री) को बंद करना।”
उपरोक्त चार चरणों का अर्थ है भोजन नली की आंतरिक परत को काटना, मांसपेशियों की परतों और भोजन की नली की अंदरूनी परत के बीच एक रास्ता बनाना, फिर पेट और भोजन की नली कंजंक्शन पर जटिल मांसपेशियों को काटना, और अंत में आंतरिक परत को (हेमोक्लिप्स) के साथ बंद करना।
छोटी उम्र के बच्चों में ऐकलेजिया कार्डिया होने की संभावनाएं कम होती हैं और ऐकलेजिया कार्डिया के पांच प्रतिशत से भी कम मरीज 15 वर्ष से कम उम्र के होते हैं ।
इस ‘स्पेशल एंडोस्कोपिक प्रोसीजर (पोयम)’ को करने में डेढ़ घंटे का समय लगा और मरीज को प्रोसीजर के बाद भोजन की नली और पेट के जंक्शन पर रुकावट से तुरंत राहत मिल गई।
इस जटिल एंडोस्कोपिक प्रोसीजर को एंडोस्कोपिक असिस्टेंट, पीडियाट्रिक एनेस्थेटिस्ट और सर्जन की एक प्रशिक्षित टीम की सहायता के बिना कर पाना असंभव था। सर्जरी के 4 दिनों के भीतर बच्ची सामान्य आहार लेने लग गई और अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी।
क्या है पोयम प्रोसीजर
पोयम (पेर ओरल एंडोस्कोपिक मायोटॉमी) एक एंडोस्कोपिक प्रोसीजर है जिसका उपयोग भोजन की नली के निचले हिस्से में होने वाली रुकावट (ऐकलेजिया कार्डिया) के इलाज के लिए किया जाता है। पोयम एक नया एंडोस्कोपिक प्रोसीजर है जिसमें छाती या पेट पर बिना किसी चीर-फाड़ किए एंडोस्कोप के द्वारा किया जाता है। इसमें मरीज को अस्पताल में एक से दो दिन भर्ती होने की आवश्यकता होती है।
डॉ. शिवम खरे के अनुसार “हमारा मानना है कि बढ़ती विशेषज्ञता और मल्टीस्पेशलिटी टीम की उपलब्धता के होने के कारण इस प्रक्रिया को सुरक्षित रूप से ऐसे असहाय और कमजोर बच्चों में डिस्फेजिया (निगलने में कठिनाई) के स्थाई समाधान के लिए किया जा सकता है जिससे कि ऐसे असहाय बच्चों की किशोरावस्था के प्रारंभिक वर्ष में शारीरिक और मानसिक विकास की पूरी क्षमता हासिल की जा सकती है।
आगे विस्तार से बताते हुए, प्रो. (डॉ.) अनिल अरोड़ा ने कहा कि हम अपने अस्पताल में अब तक 427 मरीजों में इस प्रोसीजर को सफलतापूर्वक कर चुके हैं। लेकिन भारत में पहली बार सरगंगा राम अस्पताल में केवल 11 किलो वजन वाले छह साल के छोटे बच्चे में यह प्रोसीजर सफलतापूर्वक किया गया है।