नई दिल्ली,
कंट्री डिलाइट ने इंडियन डाइटेटिक एसोसिएशन, मुंबई के साथ भागीदारी में हाल ही में तीन शहरों में एक सर्वे किया था, ताकि शहरी भारतीयों के पाचन सम्बंधी स्वास्थ्य को समझा जा सके और पेट के स्वास्थ्य से जुड़ीं बीमारियों पर उनकी धारणा को जाना जा सके। यूजीओवी के इंडिया पैनल का इस्तेमाल कर ऑनलाइन ‘गट हेल्थ सर्वे’ किया गया था, जिसमें दिल्ली एनसीआर, मुंबई और बेंगलुरु के 2017 लोगों ने जवाब दिए। सर्वे में शामिल होने वाली लोग 25 से 50 वर्ष की आयु तक के थे और इनमें 50 प्रतिशत पुरूष तथा 50 प्रतिशत महिलाएं थीं।
सर्वे के अनुसार10 में से 7 लोगों को पाचन संबंधी या पेट के स्वास्थ्य की समस्याएं हैं। इसकी 58 प्रतिशत लोग साप्ताहिक और 12 प्रतिशत लोग दैनिक आधार पर शिकायत करते हैं। ज्यादातर उपभोक्ताओं (80%) का मानना है कि पाचन/पेट के स्वास्थ्य की समस्याएं जीवनशैली से जुड़ी लंबे समय की बीमारियाँ बन सकती हैं। दिलचस्प यह है कि 60 प्रतिशत से ज्यादा उपभोक्ताओं ने अपने आहार में बदलाव किया है, ताकि पाचन सम्बंधी और जीवनशैली की बीमारियों से बचा जा सके।
गट-हेल्थ सर्वे से पता चला है कि कुछ कारकों से पेट का स्वास्थ्य खराब हो सकता है। करीब 63 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे हर हफ्ते जंक या प्रोसेस्ड या पैकेज्ड फूड खाते हैं और उनमें से 68 प्रतिशत लोगों को पेट की समस्याएं हुई हैं। अधिकांश लोगों का मानना है कि फास्ट/जंक फूड या केमिकल प्रोसेस वाले फूड पाचन या पेट की समस्याओं के दोषी हैं।
पेट और दिमाग के संबंध के मामले में 59 प्रतिशत उपभोक्ता, जो हर हफ्ते पाचन/पेट की समस्याओं से पीड़ित होते हैं, को मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियाँ भी मिली हैं, जैसे कि चिंता, खराब याद्दाश्त, मूड बदलना और ऊर्जा की कमी, यह संख्या ऐसे लोगों में कहीं ज्यादा है, जिन्हें अक्सर पाचन की समस्याएं होती हैं।
इससे छुटकारा पाने के लिए लगभग 67 प्रतिशत लोगों ने अपनी जीवनशैली में बदलाव किया, जैसे कि शारीरिक गतिविधि करना या खान-पान की आदतें बदलना। इसके अलावा, जवाब देने वाले दस में से चार लोगों का मानना है कि केमिकल से मुक्त और ताजे डेयरी उत्पाद लेने से पाचन सम्बंधी या पेट के स्वास्थ्य की समस्याओं को रोकने में मदद मिल सकती है, इसलिये उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में अपने आहार में बदलाव किया है। कुल मिलाकर, 10 में से 6 लोग अपने दैनिक आहार में केमिकल से मुक्त चीजें तलाशते हैं।
सर्वे से यह स्पष्ट है कि पाचन/पेट के स्वास्थ्य की समस्याएं आज के शहरी भारतीयों की एक बड़ी चिंता हैं। पेट के स्वास्थ्य को खराब करने वाले कुछ कारक हैं जंक/प्रोसेस्ड/पैकेज्ड फूड खाना, जिसे पेट की समस्याओं और तनाव/चिंता के लिये जिम्मेदार माना जाता है। इसका प्रमाण भी है कि पेट और दिमाग के बीच मजबूत सम्बंध होता है और पाचन/पेट के स्वास्थ्य की समस्याएं असंचारी रोग (एनसीडी) दे सकती हैं, जैसे कि मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग।
अध्ययन से खुलासा हुआ है कि आधुनिक जीवनशैली से लोगों में तनाव बढ़ा है और नींद की गुणवत्ता कम हुई है, ऊर्जा की कमी महिलाओं की सबसे आम समस्या है। 41 प्रतिशत महिलाओं ने स्वीकार किया कि उन्हें अकसर ऊर्जा की कमी बनी रहती है। इसी क्रम में मूड बदलना भी एक बड़ी समस्या है 40 प्रतिशत महिलाओं ने इसका नियमित अनुभव होने की बात कही है।
कंट्री डिलाइट के सह-संस्थापक एवं सीईओ चक्रधर गाडे ने कहा, “आईडीए मुंबई चैप्टर के साथ मिलकर कंट्री डिलाइट पाचन सम्बंधी स्वास्थ्य के क्षेत्र में अग्रणी बनने के लिये हम प्रतिबद्ध है। यह जानना दुखद है कि हमारे देश के बड़े शहर तनाव, नींद की खराब गुणवत्ता और चिंता जैसी समस्याओं से नियमित आधार पर गुजर रहे हैं। यह समस्याएं भविष्य में ज्यादा बुरी चिकित्सकीय स्थितियां पैदा कर सकती हैं।
आईडीए की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति की सदस्य और आईडीए मुंबई चैप्टर की भूतपूर्व प्रेसिडेंट नाज़नीन हुसैन ने कहा कि गट-हेल्थ सर्वे पाचन सम्बंधी स्वास्थ्य की समस्याओं की व्यापकता पर रोशनी डालता है, खासकर शहरी आबादी में। इसका मुख्य कारण खान-पान और जीवनशैली से सम्बंधित खराब आदतें हैं। पेट का मजबूत होना अच्छा काम करने वाले रोग प्रतिरोधक तंत्र के लिये महत्वपूर्ण है और इससे मानसिक स्वास्थ्य को भी बल मिलता है।
सर्वेक्षण के क्या हैं प्रमुख बिंदु
– हर हफ्ते जंक/प्रोसेस्ड/पैकेज्ड फूड खाने को 63 प्रतिशत लोगों ने पेट की गड़बड़ी की अहम वजह बताया।
– 59 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया कि पेट और दिमाग का सीधा संबंध है। पेट की दिक्कत होने पर उन्हें मानसिक स्वास्थ्य की कुछ समस्याएं जैसे कि चिंता, खराब स्मृति और मूड बदलने का भी सामना करना पड़ा।
– पेट की समस्याओं से बचने के लिए लगभग 70% लोगों ने अपनी जीवनशैली को बदला।
– एक चौथाई लोगों को लगता है कि केमिकल से मुक्त और ताजे डेयरी उत्पाद लेने से पाचन/पेट की समस्या से बचने में मदद मिल सकती है
– 10 में से 6 लोग अपने दैनिक आहार के लिये केमिकल से मुक्त खाद्य पदार्थ चाहते हैं