प्लाज्मा लीकेज है डेंगू का सबसे स्पष्ट और जानलेवा लक्षण

नई दिल्ली: बारिश के मौसम में डेंगू एक बार फिर से राजधानी में डर और बेचैनी का माहौल पैदा कर रहा है। जिसे हल्का सा भी मौसमी बुखार आता है वो भी डेंगू की जांच करवाने के लिए अस्पताल की तरफ दौड़ पड़ता है। लेकिन बहुत से लोगों को जानकारी नहीं है कि 99 प्रतिशत मामलों में घबराने की ज़रूरत नहीं होती। डेंगू के ज़्यादातर मामलों में बचाव हो सकता है आर इसके इलाज और रोकथाम के बारे में लोगों को जागरूक करना ज़रूरी है।
डेंगू बुखार मच्छरों के काटने से होने वाली एक दर्दनाक बीमारी है। यह चार किस्मों के डेंगू वायरस के संक्रमण से होती है जो मादा ऐडीस मच्छर के काटने से फैलता है। डेंगू बुखार में तेज़ बुखार के साथ नाक बहना, खांसी, आखों के पीछे दर्द, जोड़ों के दर्द और त्वचा पर हल्के रैष होते हैं। हालांकि कुछ बच्चों में लाल और सफेद निशानों के साथ पेट खराब, जी मिचलाना, उल्टी आदि हो सकता है। डेंगू के मीहज़ों को डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए, आराम करना चाहिए और काफी मात्रा में तरह आहार लेना चाहिए। बुखार या जोड़ों के दर्द को कम करने के लिए पैरासीटामोल ली जा सकती है, लेकिन एसप्रिन या आईब्यूप्रोफेन नहीं लेनी चाहिए क्योंकि इससे ब्लीडिंग का खतरा हो सकता है।
इसके गंभीर होने की संभावना केवल 1 प्रतिशत होती है और अगर लोगों को खतरे के संकेतों की जानकारी हो तो जान जाने से बचाई जा सकती है। अगर डेंगू के मरीज़ का प्लेटलेट्स काउंट 10000 से ज़्यादा हो तो प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूजन की कोई आवश्यकता नहीं होती। अनउचित प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूजन नुकसान कर सकता है। इस बारे में जानकारी देते हुए आईएमए के नेशनल प्रेसीडेंट इलैक्ट एवं एचसीएफआई के प्रेसीडेंट डॉ केके अग्रवाल ने बताया कि, डेंगू को रोका भी जा सकता है और इसका इलाज भी किया जा सकता है, इसलिए लोगों को घबराने नहीं चाहिए क्योंकि केवल 1 प्रतिशि मामलों में यह जानलेवा साबित होता है। प्लाज्मा लीकेज है डेंगू का सबसे स्पष्ट और जानलेवा लक्षण है जो बीमारी होने के 3 से 7 दिनों के अंदर होता है। पेट में तेज़ दर्द, लगातार उल्टी आना, बेचैनी या सुस्ती, और तेज़ी से शरीर का तापमान कम हो तो यह खतरे की घंटी है, तुरंत छाती का एक्सरे-रेडियोग्राफी के साथ छाती और पेट का अल्ट्रासाउंड करवाकर प्लाज्मा लीकेज का पता करना चाहिए। रोकथाम के आवष्यक उपाय करके और उचित समय पर ध्यान देकर जान बचाई जा सकती है। सभी मरीज़ों को पानी खूब पीना चाहिए। अगर प्लाज्मा लीकेज हो जाए तो वस्कुलर प्रिमिबिल्टी 24 से 48 घंटों में बनती है। अगर सहायक इलाज में देरी हो जाए तो प्लाज्मा लीकेज वाले मरीज़ों को शॉक हो सकता है और जान जाने का खतरा 12 प्रतिशत तक हो जाता है।
प्लाज्मा लीकेज के बाद 60 प्रतिशत मरीज़ों में पेट दर्द की शिकायत पाई जाती है। हाईपोवॉलेमिक शॉक रोकने या ठीक करने के लिए इंट्रावॉस्कुलर वॉल्यूम रिप्लीशन रोकना बेहद अहम होता है। हल्की समस्या वाले मामलों में जिनमें तुरंत मेडिकल सहायता मिल जाती है ऐसे मामलों में मुंह से रीहाईड्रेशन काफी होती है। लेकिन जिन मरीज़ों में इंट्रावॉस्कूलर वॉल्यूम लॉस हो चुका है उन्हें इंट्रा वेनस फल्यूड देने की सलाह दी जाती है। ब्लड ट्रांसफ्यूजन उन मामलों में देना उचित रहता है जब अत्यधिक ब्लीडिंग हो चुकी हो या जिनका हेमाटोक्रिट कम हो और तरल पदार्थ देने के बावजूद जो ठीक ना हो पा रहे हों। प्लेटलेट्स ट्रांसफ्यूजन हेमरेजिक को रोकने या नियंत्रित करने में कारगर नहीं माना गया लेकिन जिन लोगों में गंभीर थ्रोबोसाईटोपेनिया और बहुत ज़्यादा ब्लीडिंग हो उन्हें इसे करने की सलाह दी जाती है। फिज़ीशियन्स को 20 का मंत्र याद रखना चाहिए नब्ज़ में 20 की बढ़ोतरी, बीपी में 20 की कमी, उच्च और निम्न बीपी में 20 से कम का अंतर हो और बाजू पर 20 से ज़्यादा निशान हों तो ये गंभीर खतरे के लक्षण होते हैं और तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। डेंगू को रोकने की जि़म्मेदारी हम सब की है, ना कि सिर्फ सरकार की, क्योंकि डेंगू मच्छर घरों के बाहर जमा पानी में पैदा होते हैं ना कि गंदे पानी में।

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