नई दिल्ली
बच्चों में होने वाले कैंसर के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए एम्स में जन जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके संस्थान जाने माने बाल्य रोग विशेषज्ञों ने बच्चों में कैंसर के शुरूआती स्तर पर पहचान और इलाज के बारे में जानकारी दी।
बाल कैंसर विभाग के डॉ. संदीप अग्रवाल ने बताया कि बच्चों में ग्रंन्थियों के कैंसर की पहचान देरी से होती है या फिर प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर चिकित्सक सही से जांच नहीं कर पाते। जरूरी है कि चिकित्सकों को बच्चों का पेट अच्छे से जांचना चाहिए, किसी अमुक जगह पर दबाने से यदि बच्चे को तेज दर्द होता है तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए। डॉ. अग्रवाल ने बताया कि ग्रंन्थियों के कैंसर का इलाज संभव है कुछ मामलों में प्रभावित गं्रथि को निकाल दिया जाता है, जिसके बाद भी आजीवन कोई समस्या नहीं होती है। रेटिनोब्लास्टोमा यानि आंखों के कैंसर के बारे में जानकारी देते हुए डॉ. सुष्मिता ने बताया कि आंखों में हल्का सा भी भेंगापन, चमकीली सफेद आंखें या फिर आंखों से पानी निकलने की शिकायत पर तुरंत चिकित्सक को दिखाना चाहिए। पैलिएटिव केयर की डॉ. सुषमा भटनागर ने बताया कि कैंसर की अंतिम अवस्था में बच्चों को दर्द मुक्त जीवन दिया जा सकता है, अच्छी और बेहतर दवाओं की मदद से दर्द से मुक्ति संभव है।
कैसे होता है ब्लड कैंसर का इलाज
एम्स के बोन मैरो ट्रांसप्लांट विशेषज्ञ डॉ. समीर बक्शी ने बताया कि यह दो तरह से किया जाता है, मरीज के शरीर से ही स्टेम सेल्स लेकर, बाकी सेल्स को वापस में भेज दिया जाता है, दूसरे भाई या बहर द्वारा स्टेम सेल्स दान करके भी बोन मैरो ट्रांसप्लांट संभव है। एचएलए मिलान के बाद भी प्रत्यारोपण संभव होता है, ब्लड कैंसर के शिकार सौ में पांच लोगों को ही प्रत्यारोपण की जरूरत होती है जबकि कैंसर दोबारा होता है, अपनी खुद की सेल्स से किए गए इलाज का खर्च तीन लाख रूपये है जबकि सिबलिंग या भाई बहन के स्टेम सेल्स में एम्स में पांच लाख रूपये का खर्च आता है।