नई दिल्ली: लिक्विड मॉसकीटो रिपेलेन्ट का पॉइजन जानलेवा साबित हो सकता है। डॉक्टरों के पास इसमें पाए जाने वाले ट्रांसफ्लूथरीन कैमिकल के इलाज के लिए दवा तक नहीं है। यही वजह है कि एक मरीज की जान बचाने के लिए डॉक्टरों को प्लाज्मा एक्सचेंज करना पड़ा। 60 घंटे तक बच्चा आईसीयू में जिंदगी के लिए स्ट्रगल करता रहा। गंगाराम के डॉक्टरों की टीम ने बच्चे की जान बचाने के लिए यह सफल प्रयास किया। जी6पीडी डिफिसिएंसी के मामले में प्लाज्मा एक्सचेंज का यह पहला क्लिनिकल प्रयास है। इसी वजह से अमेरिकी जनरल क्लिनिकल टॉक्सिकोलॉजी ने इसे अपने हाल के अंक पब्लिश किया है।
नॉर्थ दिल्ली के बुराड़ी इलाके के 14 साल के बच्चे ने घर में रखा लिक्विड मॉस्क्युटो रिपेलेन्ट पीकर स्यूसाइड का प्रयास किया था। इसके पॉइजन से बच्चे का शरीर नीला पड़ गया। उसे इलाज के लिए सेंट स्टीफेंस हॉस्पिटल ले जाया गया। वहां पर चार से पांच घंटे तक चले इलाज के बाद डॉक्टरों ने उसे गंगाराम अस्पताल रेफर कर दिया। जब बच्चा गंगाराम के कैजुवल्टी में पहुंचा तो वह क्रिटिकल हालत में था। उसके लंग्स फेल हो चुके था। बच्चे की किडनी काम नहीं कर रही था, लिवर ने भी जवाब दे दिया था और साथ ही उसे जॉन्डिस भी हो गया था। इस वजह से उसका हीमोग्लोबीन लेवल 3.6 तक पहुंच गया था, जबकि नॉर्मल स्थिति में यह 13 से ज्यादा रहता है।
गंगाराम के पीडिएट्रिक इमरजेंसी के डायरेक्टर डॉक्टर अनिल सचदेव ने बताया कि बच्चे का रेड ब्लड सेल्स टूट रहा था, हीमोग्लोबीन कम होने की वजह से उसके बॉडी में ऑक्सीजन लेवल भी कम हो रहा था। पॉइजन के इलाज के लिए जो भी ट्रीटमेंट उपलब्ध था, उनलोगों ने सब किया, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। इसके बाद बच्चे को आईसीयू में मैथलीन ब्लू के लगातार डोज दिए गए और विटामिन सी का भी हाई डोज दिया गया। हालांकि बच्चे में जी6पीडी डिफिसिएंसी पाया गया। इसके बाद इलाज का प्रोटोकॉल चेंज करना जरूरी हो गया था।
डॉक्टरों की टीम ने बच्चे का प्लाज्मा एक्सचेंज करने का फैसला किया। डॉक्टर सचदेव ने कहा कि इसके लिए एक स्पेशल तकनीक है, जिसे स्पेशल मशीन की मदद से किया जाता है। इस प्रोसेस में बॉडी के ब्लड को बाहर निकाला जाता है और उस ब्लड को बाहर एक मशीन की मदद से फिल्टर किया जाता है। ब्लड के बाकी सेल्स जैसे रेड ब्लड सेल्स्, वाइट ब्लड सेल्स, प्लेटलेट्स को फिल्टर नहीं किया जाता है। फिल्टर के बाद ब्लड को फिर बॉडी के अंदर डाला जाता है। यह एक प्रोसेस होता है जिसमें एक तरफ से ब्लड निकलता है और दूसरी तरफ से ब्लड फिल्टर होकर बॉडी में जाता रहता है। इस तकनीक की मदद से बच्चे में सुधार हुआ।
डॉक्टर सचदेव ने कहा कि इस रिपेलेन्ट में ट्रांसफ्लूथरीन कैमिकल होता है, इसका यूज आमतौर पर कीड़े को मारने के लिए किया जाता है। लिक्विड रिपेलेन्ट को तैयार करने में किरोसीन का भी यूज किया जाता है। डॉक्टर का कहना है कि इसके पॉइजन का कोई तोड़ डॉक्टर के पास नहीं होता है। उन्होंने कहा कि लगातार 60 घंटे तक आईसीयू में ट्रीटमेंट चलता रहा और छह दिन बाद मरीज को छुट्टी दे दी गई। डॉक्टर ने कहा कि लिक्विड मॉसकीटो रिपेलन्ट में एक खतरनाक पॉइजन है, इसलिए गलती से भी इसे खाने या पीने की कोशिश नहीं करें, वरना जान तक जा सकती है।