मारीवाला हेल्थ इनिशिएटिव (एमएचआई) ने मंगलवार को मानसिक स्वास्थ्य और इसके अन्य मौजूदा सामाजिक-आर्थिक एवं पर्यावरणीय मुद्दों को मुख्य धारा में शामिल करने के उद्देश्य से एक उच्च स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया। कार्यशाला में मानसिक स्वास्थ्य पर रिपोर्टिंग पर भी चर्चा की गई। विशेषज्ञों ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समाचार लिखते हुए मेंटल हेल्थ हेल्पलाइन नंबर भी दिया जाना चाहिए। विशेषज्ञों ने इस बात पर भी जोर दिया कि संगठन की ओर से आत्महत्या के प्रयास को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने की लंबी समय से अपील की जा रही है। वर्ष 2017 में जारी मेंटल हेल्थ एक्ट में कुछ बेहतर प्रावधान किए गए हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं हैं।
मानसिक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण को फिर से परिभाषित करने की जरूरत पर बोलते हुए, राज मारीवाला, डायरेक्टर, मारीवाला हेल्थ इनिशिएटिव ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य एक लगातार विकसित होता मुद्दा है और इसे मौजूदा सामाजिक-आर्थिक और पर्यावरणीय परिदृश्य से अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए। वर्तमान में, मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा को बड़े पैमाने पर जैव-चिकित्सीय दृष्टिकोण से देखा जाता है, जबकि जरूरत मनोसामाजिक वास्तविकताओं पर ध्यान केंद्रित करने की है। मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों को समुदाय के नेतृत्व में और उन व्यक्तियों द्वारा प्रदान करने की आवश्यकता है जो उन व्यक्तियों की वास्तविकताओं से अवगत हैं, जिनकी वे सेवा कर रहे हैं। मानसिक स्वास्थ्य के बहु आयामों पर मीडिया को ध्यान देने की जरूरत पर प्रकाश डालते हुए, प्रीति श्रीधर, सीईओ, मारीवाला हेल्थ इनिशिएटिव ने कहा, “मानसिक स्वास्थ्य को एक व्यक्तिगत मुद्दे के रूप में देखने और ऐसा करना बंद करने की बहुत अधिक जरूरत है। मीडिया के लिए यह महत्वपूर्ण है कि इन मुद्दों पर रिपोर्टिंग करते समय न केवल समझदारी दिखाए, बल्कि हेल्थ सिस्टम, किफायती घरों की कमी, श्रम कानूनों और जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों को भी उजागर करे।”
मानसिक स्वास्थ्य पर मीडिया की भूमिका पर बोलते हुए, डॉ. अचल भगत, मनोचिकित्सक, अपोलो हॉस्पिटल ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य के बारे में मिथकों भरी बातचीत से बचना चाहिए। मानसिक स्वास्थ्य को अक्षमता से जोड़ना, हिंसा और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के बीच संबंध। इसके इतर ध्यान दिया जाना चाहिए: मानसिक स्वास्थ्य समस्या आम बात है, और मदद लेना ठीक है, मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए संसाधनों की कमी, प्रशिक्षित पेशेवरों की अपर्याप्त संख्या आदि अहम मुद्दे हैं।