मिर्गी के बाद भी बच्चा नॉर्मल जिंदगी जी सकता है

नई दवाइयों के विकास, मेडिकल आधुनिक तकनीकों के उपलब्धता और मिर्गी से जुडी स्थिति के प्रति ज्यादा से ज्यादा जागरूकता रोगियों को सामान्य जिंदगी बिताने में काफी मदद कर रही है। मिर्गी दूसरा सबसे आम मस्तिष्क विकार है। भारत में प्रतिवर्ष 5 लाख नवजात शिशु मिर्गी की बीमारी के साथ जन्म ले रहे है। पिछले दशक में सिर की चोट लगने के कारण 20 फीसदी व्यस्कों में मिर्गी के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। भारत में तकरीबन 95 फीसदी लोग मिर्गी का इलाज ही नहीं करवा पाते जबकि 60 प्रतिशत शहरी लोग दौरा पड़ने के बाद डॉक्टर से परामर्श लेते हैं। लेकिन केवल 10 फीसदी ही ग्रामीण भारतीय डॉक्टर से परामर्श ले पाते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि मिर्गी पीड़ित बच्चे सफल और खुशहाल जिंदगी बिता सकते है। कई प्रसिद्ध कवि, लेखक और खिलाडी मिर्गी से पीड़ित होने के बावजूद अपने क्षेत्र में सफल रहे है। जीवन में समस्याओं के प्रति सकारात्मक सोच ही सफलता और संतुष्टि के लिए महत्वपूर्ण है। बीमारी के प्रति हमारे नकारात्मक दृष्टिकोण को चुनौती दी जानी चाहिए जिससे इस बीमारी से ग्रस्त लोगों को अपनी जिंदगी सामान्य व खुशहाल बिताने में मदद मिलेगी।
मिर्गी की समस्या भारत सहित विकासशील देशों में सेहत से जुड़ी प्रमुख समस्या है। प्रतिवर्ष 3.5 मिलियन लोगों में मिर्गी की समस्या विकसित होती है जिसमें 40 फीसदी 15 साल से कम उम्र के बच्चे है और 80 फीसदी विकासशील देशों में रहते है। मिर्गी दिमाग से जुड़ा विकार है जिसमें दिमाग की कोशिकाओं की विद्युतीय गतिविधियां असामान्य हो जाती है। इस वजह से व्यक्ति असामान्य व्यवाहर करने लगता है। इस स्थिति की पहचान, जांच और मैनेज करना बहुत जरूरी है।
बच्चों के मामले मिर्गी के नए मामलों उल्लेखनीय योगदान करते है। बच्चों को प्रत्येक उम्र में अलग अलग प्रकार के दौरे पड़ सकते है। कुछ बच्चों को मिर्गी दिमाग में किसी चोट की वजह से हो सकती है। कुछ मामलों में बच्चे अनुवांशिक समस्या के चलते मिर्गी के साथ मानसिक रूप से अविकसित हो सकते है। मिर्गी के दौरे में आमतौर पर बच्चों को ज्वर दौरा (फेबराइल दौरा) पड़ता है जिसमें संक्रमण के साथ तेज़ बुखार हो जाता है।
इस बारे में सर गंगाराम अस्पताल के सीनियर न्यूरोलोजिस्ट डॉ. अंशु रोहतागी कहते हैं कि हालांकि दुनियाभर में मिर्गी के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा रही है, इसके बावजूद लोगों में अभी भी इस बीमारी को लेकर कई तरह की भ्रांतियां है। इस वजह से रोगियों को सही समय पर सही इलाज नहीं मिल पाता। इसलिए हमें मिर्गी जैसी बीमारी से जुड़ी जानकारियां व जागरूकता कार्यक्रम ज्यादा से ज्यादा करने की जरूरत है ताकि लोगों को पता चले कि ये बीमारी भी अन्य बीमारियों की तरह ही है।‘‘
न्यूरोलोजिस्ट के अनुसार दौरे के प्रकार व आवृति में समय के साथ बदलाव आ सकता है। कुछ बच्चों में मिर्गी की समस्या किशोर अवस्था के मध्य से देर में विकसित हो जाती है। एक और दौरे आने के रिस्क का स्तर 20-80 फीसदी के बीच होता है। ज्यादातर मामलों में पहला दौरा आने के बाद अगले छ महीने में दोबारा आने के चांस होते है। दोबारा दौरा आने का रिस्क उसके कारण पर निर्भर करता है। अगर दौरा बुखार की वजह से आता है तो दोबारा दौरे आने की संभावना बुखार को छोड़कर कम हो जाती है।
डॉक्टर रोहतगी कहते हैं कि मिर्गी के दौरा बच्चे की सीखने की क्षमता और अन्य विकास के क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है। स्कूल में मिर्गी ग्रस्त बच्चे की जानकारी देनी चाहिए और अगर स्कूल के समय पर दवाई देने की जरूरत है तो प्रमिशन स्लिप और जानकारी देना जरूरी है।
भारत में मिर्गी के बोझ को गरीबी कम करके और इसे रोकने के कारकों जैसे प्रसव के दौरान, परजीवी बीमारी और सिर की चोट की जानकारी देकर कम किया जा सकता है। प्राथमिक स्वास्थ्यकर्ताओं को सक्षम बनाकर इस बीमारी का जल्दी निदान ढूंढने और समय पर इलाज शुरू करके शहरी व ग्रामीण इलाकों में इलाज की असमानताओं के अंतर को खत्म किया जा सकता है।
जागरूकता बहुत महत्वपूर्ण है:
अगर आपके बच्चा मिर्गी से ग्रस्त हे तो आप और बच्चे के अध्यापक को निम्नलिखित जानकारी होनी चाहिए ताकि जब बच्चे को मिर्गी का अटैक आएं तो उन्हें पता होना चाहिए कि ऐसे समय में उन्हें क्या है।
: बच्चे के साथ रहें। दौरा समय होने पर खत्म हो जाएंगा।
: शांत तरीके से बात करे और दूसरों केा समझाएं कि क्या हो रहा है।
: बच्चे के सिर के नीचे कुछ मुलायम कपड़ा इत्यादि रख दे।
: खतरनाक या नुकीली चीजों को दूर कर दे।
: बच्चे को नियंत्रित करने की कोशिश न करे।
: दौरे का समय चेक करे कि कितने समय के लिए दौरा आया।
: अगर दौरा 5 मिनट से ज्यादा समय का है तो तुरंत चिकित्सीय सहायता ले।
: इस दौरान बच्चे के मुंह में कुछ न डाले।
: बच्चे को शांत तरीके से खतरे की चीज़ांे या रास्ते से हटाने की कोशिश करे।
: दौरे के बाद बच्चे को आश्वस्त करते हुए बात करे।
: जब बच्चे की कंपकंपाहट रूक जाएं तो उसे आराम की स्थिति में लाएं।
: बच्चे को पूरी तरह होश आने तक उसके साथ रहे।

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