मेडिसिन और लॉ पर आयोजित दूसरे राष्ट्रीय सम्मेलन-2016 में डॉक्टर बिरादरी, अस्पतालों, कानूनी पेशेवरों और नीति निर्माताओं के बीच संवादहीनता को खत्म करने या पाटने के लिए पिछले दिनों एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया। इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिसिन एंड लॉ (आईएमएल) की ओर से आयोजित सम्मलेन में स्वास्थ्य रक्षा के क्षेत्र में कई कानूनी मुद्दों पर चर्चा हुई और कई मेडिको-लीगल समस्याओं के समाधान के लिए हल सुझाए गए। शनिवार को स्वास्थ्य रक्षा में कानूनी सुधारों की सिफारिश पर श्वेत पत्र जारी किया गया, जिसे उचित माध्यम से नीति निर्माताओं और नियंत्रकों के पास जमा कराया जाएगा।
इस दस्तावेज में मेडिकल के क्षेत्र में उभरने वाले कई कानूनी मसलों पर विस्तार से चर्चा की गई और उन्हें उभारा गया। श्वेत पत्र में ब्रेन स्टेम डेथ की घोषणा या उसे प्रमाणित करने के लिए नए कानून की जरूरत पर जोर दिया गया। अगर यूनिफॉर्म डिटरमिनेशन एक्ट के तहत यह कानून बन गया तो डॉक्टर कानून का सहारा लेकर दिमागी रूप से मृत हो चुके व्यक्ति का इलाज करने से इनकार कर सकेंगे और यह कह सकेंगे कि इस मामले में इलाज का कोई मतलब नहीं है। सम्मेलन में लिविंग विल, डॉक्टरों को पहले से निर्देश, डीएनआर निर्देश को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे पर भी चर्चा की गई। लिविंग विल ऐसे व्यक्ति का भविष्य का इलाज के संबंध में लिखित बयान होता है, जो बोलकर या बातचीत कर डॉक्टरों को अपनी इलाज संबंधी इच्छा बताने में असमर्थ रहते हैं। लिविंग विल को डॉक्टरों को मरीज का दिशा-निर्देश या एडवांस डायरेक्टिव भी कहते हैं।
मेडिसिन और लॉ पर आयोजित दूसरे राष्ट्रीय सम्मेलन-2016 में प्रमुख वक्ता और अधिवक्ता महेंद्र कुमार बाजपेयी ने कहा कि भारत में इन दिनों अदालतों में मेडिकल लापरवाही के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। अस्पतालों में डॉक्टरों से मारपीट के मामले भी बढ़े हैं। इससे पूरे सिस्टम के फेल होने और डॉक्टरों और मरीजों के बीच भरोसा टूटने के संकेत मिलते हैं। नरम नियामक ढांचे, मरीजों की ऊंची-ऊंची काल्पनिक उम्मीदों और राष्ट्र के खास सामाजिक-आर्थिक चरित्र ने इस समस्या को और बढ़ाया है। यह भारत जैसे विकासशील देश के लिए अच्छा नहीं है। सम्मेलन इन विवादास्पद मुद्दों की ओर नीति निर्माताओं और नियंत्रकों का ध्यान खींचने की उम्मीद करता है। इस सम्मेलन में कानूनी और नियामक ढांचे में जरूरी सुधारों की सिफारिश भी की गई।
सम्मेलन में डॉ. रविंद्र पांडुला ( सांसद-अमलापुरम, आंध्र प्रदेश), एमसीआई में एकेडेमिक काउंसिल के चेयरमैन डॉ. वी. पी. मिश्रा, राष्ट्रीय उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग के सदस्य डॉ. बी. सी. गुप्ता, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के महानिदेशक डॉ. बी. डी. अठानी सम्मानित अतिथि थे।
अधिवक्ता वाजपेयी ने कहा कि यह गलत और अनुचित है कि अदालतों को उन समस्याओं का समाधान निकालने पर मजबूर होना पड़ रहा है, जिसका हल नीति निर्माताओं या मेडिकल बिरादरी को निकालना चाहिए। स्वास्थ्य रक्षा और दवाइयों के क्षेत्र में कानूनी मुद्दों की पहचान के लिए डॉक्टरों को आगे आना चाहिए और समय-समय पर उठने वाली इन समस्याओं का व्यावहरिक और कानूनी रूप से उचित समाधान खोजना चाहिए। सम्मलेन में ट्रांसप्लांट, एचआईवी, बाल, त्वचा और नाखून संबंधी रोगों की इलाज से संबंधित, गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए विश्ष योग्यता वाले डॉक्टरों, प्राइवेट अस्पताल, सार्वजनिक अस्पताल और आपातकालीन दवाई से संबंधित मुद्दों पर की गई सिफारिशों पर सभी डॉक्टर सर्व सम्मति से सहमत दिखे और इन्हें रचनात्मक ढंग से श्वेत पत्र के माध्यम से जारी किया गया।
सम्मेलन में स्वास्थ्य रक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में कई ऐसे महत्वपूर्ण कानूनी मुद्दों पर चर्चा हुई, जो अस्पष्ट हैं और जिसकी तरफ अभी तक डॉक्टरों का पर्याप्त ध्यान नहीं गया था। सम्मेलन में अंगदान करने वाले डोनर या उसकी फैमिली को पैसा न देकर अन्य तरीके से पुरस्कार या इनसेंटिव देना, जैसे अंगों को प्राप्त करने में उन्हें प्राथमिकता देना, अच्छी तरह जांच-पड़ताल के बाद कुछ शर्तों के साथ एड्स से ग्रस्त दंपति को बच्चा गोद लेने की इजाजत देना, डॉक्टरों की वेबसाइट और उस पर दिखने वाले कंटेंट के लिए नियम तय करने और टेली-कंसलटेशन के साथ दिशा-निर्देश तैयार करने आदि तमाम मुद्दों पर चर्चा हुई।
वाजपेयी ने कहा कि यह सम्मलेन स्वास्थ्य रक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में कानूनी मुद्दों की पहचान, उन पर व्यापक विचार-विमर्श और इन समस्याओं को सुलझाने के लिए हल सुझाने का प्लेटफॉर्म है। सम्मेलन के आयोजन के दूसरे साल में पहले साल की तुलना में प्रासंगिक समुदायों की भागीदारी में भारी बढ़ोतरी हुई। स्वास्थ्य रक्षा के क्षेत्र में कानूनी मुद्दे सुलझाने के लिए प्रभावशाली कदम उठाने की सिफारिश कर सम्मेलन ने अपना अलग ऊंचा मुकाम बना लिया है। सम्मेलन में डॉक्टरों की बिरादरी की ओर से आए सुझाव और सिफारिशों को उचित रूप से नीति निर्माताओं या नियामकों तक पहुंचा दिया जाएगा।