नई दिल्ली: रीढ़ की हड्डी में कर्व आ जाना, यानि कि रीढ़ की हड्डी सीधा रहने के बजाय मुड़ जाना। यह एक प्रकार की बीमारी है, जिसे डॉक्टरी भाषा में स्कोलिओसिस कहा जाता है। यह बीमारी बहुत रेयर नहीं है, अक्सर देखने को मिलता है। नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ आर्थराइटिस एंड मॉस्कुलोस्केलिटल एंड स्किन डिजिज की मानें तो हर 1000 बच्चों में 3 से 5 की रीढ़ की हड्डी में कर्व आ जाता है। समय पर इसका इलाज न होने से बच्चों का चलना मुश्किल हो जाता है।
न्यूरो सर्जन या स्पाइन डिपार्टमेंट से जुड़े डॉक्टर इस बीमारी का इलाज करते हैं। इस बारे में न्यूरोसर्जन का कहना है कि सबसे ज्यादा जरूरी है कि लोग समय पर बीमारी को समझें और इलाज के लिए अस्पताल पहुंचे। एडवांस्ड स्पाइनल फ्यूजन सर्जरी के जरिए इसे ट्रीट किया जाता है। न्यूरो और स्पाइन सर्जरी के सीनियर कंसलटेंट डॉक्टर मनीष वैश्य का कहना है कि अक्सर इस बीमारी पर लोगों का ध्यान नहीं जाता है। मरीज को बीमारी की लास्ट स्टेज में इसका पता चलता है। इलाज के लिए आधुनिक व्यवस्था और सर्जरी का विकल्प होने के बावजूद अधिकांश लोग इसका लाभ नहीं उठा पाते हैं। स्कोलिओसिस के कई युवा मरीज भी हैं, जिनकी हड्डियां अभी डिवेलप ही हो रही हैं और उनकी स्पाइन में कर्व आ गया है। ऐसे मरीजों को इलाज की जरूरत होती है। जिन मरीजों की हड्डियां पूरी तरह से विकसित हो चुकी हैं और उनकी रीढ़ में कर्व नहीं है, उन्हें इलाज की जरूरत नहीं पड़ती।
डॉक्टर आदित्य का कहना है कि यदि स्कोलिओसिस की बीमारी का समय पर इलाज नहीं हो तो रिब-केज में मौजूद स्पेस कम होने लगता है। इस वजह से स्पाइनल कोर्ड पर प्रेशर पड़ता है। स्पाइनल कोर्ड पर प्रेशर से मरीज को लकवा मार सकता और ब्लैडर और आंत पर भी इसका असर हो सकता है। रीढ़ में ऐसे मोड़ जिनका घुमाव 45 डिग्री से ज्यादा है और ऐसे घुमाव जो दवाओं से ठीक नहीं हो सकते उन्हें सर्जरी की जरूरत होती है।
डॉक्टर वैश्य ने कहा कि एडवांस्ड स्पाइनल फ्यूजन सर्जरी में इफेक्टिव हड्डी को जोड़ने के लिए मैटल की एक रॉड का इस्तेमाल किया जाता है। फ्यूजन सर्जरी में मरीज की रीढ़ के दोनों तरफ मैटल की रॉड लगा दी जाती है जिसे बाद में हड्डी के एक टुकड़े से जोड़ दिया जाता है। इससे रीढ़ के बीच की हड्डी धीरे-धीरे विकसित हो जाती है। इस प्रक्रिया को स्पाइनल फ्यूजन कहते हैं। जब यह प्रोसीजर चल रहा होता है तो स्पाइनल के दोनों तरफ लगी रॉड की वजह से हड्डी एक दम सीधी रहती है। इंट्रा ऑपरेटिव इमेज गाइडेंस और इलेक्ट्रॉफीजियोलॉजिक निगरानी के जरिये यह सर्जरी की जाती है।