सेहत संवाददाता
सफदरजंग अस्पताल में छह फरवरी पहला ऐसा किडनी प्रत्यारोपण किया गया, जिसमें किडनी प्राप्तकर्ता और दानकर्ता दोनों के ब्लड ग्रुप अलग अलग थी, इसे एबीओ किडनी प्रत्यारोपण कहा जाता है। यह पहली बार था कि अस्पताल में ऐसा किडनी प्रत्यारोपण किया गया जहां दानकर्ता और प्राप्तकर्ता के रक्त समूह अलग-अलग थे।
एबी पॉजिटिव ब्लड ग्रुप वाली 28 वर्षीय महिला ने अपने 43 वर्षीय पति को किडनी दान की, जिसका ब्लड ग्रुप बी पॉजिटिव था। सफदरजंग अस्पताल में अंग प्रत्यारोपण की प्रभारी अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक डॉ. वंदना चक्रवर्ती ने बताया कि किडनी प्रत्यारोपण सफल रहा, ऑपरेशन के दूसरे दिन तक किडनी के पैरामीटर सामान्य हो गए और मरीज को बिना किसी जटिलता के छुट्टी दे दी गई। वीएमएमसी (वर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज)और एसजेएच (सफदरजंग अस्पताल) की प्रिंसिपल डॉ. गीतिका खन्ना ने ट्रांसप्लांट टीम के प्रयासों की सराहना की। मरीज को दो साल पहले किडनी फेल्योर का पता चला था और वह छह महीने से डायलिसिस पर था। पूरे ट्रांसप्लांट की जटिलता यह थी कि जहां पत्नी का ब्लड ग्रुप एबी पॉजिटिव था, वहीं पति का ग्रुप बी पॉजिटिव था। यूरोलॉजी के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. पवन वासुदेवा ने कहा, इससे अनोखी चुनौतियाँ सामने आईं क्योंकि पति के शरीर में पहले से ही एंटीबॉडीज थीं जो पत्नी की किडनी को अस्वीकार कर सकती थीं और प्रत्यारोपण विफल हो सकता था। नेफ्रोलॉजी के प्रोफेसर और यूनिट प्रमुख डॉ. राजेश कुमार ने कहा, पति में एंटीबॉडी के उच्च स्तर को कम करने के लिए डिसेन्सिटाइजेशन की एक प्रक्रिया की गई ताकि प्रत्यारोपण का प्रयास किया जा सके।
प्रत्यारोपण टीम का नेतृत्व डॉ. पवन वासुदेवा (प्रोफेसर और एचओडी यूरोलॉजी), डॉ. हिमांशु वर्मा (प्रोफेसर और प्रमुख) नेफ्रोलॉजी विभाग, और डॉ. राजेश कुमार (प्रोफेसर और यूनिट हेड नेफ्रोलॉजी) ने किया। डॉ. सुशील गुरिया की अध्यक्षता वाली एक टीम द्वारा एनेस्थीसिया सहायता प्रदान की गई। यूरोलॉजी के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. पवन वासुदेवा ने कहा कि यह सब चिकित्सा अधीक्षक, सफदरजंग अस्पताल डॉ. वंदना तलवार, प्रिंसिपल डॉ. गीतिका खन्ना और अतिरिक्त एमएस डॉ. वंदना चक्रवर्ती के निरंतर समर्थन और प्रोत्साहन के कारण ही संभव हो सका।