सेंसर मशीन से ठीक होगा कूल्हे और घुटने का दर्द

नई दिल्ली: कूल्हे और घुटने के दर्द को ठीक करने के लिए अब अधिक दिन तक दवाओं का इस्तेमाल नहीं करना पड़ेगा। चोट लगने बाद कराई जाने वाली फिजियोथेरेपी का अब बेहतर विकल्प उपलब्ध है। सफदरजंग अस्पताल के स्पोटर्स इंजरी सेंटर में इसके लिए सेंसर युक्त नी फीडबैक मशीन लगाई गई है। जिससे दो से तीन हफ्ते में घुटने और कूल्हे के मूवमेंट को सही किया जा सकता है।

सोमवार को मशीन की औपचारिक शुरूआत स्वास्थ्य मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव संजीव कुमार द्वारा की गई। संस्थान के निदेशक डॉ. दीपक चौधरी ने बताया कि बायोफीड बैक डिजिटल रीहैब कंप्यूटर प्रोग्रामिंग पर आधारिक फिजियोथेरेपी मशीन है, जिसे फीनलैंड की कंपनी की मदद से लगाया गया है। संस्थान के स्पोर्ट्स मेडिसन विशेषज्ञ कर्नल बीहू नायक ने बताया कि बायोफीड बैक की मदद से घुटने और कूल्हे के इलाज को पर्सनलाइज्ड (व्यकि्तगत) कर दिया गया है। सर्जरी के बाद मांसपेशियों के खिंचाव को दूर करने के लिए अब तक जो फिजियोथेरेपी कराई जाती थी, उसमें सभी मरीज को एक तरह का ही प्रशिक्षण दिया जाता था। जबकि बायोफीडबैक मशीन मरीज की जरूरत के आधार पर मांसपेशियों को मजबूत करने का दिशानिर्दश देती है। मशीन पर बैठते ही कुर्सी की तीन सेंसर लाइन मशीन में मरीज का बायोफीडबैक उतार देगीं। सोमवार को बायोफीडबैक मशीन के अलावा कंप्यूटर नेविगेशन मशीन की भी औपचारिक शुरुआत की गई।

कैसे काम करती है बायोफीड बैक मशीन
सर्जरी के बाद फालोअप के लिए आए मरीजों को एक कार्ड जारी किया जाता है। जिसमें मरीज की इलाज संबंधी व्यक्तिगत जानकारी फीड की जाती है। कार्ड को मशीन पर पंच करते ही बीमारी और मांसपेशियों में खिंचाव की स्थिति के अनुसार मरीज का चार्ट तैयार हो जाता है। जिसमें घुटने, कूल्हे और एड़ी को किस पैमाने तक खिंचाव की जरूरत है, इसके पैरामीटर सामने आ आते हैं। दो से तीन हफ्ते तक मशीन पर व्यायाम करने के बाद मरीज उस मानक तक पहुंच जाता है तो उसका दर्द कम होने के साथ ही मांसपेशियां भी मजबूत हो जाती है।

क्या होगा फीडबैक विश्लेषण सिस्टम से फायदा
– मशीन पर पैर रखते ही मशीन खींच देगी जरूरत का खाका
– मरीज को बेवजह दर्द निवारक दवाएं और फिजियोथेरेपी नहीं करानी होगी
– मरीज की जरूरत के आधार ही व्यायाम करना होगा, जिससे वह सही हो सके
– खिलाड़ी, सामान्य व्यस्क और बुजुर्ग की उम्र और काम के अनुसार मशीन के मानक अलग अलग होते हैं
– दो से तीन हफ्ते के बाद मरीज को पूरी तरह स्वस्थ्य किया जा सकता है।

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