नई दिल्ली: एक्सिडेंट के बाद सुरेंद्र सिंह रावत के पैर की नस इस तरह दब गई कि ब्लड सर्कुलेशन ही रुक गया। ज्यादातर डॉक्टरों ने उन्हें पैर काटने की सलाह दे दी थी। सुरेंद्र ने इंटरनेट पर स्टेम सेल के बारे में पढ़ा था। उन्होंने रिसर्च की और उनकी एक डॉक्टर से मुलाकात हो गई। डॉक्टर ने न सिर्फ पैर काटने की नौबत को खारिज किया बल्कि उनके पैरों में फिर से जान डाल दी।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि आने वाले समय में 60 से ज्यादा बीमारियों में स्टेम सेल थेरपी कारगर होगी। इसके लिए जापान और अमेरिका की तरह भारत में इसे कानून के दायरे में लाने की जरूरत है। मुंबई के क्रीटी केयर हॉस्पिटल के स्टेम सेल एक्सपर्ट डॉक्टर बीएस राजपूत का कहना है कि अब स्पाइनल कॉर्ड इंजरी में नैनो तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें बोनमैरो निकाला जाता है और उससे मजेनकिमल सेल बनाया जाता है।
इससे स्पेशल ग्रोथ फैक्टर निकालकर न्यूरल प्रिक्सर स्टेम सेल बनता है। यह नर्व तैयार होने से पहले की स्थिति होती है। इस तकनीक को जेल की तरह इस्तेमाल किया जाता है ताकि स्टेम सेल का ज्यादा असर उसी जगह हो, जहां इसकी जरूरत होती है। जेल को इंजेक्शन के जरिए नर्व सेल में इंजेक्ट किया जाता है और मरीज दो सेशन में यह ठीक हो जाता है। डॉक्टर ने बताया कि नी ट्रांसप्लांट के मामलों में तीन लाख रुपये तक खर्च हो जाता है। वहीं स्टेम सेल से केवल दो से तीन सेशन में एक लाख रुपये में मरीज ठीक हो रहे हैं।