लखनऊ
जब भी कोई नवजात जन्म लेता है, तो उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सिफ परिवार की नहीं, बल्कि गांव की आशा कार्यकता की भी होती है। गृह आधारित नवजात देखभाल (एचबीएनसी) कार्यक्रम के जरिए ये स्वास्थ्य कर्मी घर तक पहुंच रही हैं। वह मां की चिंता भी समझती हैं और नवजात की हर सांस पर नजर भी रखती हैं। करीब 92 प्रतिशत नवजात की एचबीएनसी कार्यक्रम के तहत देखभाल हो रही है।
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य महाप्रबंधक डॉ. सूर्यान्शु ओझा ने बताया कि एचबीएनसी कार्यक्रम के तहत वर्ष 2024-25 में उत्तर प्रदेश में 40.13 लाख नवजातों की देखभाल का लक्ष्य रखा गया था, जिसके सापेक्ष आशा कार्यकताओं के माध्यम से 36.81 लाख नवजातों की घर-घर देखभाल की गई। यह लक्ष्य का करीब 92 प्रतिशत है। उन्होंने बताया शिशु के जीवन के पहले 42 दिन बेहद अहम होते हैं। इस दौरान रोग के छोटे लक्षण भी गंभीर बीमारी का संकेत हो सकते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए पूरे प्रदेश में एचबीएनसी कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसके तहत प्रशिक्षित आशा कार्यकर्ता संस्थागत प्रसव होने पर जन्म के तीसरे, सातवें, 14वें, 21वें, 28वें और 42वें दिन, जबकि गृह प्रसव की स्थिति में जन्म के पहले दिन से ही कुल सात बार घर जाकर नवजात की जांच करती हैं। वे खतरे के शुरुआती लक्षणों की पहचान कर समय रहते नवजातों को अस्पताल भेजती हैं, कम वजन या समय से पहले जन्मे बच्चों की विशेष देखभाल के तरीके सिखाती हैं और माताओं को स्वच्छता, स्तनपान, टीकाकरण व नवजात देखभाल से जुड़ी अहम बातें समझाती हैं।