नई दिल्ली,
सामान्य तौर पर यदि आप भारतीय महिलाओं से यह प्रश्न करेंगे कि क्या वह सनस्क्रीन (Sunscreen) का इस्तेमाल करती हैं तो दस में से आठ महिलाओं का जवाब हां में होगा और अधिकांश महिलाएं सनस्क्रीन का प्रयोग चिकित्सक की सलाह बिना करती हैं। जबकि त्वचा रोग विशेषज्ञों का कहना है कि भारतीय क्योंकि धरती के कटिबंधीय या ट्रापिकल क्षेत्र में रहते हैं इसलिए हमारी त्वचा को यूवी किरणों से प्राकृतिक रूप से रक्षा कवच प्राप्त है। भारतीयों की त्वचा पर पाए जाने वाला मेलानिन हमारे त्वचा के प्राकृतिक रंग के लिए जिम्मेदार माना जाता है और यही मेलानिन यूवी किरणों से हमारी त्वचा की रक्षा भी करता है। इसलिए सभी भारतीयों के लिए सनस्क्रीन के लिए सनस्क्रीन के प्रयोग को सही नहीं कहा जा सकता। यदि आपकी त्वचा को सनस्क्रीन की जरूरत नहीं है तो वास्तव में इसके खतरनाक परिणाम भी हो सकते हैं।
राममनोहर लोहिया अस्पताल के त्वचा रोग विभाग के डॉ. कबीर सरदाना ने बताया एक समय था जबकि देश में सनस्क्रीन बनाने वाली केवल एक फार्मास्यिुटिकल कंपनी (Pharmaceutical company )थी और एक त्वचा रोग विशेषज्ञ के तौर पर हम 25 साल से अधिक उम्र की महिलाओं मेंकेवल मुंहासों की समस्या ही देखते थे। वर्ष 1990 के बाद सनस्क्रीन बनाने वाली कंपनियों में गजब का उछाल आया और महिलाएं सनस्क्रीन और ब्यूटी उत्पादों को ओवर द काउंटर (Over the Counter) या चिकित्सक की बिना सलाह पर खरीदने लगीं। मेरे पास 25 साल से अधिक उम्र की यदि कोई महिला बिना किसी हार्मेनल परेशानी के मुहांसों की शिकायत लेकर आती है तो उससे मेरा सबसे पहला प्रश्न यही होता है कि क्या आप सनस्क्रीन या मॉश्चराइजर का प्रयोग करती हैं? इनमें अधिकांश महिलाओं का जवाब हां में होता है। डॉ. कबीर कहते हैं कि आश्चर्यजनक बात यह है कि जिन महिलाओं की त्वचा तैलीय होती है वह भी सनस्क्रीन का प्रयोग करती हैं तैलीय त्वचा में प्राकृतिक रूप से सक्रिय कैमिकल तत्व लिपोफिलिक होता है जो त्वचा को अधिक तैलीय बना देता है। अधिकांश महिला चिकित्सक की बिना सलाह पर सनस्क्रीन का प्रयोग कर रही होती हैं, केवल सनबर्न (Sunburn) की स्थिति में चिकित्सक सनस्क्रीन प्रयोग करने की सलाह देते हैं।
क्या भारतीय महिलाओं को सनस्क्रीन की जरूरत है?
भारतीय महिलाओं को सनस्क्रीन (Sunscreen) का प्रयोग करना चाहिए या नहीं इस बात को प्रमाणित करने के लिए हमारे देश में अभी तक किसी भी मेडिकल शिक्षण संस्था द्वारा आधिकारिक शोध नहीं किया गया है। जब सनस्क्रीन की प्रमाणिकता की बात आती है तो हम अकसर वेस्टर्न देशों के शोधों का प्रयोग करते हैं, सत्य यह है कि कुछ डरमेटोेलॉजी डिस्आर्डर (Dermatologist Disorders )को यदि छोड़ दिया जाएं तो अधिकांश भारतीयों को सनस्क्रीन की जरूरत होती ही नहीं है जबकि विदेशों में भौगौलिक स्थितियां अलग होने की वजह से त्वचा के कैंसर से बचने के लिए सनस्क्रीन लगाने की सलाह दी जाती है। यदि अधिक गहराई में जाते हैं तो हमें पता चलता है कि घर के कमरे के अंदर की लाइट फ्लोसेंट लाइट में भी यूवी किरणें होती हैं, ऐसे मरीज जिन्हें घर के कमरे की लाइट में भी सनबर्न की समस्या होती है उन्हें जेनेटिक फोटो सेंसिविटी डिस्आर्डर (Genetic Photo Sensitivity Disorder) होता है जो कि 0.1 प्रतिशत से भी कम होता है। इन मरीजों को सनस्क्रीन दिया जा सकता है। मेलाज्मा या छाइयों की शिकायत होने पर चिकित्सक सनस्क्रीन लगाने की सलाह दे सकते हैं, बावजूद इसके सनस्क्रीन मैलाज्मा (Melasma) को ठीक नहीं करते बल्कि केवल इसके फैलाव को रोकता है।
क्या हो सकते हैं सनस्क्रीन के दुष्प्रभाव
डॉ. कबीर कहते हैं कि त्चचा की एलर्जी सहित सनस्क्रीन के कई तरह के दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं। जबकि चिकित्सक की सलाह बिना इस्तेमाल किए गए सनसक्रीन की वजह से मुंहासों की समस्या अधिक देखी जाती है। लगभग सभी तरह के सनस्क्रीन में त्वचा को अधिक तैलीय बनाने वाली कैमिकल लिपोफिलिक होता ही है, जिसकी वजह से त्वचा में मुहांसे होते हैं। इस संदर्भ में डॉ. मिल्स जेआर और डॉ. एएम क्लींगम के शोधपत्र के अनुसार सनस्क्रीन और यूवी किरणों की वजह से ही मुहांसे होते हैं। आरएमएल अस्पताल में गर्मियों में मुहांसे अधिक होने की वजह पर शोध पत्र प्रकाशित किया था, जिसमें सनस्क्रीन को मुहांसों की वजह बताया गया, इसके बाद देश की एक फार्मा कंपनी ने हमारे शोधपत्र को अपने उत्पाद को बेचने के लिए प्रयोग किया। हमने यह भी देखा कि जो महिलाएं 25 के बाद सनस्क्रीन या मॉश्चराइजर (Moisturizers )का प्रयोग करती हैं उन्हें एंटीबायोटिक, रेटिनॉयड, ट्रॉपिकल एलर्जी आदि कई तरह की त्वचा संबंधी परेशानियां हो गई, जिसके इलाज के लिए महिलाओं द्वारा काफी पैसा भी खर्च किया गया।
सूरज की रौशनी की वजह से त्चचा को होने वाले नुकसान को कई अन्य तरीकों से बचा जा सकता है, लेकिन हमारे देश की बड़ी आबादी की जो कि सीधे सूरज की रोशनी की संपर्क में काम नहीं करती है जैसे कि मजदूरी आदि, उन्हें सनस्क्रीन की जरूरत नहीं है। एक बात तय है कि सनब्लॉक के लिए इस्तेमाल की जाने वाली महंगी क्रीम न तो आपको गोरा नहीं कर सकती हैं और न ही मुहांसों से बचाव कर सकती हैं।