दिल्ली के 2000 बच्चे थैलीसीमिया के शिकार हैं, इन बच्चों को हर महीने व हर हफ्ते तीन से चार यूनिट खून की जरुरत पड़ती है। खून दान के प्रति लोगों का रूझान कम होने की वजह से इन्हें मजबूरन निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है, जहां महंगा इलाज होने के कारण कई बार बीच में ही इलाज छूट जाता है। दिल्ली सरकार के केवल चार अस्पताल फिलहाल सीमित सुविधाओं के साथ बच्चों का इलाज कर रहे हैं।
गुरुतेग बहादुर अस्पताल के पीडियाट्रिक्स विभाग के डॉ. सुशील गुंबर ने बताया कि इन बच्चों को बीमारी की गंभीरता और उम्र के अनुसार हर हफ्ते या महीने दो से तीन यूनिट खून की जरुरत होती है, विशेष सुविधा और परेशानी से बचाने के लिए इन्हें बिना खून दान किए खून चढ़ाया जाता है। थैलीसीमिक इंडिया की प्रमुख डॉ. शोभना तुली ने बताया कि सरकारी अस्पताल में निशुल्क मिलने वाले इलाज के लिए निजी अस्पताल में इन मरीजों को हर बार 8 से 20 हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं। थैलीसीमिया के इलाज की गाइडलाइन कहती हैं कि मरीज में 9.5 हीमोग्लोबिन होने पर खून चढ़ा लेना चाहिए, लेकिन महंगा इलाज होने पर कई बार माता पिता 6.4 हीमोग्लोबिन होने पर भी खून नहीं चढ़वाते। इस स्थिति में संक्रमण बढ़ने का खतरा रहता है। सरकारी सुविधाएं भी इन मरीजों के लिए कम है, सरकारी नौकरी और कई बार स्कूल में दाखिले पर भी इन्हें मना कर दिया जाता है।
2000 हैं शिकार सरकारी में केवल 250 का इलाज
थैलीसीमिया के दिल्ली में पंजीकृत 2000 बच्चें हैं, जिसमें से केवल दिल्ली सरकार के चार प्रमुख सरकारी अस्पताल में 250 मरीजों का इलाज चल रहा है। जीटीबी, चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय, लोकनायक जयप्रकाश के अलावा दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल में खून चढ़ाया जाता है। जबकि मरीजों की संख्या के आधार पर सुविधा बढ़ाई जानी चाहिए ।
क्या है बीमारी
थैलीसीमिया रक्त संबंधी जेनेटिक बीमारी है। जिससे खून में अनियंत्रित हीमोग्लोबिन बनता है, लाल रक्त कणिकाओं में ऑक्सीजन की आपूर्ति करने वाले प्रोटीन की मात्रा कम या अधिक होने पर इसे अल्फा और बीटा थैलीसीमिया कहा जाता है। प्रोटीन अधिक होने पर आयरन कम लेने की सलाह दी जाती हैं जबकि प्रोटीन की कमी पर होल ब्लड चढ़ाया जाता है।
कितने प्रकार का थैलीसीमिया
माइनर- माइनर थैलेसिमिया का इलाज खून बढ़ाने के लिए आयरन की दवा लेने, हरी सब्जियों और फलों के सेवन से रोगी स्वस्थ रहता है। इसमें रक्त बदलने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
मेजर- मेजर थैलेसिमिया से पीड़ितों बच्चे में नया खून बहुत धीमी गति से बनाता है। ऐसे बच्चों को प्रत्येक माह या इससे कम दिनों के अंतर में खून चढ़ाना होता है। इस प्रक्रिया में कई बार आयरन की अधिक मात्रा भी हो जाती है।
रोग के लक्षण
-बच्चे में 6 से 18 माह के भीतर रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
-बच्चा पीला पड़ जाता है, पूरी नींद नहीं लेता।
-खाना-पीना अच्छा नहीं लगता है।
-बार-बार उल्टियां और दस्त होते हैं, बुखार बना रहता है।