बच्चों की थाली में प्रोटीन से ज्यादा कैलोरी का कब्जा

नई दिल्ली, बच्चों के खाने की थाली में प्रोटीन की जगह सिकुड़ रही है। कैलोरी और ट्रांसफैट की अधिकता ने पौष्टिक तत्वों पर कब्जा कर लिया है। जिसके कारण 12 साल से 14 साल की उम्र के बच्चे भी फैटी लिवर और दिल की बीमारी के नजदीक हैं। इंडियन डायटेटिक एसोसिएशन द्वारा शहर के 157 स्कूल के तीन हजार बच्चों पर सर्वे किया गया। जिसमें पश्चिमी दिल्ली के स्कूली बच्चे दक्षिणी दिल्ली के स्कूली बच्चों की अपेक्षा कहीं अधिक मोटे पाए गए।

इंडियन डायटेटिक एसोसिएशन द्वारा तैयार प्रश्नपत्र के आधार पर बच्चों में कैलोरी, प्रोटीन, और ट्रांसफैट के सेवन की जानकारी ली गई। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार स्कूल में पांच से छह घंटे बिताने के दौरान बच्चों ने सामान्य से पचास कैलोरी अधिक का सेवन किया, जिसमें उनके टिफिन में भेजे गए खाने में भी कैलोरी की अधिकता पाई गई। बच्चों की लंबाई, उम्र और वजन के आधार पर किए गए सर्वे में पश्चिमी दिल्ली में सामान्य से अधिक मोटे बच्चों का प्रतिशत 34 पाया गया, जबकि दक्षिणी दिल्ली में यह मात्रा 18 प्रतिशत तक ही सीमित थी। यही नहीं पश्चिमी दिल्ली में 12 साल से 14 साल के 94.4 प्रतिशत बच्चों ने पसंदीदा खाना जंक फूड को बताया, जबकि केवल पांच फीसदी बच्चों ने ही प्रोटीन युक्त भोजन को पंसदीदा भोजन बताया।

सर्वे की प्रोजेक्ट इंचार्ज डॉ. सीमा पुरी ने बताया बच्चों के रहने की परिस्थितियों का भी मोटापे पर खासा असर रहा, जिसमें यह देखा गया कि पश्चिमी दिल्ली के 83 प्रतिशत बच्चे दक्षिणी दिल्ली के बच्चों की अपेक्षा संकरी जगहों में रहते हैं, जहां खेलने के पार्क जैसी सुविधाएं कम हैं। अधिक वसा का सेवन और शारीरिक श्रम का कम होना पश्चिमी दिल्ली के बच्चों में मोटापे का प्रमुख कारण माना गया।

-दक्षिणी दिल्ली के 48 प्रतिशत बच्चे टीवी के शौकीन, जबकि पश्चिमी दिल्ली के 85 बच्चों ने टीवी के दीवाने
-दक्षिणी दिल्ली के 41 प्रतिशत बच्चे स्कूल बस से स्कूल जाते हैं, जबकि पश्चिमी दिल्ली के 25 प्रतिशत बच्चे स्कूल बस का सहारा लेते हैं, दक्षिणी दिल्ली के 8.3 प्रतिशत बच्चे साइकिल से स्कूल जाते हैं।
-दोनो ही जोन में केवल 19 प्रतिशत बच्चे स्कूल जाने के लिए पैदल चलते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *