नई दिल्ली,
चिकित्सकों को भगवान का दर्जा दिया जाता है, इसलिए जब एक डॉक्टर मरीज को किसी चीज की एहतियात बरतने की सलाह देता है तो सबसे पहले प्रश्न उठता है कि वह इस चीज को अपने जीवन में अपनाते हैं या नहीं, सिगरेट, तंबाकू का सेवन या फिर शराब पीने को लेकर अकसर इस कम्यूनिटी पर प्रश्न चिन्ह लगता रहता है। गैर संक्रामक बीमारियों के बढ़ते बोझ को देखते हुए और समाज में एक नज़ीर पेश करने के उद्देश्य से अब मेडिकल कांफ्रेंसेस, वर्कशाप और सीएमई में चिकित्सकों के एल्कोहल का सेवन नहीं करने की सलाह दी गई। स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक द्वारा जारी किए गए एक नोटिस में इस बावत चिकित्सकों से आदतों संबंधी सही आचरण अपनाने को कहा गया है।
डीजीएचएस डॉ. अतुल गोयल ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश में गैर संक्रामक या नॉन कम्यूनिकेबल बीमारियां दिन प्रति दिन बढ़ रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार देश में हर साल होने वाली कुल 63 प्रतिशत मौत एनसीडी या नॉन कम्यूनिकेबल डिसीस से हो रही हैं, जिसमें 27 प्रतिशत मौत हृदयघात दिल का दौरा पड़ने की वजह से जबकि 11 प्रतिशत मौते क्रॉनिक रेस्पेरेटर डिसीस या सांस संबंधी पुरानी बीमारियों की वजह से हो रही हैं। एनसीडी बीमारियों में गिने जाने वाले कैंसर की वजह से नौ प्रतिशत मौत, तीन प्रतिशत डायबिटिज या मधुमेह तथा 13 प्रतिशत अन्य वजहें शामिल हैं। तंबाकू, शारीरिक गतिविधि की कमी, एल्कोहल का सेवन, असंतुलित आहार इन चार वजहों को एनसीडी की प्रमुख वजह माना गया है, लिवर सिरोसिस, लिवर कैंसर, हैमरेज और स्ट्रोक आदि के साथ ही एल्कोहल की वजह से होने वाली बीमारियों की वजह संयमित दिनचर्या या आहार की कमी को माना गया है। डीजीएचएस ने सभी मेडिकल प्रोफेसल्स को भेजे पत्र में कहा है कि हम सभी एक जिम्मेदार क्षेत्र को नेतृत्व करते हैं, इसलिए सबसे पहले चिकित्सकों को इन सब चीजों से परहेज करना चाहिए। पत्र में सलाह दी गई कि किसी भी तरह की मेडिकल गैदरिंग जैसे वर्कशॉप, मेडिकल कांफ्रेंस, वर्कशॉप आदि में शराब या एल्कोहल को शामिल नहीं किया जाना चाहिए। डीजीएचएस ने कहा कि यदि चिकित्सक ऐसा करने में सक्षम हुए तो यह एनसीडी को रोकने के लिए समाज को पेश की गई बेहतरीन मिसाल होगी।