कम सोने की वजह से भी हो सकती है याद्दाश्त कमजोर

नई दिल्ली,

 

नींद आम लोगों के लिए के एक असक्रिय प्रक्रिया है, लेकिन न्यूरोलॉजिस्ट की मानें तो नींद एक बायोलॉजिकल प्रक्रिया है। जिस प्रकार शरीर को रोग मुक्त रहने के लिए टॉक्सिन्स को बाहर निकालने की जरूरत होती है उसी प्रकार एक बेहतर नींद मस्तिष्क के टॉक्सिन्स को बाहर कर देती है। चिकित्सीय भाषा में इसे गिल्मपेथिक कहते हैं कम नींद या सोने के कम घंटे होने की कारण गिल्मपैथिक प्रक्रिया नहीं हो पाती और मस्तिष्क में असामान्य प्रोटीन एमेलॉयड का जमाव होने लगता है जो न्यूरोजेनेसिस बीमारी जैसे अल्जाइमर की वजह बन सकता है। हालांकि अल्जाइमर बुजुर्ग अवस्था में होने वाली बीमारी कही जाती है लेकिन अनियमित दिनचर्या या सोने के कम घंटों के कारण युवा भी भूलने की बीमारी के शिकार हो रहे हैं।

 

विश्व अल्जाइमर दिवस के अवसर पर आयोजित प्रेसवार्ता में एम्स के न्यूरोलॉजी विभाग की डॉ. मंजरी त्रिपाठी ने बताया कि कम सोने वालों की अकसर याद्दाश्त कमजोर हो जाती है, जिसके पीछे एक बायोलॉजिकल कारण है। दरअसल भूलने की बीमारी अल्जाइमर को एजिंग बीमारी माना जाता था, उम्र बढ़ने के साथ जब घर के बुजुर्ग चलने में असमर्थ हो जाते हैं तो इसका असर धीरे धीरे मस्तिष्क की सामान्य प्रक्रिया पर पड़ता है और याद्दाश्त कमजोर होना या फिर चीजें रख के भूल जाना जैसी शिकायत होती है। डॉ. मंजरी ने बताया कि दरअसल लोग नींद को एक असक्रिय प्रक्रिया मानते हैं, सोने के बाद दिमाग में क्या चल रहा है इसका हमें पता नहीं चलता लेकिन इस दौरान मस्तिष्क से अपशिष्ट पद्धार्थो के निष्कासन की प्रक्रिया चल रही होती है जिसे गिल्मपैथिक कहते हैं, बेहतर नींद बेहतर याद्दाश्त दे सकती है इसकी वजह से है कि गिल्मपैथिक वायटल चैनल का सामान्य बने रहने से दिमाग में असामानय प्रोटीन एमालॉयड का जमाव नहीं हो पाता, यह प्रोटीन दिमाग के अपशिष्ट होते हैं, इसकी खाना पूर्ति साइक्लिंग या फिर पैदल चलकर भी की जा सकती है। इस अवसर पर डॉ. मंजरी त्रिपाठी ने डिमेशिया मीडिया बुकलेट को भी लांच किया।

 

बुजुर्गों का रखें खास ध्यान

 

घर में किसी बुजुर्ग व्यक्ति को यदि सामान्य बातें भी याद करने में दिक्कत हो तो यह अल्जाइमर की शुरूआत हो सकती है। बैंक की चेकबुक रखकर भूल जाना, गाड़ी चाबी, वेडिंग एनिवसरी भूल जाना, हिसाब में गड़बड़ी या फिर करीबी रिश्तेदारों को न पहचान पाना अल्जाइमर के लक्षण हो सकते हैंं ऐसे सदस्य को विशेष सहयोग और देखभाल की जरूरत होती है, शुरूआती चरण अल्जाइमर का इलाज संभव है। एआरडीएसआई सोसाईटी की वादस प्रेसिडेंड वीना सचदेवा ने बताया कि घर में यदि बुजुर्गो के साथ रहने के लिए कोई सदस्य नहीं है तो केयर टेकर को भी देखभाल के लिए विशेष प्रशिक्षण की जरूरत होती है कई बार बुजुर्गो के व्यवहार के कारण केयरटेकर गंभीर तनाव में चले जाते हैं। सोसाइटी का कहना है कि कोविड के बाद अल्जाइमर के मरीजों में तेजी से बढ़ोतरी हुई, देश में इस समय 60 लाख मरीज इस बीमारी के शिकार हैं, लेकिन सरकार मानसिक बीमारियों के अन्य कार्यक्रम में ही इसे गिनता है बीमारी के लिए किसी तरह की पृथक नीति या योजना नहीं बनाई गई है।

 

 

 

ओपोई जीन से हो सकती है पहचान

 

साधारण जांच में ओपोई फोर एलएल को अल्जाइमर की प्रमुख वजह माना गया है, यदि परिवार में किसी को पहले से यह बीमारी है तो जीन की पहचान कर बीमारी से बचा जा सकता है। जीन को मोडिफाई करने की थेरेपी पर शोध किए जा रहे हैं, लेकिन इसके सफल परिणाम आने में अभी समय लग सकता है, इसलिए दिनचर्या और आहार को नियंत्रित कर अल्जाइमर से बचा जा सकता है।

 

 

 

ब्रोकली है दिमाग के लिए बेहतर

 

हरी सब्जियां सलाद, नियमित व्यायाम, योगासन और ध्यान के माध्यम से न्यूरोजेनेसिस बीमारियों से बचा जा सकता है, इसमें ब्रोकली को दिमाग के लिए सबसे बेहतर माना गया है, इसमें ग्लूकाथी उपस्थिति होता है जो दिमाग में अपशिष्ट को जमने नहीं देता, इसके साथ ही विशेषज्ञ पॉजिटिव और खुश रहने को भी दिमाग के लिए बेहतर माना गया है। बुजुर्गो को एकांत में रहने से बचाना भी बीमारी से बचाव का अहम पहलू है।

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