नयी दिल्ली,
13 जून (भाषा) विश्व रक्तदाता दिवस की पूर्व संध्या पर स्वास्थ्य विशेषज्ञों और मरीजों के समूहों ने रक्तदान को बढ़ावा देने की अपील की और कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के बीच रक्त की कमी के मद्देनजर इसकी सुरक्षा से जुड़े पहलू पर जोर दिया।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने स्वयंसेवी संगठनों, गैर सरकारी संगठनों और वृहद स्तर पर काम कर रहे लोगों से आगे आने और रक्तदान की बार-बार अपील की ताकि देश में किसी तरह की आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए रक्त का पर्याप्त भंडार हो। दिल्ली स्थित थैलीसीमिया मरीजों के सहायता समूह की सदस्य अनुभा तनेजा मुखर्जी ने कहा, भारत में सुरक्षित खून की उपलब्धता हमेशा से चिंता का विषय रही है लेकिन कोविड-19 वैश्विक महामारी ने रक्तदान और खून चढ़ाने के चलन के बीच के अंतर को और गहरा कर दिया है क्योंकि स्वेच्छा से रक्तदान दुर्लभ होता जा रहा है।” उन्होंने कहा कि कुछ मामलों में मरीजों को स्वेच्छा से रक्तदान और किसी और का खून चढ़ाए जाने के कारण संक्रमण के जोखिम को कम करने के लिए होने वाले न्यूक्लिक एसिड टेस्टिंग (एनएटी) जैसी खून चढ़ाने की सुरक्षित प्रक्रियाआें से हटकर लॉकडाउन के कारण मजबूरन पुरानी रक्त परीक्षण प्रणाली को अपनाना पड़ रहा है। मुखर्जी ने कहा कि यह स्थिति उन मरीजों के लिए और मुश्किल है जिनमें बार-बार खून चढ़ाने की वजह से संक्रमण फैलने का जोखिम रहता है और निश्चित तौर पर खून की गुणवत्ता को लेकर चिंतित होने की यह बड़ी वजह है। इस साल, विश्व रक्तदाता दिवस ‘सुरक्षित खून जिंदगियां बचाता है’ विषय पर केंद्रित है और पर्याप्त संसधान मुहैया कराने तथा स्वेच्छा से, गैर पारिश्रमिक दाताओं से रक्त संचय बढ़ाने की व्यवस्था एवं ढांचे को स्थापित करने के लिए कदम उठाने की अपील करता है ताकि गुणवत्ता से भरी देखभाल दी सके और ऐेसी व्यवस्था स्थापित की जाए जो खून चढ़ाने की पूरी कड़ी पर निगरानी रख सके। दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज के निदेशक डॉ एस के सरीन ने कहा, “हमें रक्तदान और सुरक्षित रक्त के लिए स्वास्थ्य जागरुकता के पहलू को चरित्र निर्माण अभ्यास का हिस्सा बनाना होगा। कुछ वर्ग हैं जो इससे प्रेरित होंगे और रक्तदान करने के लिए आगे आएंगे।” सरीन ने कहा कि कोरोना वायरस वैश्विक महामारी खत्म होने के बाद भारत को बीमारी के प्रसार को बचाने के लिए बेहतर जांच अभ्यासों को अपनाना होगा क्योंकि यह विश्व में थैलेसीमिया से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है।
भाषा