नई दिल्ली: जिस हवा में भारतीय सांस लेते हैं, वह दिन-प्रतिदिन जहरीली होती जा रही है और एक नए अध्ययन में कहा गया है कि
वायु प्रदूषण के कारण प्रतिदिन औसतन दो लोग मारे जाते हैं। चिकित्सीय पत्रिका ‘द लांसेट’ के अनुसार, हर साल वायु प्रदूषण के कारण
10 लाख से ज्यादा भारतीय मारे जाते हैं और दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से कुछ शहर भारत में हैं।
इस सप्ताह जारी हुआ यह अध्ययन वर्ष 2010 के आंकडों पर आधारित है। इसमें कहा गया है कि वैश्विक तौर पर 27…34 लाख समय पूर्व जन्म के मामलों को पीएम 2.5 के प्रभाव से जोडा जा सकता है और इन मामलों में सबसे बुरी तरह दक्षिण एशिया प्रभावित होता है. यहां 16 लाख जन्म समय पूर्व होते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण विस्तृत तौर पर एक-दूसरे से जुडे हैं और इनसे एकसाथ निपटे जाने की जरुरत है।
द लांसेट में कहा गया कि जलवायु परिवर्तन ‘‘मानवीय स्वास्थ्य पर तो भारी खतरा पैदा करता ही है’’ साथ ही साथ यदि सही कदम उठाए जाएं तो वह ‘‘21वीं सदी का सबसे बडा वैश्विक स्वास्थ्य अवसर भी है। पत्रिका में छपे अध्ययन में कहा गया कि उत्तर भारत में छाया स्मॉग भारी नुकसान कर रहा है। हर मिनट भारत में दो जिंदगियां वायु प्रदूषण के कारण चली जाती हैं। इसके अलावा, विश्व बैंक के आकलन के मुताबिक यदि भारत में श्रम से होने वाली आय के क्रम में देखा जाए तो इससे 38 अरब डॉलर का नुकसान होता है।
अध्ययन कहता है कि वायु प्रदूषण सभी प्रदूषणों का सबसे घातक रुप बनकर उभरा है। दुनियाभर में समय से पूर्व होने वाली मौतों के क्रम में यह चौथा सबसे बडा खतरा बनकर सामने आया है। हाल ही में 48 प्रमुख वैज्ञानिकों ने अध्ययन जारी किया और पाया कि पीएम 2.5 के स्तर या सूक्ष्म कणमय पदार्थ :फाइन पार्टिक्युलेट मैटर: के संदर्भ में पटना और नई दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर हैं। ये कण
दिल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं।
सोर्स: भाषा