नई दिल्ली: मधुमेह रोगियों द्वारा ली जाने वाली दवाओं और इंसुलिन पर कराये गये एक अध्ययन में सामने आया है कि नौ साल की अवधि में इंसुलिन की बिक्री में पांच गुना से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गयी वहीं डायबिटीज की ओरल दवाओं में चार साल की अवधि में ढाई गुना की वृद्धि दर्ज की गयी। इनमें खासतौर पर नई दवाओं और इंसुलिन की बिक्री तेजी से बढ़ी है जिस पर चिंता जताई गयी है। जाने माने मधुमेह रोग विशेषज्ञ और नेशनल डायबिटीज ओबेसिटी एंड कॉलेस्ट्रॉल फाउंडेशन (एन-डॉक) के अध्यक्ष डॉ प्रो अनूप मिश्रा के नेतृत्व में देशभर में मधुमेह-रोधी ओरल दवाओं और इंसुलिन की बिक्री का अध्ययन किया गया और इस रोग की नई दवाओं और इंसुलिन तथा पुरानी दवाओं के पैटर्न में बदलाव का आकलन किया गया।
विश्व मधुमेह दिवस (14 नवंबर) के अवसर पर जारी अध्ययन की रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि 2008 से 2012 के बीच इंसुलिन की बिक्री 151.2 करोड रपये से 218.7 करोड रपये हो गयी। 2012 से बढ़ते हुए 2016 में यह बिक्री 842 करोड रपये के स्तर पर पहुंच गयी। यानी नौ साल में इसमें पांच गुना से अधिक वृद्धि दर्ज की गयी। इसकी मुख्य वजह रोगियों और डॉक्टरों में इंसुलिन के इस्तेमाल के प्रति निष्क्रियता में कमी आना रही। इसके साथ ही रोगियों की संख्या बढ़ना और कंपनियों का बढ़-चढ़कर किया जाने वाला प्रचार भी मुख्य कारणों में हैं। इसी तरह गोलियों या कैप्सूल के रुप में ली जाने वाली मधुमेह-रोधी दवाओं की बिक्री भी तेजी से बढ़ी है. 2013 में यह बिक्री 278 करोड रपये दर्ज की गयी जो 2016 में 700 करोड रपये के स्तर पर पहुंच गयी।
अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि डायबिटीज की वजह से किडनी की पुरानी बीमारियां भारतीयों में अधिक देखी जाती हैं और ऐसे मामलों की पहचान भी तेजी से हो रही है। इस वजह से भी इंसुलिन की उपयोगिता बढ़ती जा रही है। अध्ययन में ऑल इंडियन ऑरिजिन केमिस्ट्स एंड डिस्टरीब्यूटर्स लिमिटेड (एआईओसीडी) से आंकडे लिये गये। फोर्टिस सी-डॉक हॉस्पिटल फॉर डायबिटीज एंड अलायड स्पेशलिटीज के चेयरमैन डॉ मिश्रा ने कहा कि ये आंकडे इसलिए चिंताजनक हैं क्योंकि अधिकतर भारतीयों को डायबिटीज के इलाज के लिए बहुत ज्यादा खर्च करना पड रहा है। उन्होंने कहा कि भारत में चिकित्सकों को ध्यान रखना चाहिए कि केवल अधिक महंगी और नई इंसुलिन तथा दवाएं हमेशा बेहतर नहीं होती औंर पुरानी दवाएं तथा इंसुलिन भी सही तरीके से इस्तेमाल में लाये जाएं तो प्रभावी हो सकते हैं। जिनके पास धन की कमी है, उनके लिए इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए। डॉ मिश्रा ने अपने अध्ययन के आधार पर नई दवाओं की बिक्री और विपणन के नियमों के संदर्भ में दवाओं के दामों पर नियंत्रण, डॉक्टरों में जागरकता और फार्मास्टयुटिकल कंपनियों के लिए सख्त नियमों का सुझाव दिया है।
सोर्स: भाषा