आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेद में शोध और विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए स्मार्ट (स्कोप फॉर मेनस्ट्रीमिंग आयुर्वेद रिसर्च इन टीचिंग प्रोफेशनल्स) कार्यक्रम शुरू किया है। इस कार्यक्रम के जरिए आयुर्वेद कॉलेजों और अस्पतालों के माध्यम से प्राथमिकता वाले स्वास्थ्य अनुसंधान क्षेत्रों में वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाएगा। केन्द्र सरकार के प्रयासों के चलते ही आज आयुर्वेद पूरी दुनिया के लिए संजीवनी का काम कर रही है। आयुर्वेद में शोध और विकास के लिए आयुष मंत्रालय का ‘स्मार्ट’ कार्यक्रम आने वाले समय में मील का पत्थर साबित होगा।
क्या है स्मार्ट कार्यक्रम
स्मार्ट कार्यक्रम का पूरा नाम स्कोप फॉर मेनस्ट्रीमिंग आयुर्वेद रिसर्च इन टीचिंग प्रोफेशनल्स है। केन्द्र सरकार इस कार्यक्रम के जरिए विश्वभर में आयुर्वेद में शोध और विकास को बढ़ावा देगी। इस कार्यक्रम को भारतीय चिकित्सा प्रणाली और केन्द्रीय आयुर्वेदीय विज्ञान अनुसंधान परिषद (सीसीआरएएस) जो कि आयुष मंत्रालय के अधीनस्थ संस्थान है द्वारा आयुर्वेद चिकित्सा शिक्षा को नियमित और वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने पर काम किया जाएगा। इस कार्यक्रम के जरिए आयुर्वेद में चिकित्सीय शोध या नैदानिक अनुसंधान में व्यापक बदलाव आएगा। अकसर देखा जाता है कि आयुर्वेद शिक्षकों के विशाल समुदाय की अनुसंधान क्षमता का आम तौर पर उपयोग नहीं हो पाता है ऐसे में ‘स्मार्ट’ कार्यक्रम से आयुर्वेद के क्षेत्र में अनुसंधान पर गहरा दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा।
देश में आयुर्वेद में अनुसंधान एवं विकास को कैसे मिला बढ़ावा*
देश में आयुर्वेद में अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार कई स्तर पर कार्य कर रही है। आयुष मंत्रालय ने इस दिशा में वेब आधारित आयुष अनुसंधान पोर्टल की शुरूआत की, जिसके जरिए आयुष पद्धतियों से संबंधित सूचनाओं यथा- साक्ष्य आधारित अनुसंधान आंकड़ों को दर्शाया जाता है। इस पोर्टल में लगभग 40 हजार रिसर्च स्टडीज़ का डेटा मौजूद है। कोविड संकट के दौरान भारत में आयुष से जुड़ी करीब 150 स्पेसिफिक रिसर्च स्टडीज़ हुईं हैं और अब केंद्र सरकार नेशनल आयुष रिसर्च कांर्सोटियम बना रही है जिससे आयुर्वेद के क्षेत्र में अनुसंधान, शिक्षा, प्रशिक्षण प्राप्त किया जा सकेगा। इसके अलावा हील इंडिया और हील बाय इंडिया पहल के जरिए अनुभव और साक्ष्य आने वाले समय में हमारे इंडियन नॉलेज सिस्टम में भी उपलब्ध होंगे। आयुष मंत्रालय कई प्रशासनिक और नीतिगत उपाय भी कर रही है ताकि पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को पहले से कहीं अधिक मुख्यधारा में लाया जा सके।
साक्ष्य आधारित वैज्ञानिक अनुसंधान की संस्कृति को बढ़ावा
आयुर्वेद के प्रचार व प्रसार को बढ़ावा देने के लिए गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान जरूरी है। आयुर्वेद को लेकर पीएम मोदी ने भी “एविडेन्स बेस्ड रिसर्च डेटा” की बात कही थी उन्होंने ऐसा इसलिए कहा था आयुर्वेद को लेकर वैश्विक सहमति, सहजता और स्वीकार्यता आने में काफी समय लगा, क्योंकि विज्ञान में एविडन्स को ही प्रमाण माना जाता है। दूसरी तरफ हम सभी आयुर्वेद के परिणाम और प्रभाव से परिचित थे लेकिन हमारे पास किसी भी तरह के प्रमाण मौजूद नहीं थे। ऐसे में हम लोगों को ‘डेटा बेस्ड एविडेंसेस’ का डॉक्यूमेंटेशन करना जरूरी है। स्मार्ट कार्यक्रम से आयुर्वेद के क्षेत्र में साक्ष्य आधारित वैज्ञानिक अनुसंधान की संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा। इसके साथ ही शोधार्थियों में अनुसंधान संबंधी कौशल विकसित करने में मदद मिलेगी।
आयुर्वेद की शिक्षा को बढ़ावा देने के उठाए गए कदम
– वैश्विक स्तर पर आयुर्वेद की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए आयुष मंत्रालय ने विदेशी विश्वविद्यालयों/संस्थानों के साथ 13 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं जिसमें अनुसंधान, शिक्षा और प्रशिक्षण भी शामिल है।
– आयुष मंत्रालय की फेलोशिप/छात्रवृत्ति योजना के अंतर्गत भारत के प्रमुख संस्थानों में आयुष प्रणालियों में स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी पाठ्यक्रमों में अध्ययन के लिये 99 देशों के पात्र विदेशी नागरिकों को प्रतिवर्ष 104 छात्रवृत्तियां भी प्रदान की जाती हैं।
– नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी भारत की मेडिकल एजुकेशन में इंटिग्रेशन की अप्रोच को प्रोत्साहित किया गया है। इस पॉलिसी की भावना है कि एलोपेथिक एजूकेशन में आयुर्वेद की जानकारी हो और आयुर्वेदिक एजूकेशन में एलोपेथिक प्रैक्टिस की मूल जानकारी भी शामिल हों। इस कदम से आयुष और भारतीय पारंपरिक चिकित्सा पद्धति से जुड़ी शिक्षा और रिसर्च को और मजबूत मिलेगी।