नई दिल्ली: तमाम पौष्टिक भोजन खाने के बावजूद यदि बच्चा कमजोर है और उसकी लंबाई भी नहीं बढ़ रही है तो इसका एक कारण ‘व्हीट एलर्जी’ यानि ग्लूटोन से एलर्जी हो सकता है, जिसे मेडिकली सेलिएक डिजीज कहा जाता है। देश में यह बीमारी बहुत बड़े लेवल पर फैल चुकी है। लेकिन जागरुकता की कमी के चलते इस बीमारी से पीडित बच्चों का न तो पूर्ण विकास हो पा रहा है और न ही सही इलाज।
डॉक्टरों के अनुसार गेंहू , जौ और रागी में ग्लूटोन पाया जाता है लेकिन जिन बच्चों को ग्लूटोन से एलर्जी होती है उनमें यह पेट की छोटी अंतडियों को नुकसान पहुंचाना शुरु कर देता है । यह एक प्रकार से आटो इम्यून बीमारी है जिसमें शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपने ही एक प्रोटीन के खिलाफ एंटी बाडीज बनाना शुरु कर देती है ।
ताजा आंकडों के अनुसार देश में हर सौ में से एक बच्चा इससे पीडित है यानि एक करोड 25 लाख लोग इसके शिकार हैं। इसके विपरीत एचआईवी से पीडित आबादी की संख्या दशमलव 2 फीसदी है । लेकिन व्हीट एलर्जी पर अभी तक सरकार ने कोई विशेष ध्यान केंद्रित नहीं किया है । यही कारण है कि देश की राजधानी दिल्ली तक में केवल एक दो सरकारी अस्पतालों में ही इसके रक्त परीक्षण की सुविधा उपलब्ध है । हालांकि हर बडी प्राइवेट लैब में इसकी सुविधा है ।
इस बीमारी को लेकर जागरुकता अभियान ‘होप एंड हेल्पिंग हेंड सोसायटी’ से जुडे तथा ‘सेलिएक स्पोर्ट आर्गेनाइजेशन’ के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डा एस के मित्तल ने बीमारी के शुरुआती लक्षणों के बारे में बताया कि इस बीमारी में छोटी आंत को नुकसान पहुंचने के कारण खाना पचता नहीं है और बच्चे को दस्त लगे रहते हैं. पेट फूल जाता है और रक्त की कमी हो जाती है । बडे लोगों में इसके चलते आस्टियोपोरोसिस हो जाता है । किशोरवय लडके लडकियों में किशोरावस्था के लक्षण आने में देर हो जाती है।
डॉक्टर मित्तल ने बताया कि जरुरी नहीं कि इस बीमारी में बच्चों को दस्त लगना ही एकमात्र लक्षण हो क्योंकि कई बार यह प्राथमिक लक्षण नहीं होता लेकिन बीमारी के चलते बच्चे का कद नहीं बढ़ पाता या रक्त की कमी मुख्य समस्या होती है जिसे आमतौर पर पोषण से जुडी समस्या मान लिया जाता है । डॉक्टरों का कहना है कि दुनिया में इस बीमारी का एक ही उपचार है जिंदगीभर ग्लूटोन नहीं खाना। इस बीमारी से पीडित बच्चों या बडों को बिस्कुट, रोटी, ब्रेड , मट्ठी या कोई भी ऐसी चीज नहीं खानी चाहिए जिसमें ग्लूटोन हो । गेंहू, जौ और रागी इन तीन अनाजों को छोड़कर व्हीट एलर्जी से पीडित व्यक्ति सब कुछ खा सकते हैं. चावल, मक्का, ज्वार, रागी , सब दालें, दूध, दही पनीर खा सकते हैं. पनीर से प्रोटीन की सारी कमी पूरी हो जाती है ।
डॉक्टर मित्तल कहते हैं कि यूरोपीय और अमेरिकी बाजार के विपरीत भारतीय बाजारों में व्हीट एलर्जी के मरीजों के लिए ग्लूटोन मुक्त खाद्य पदार्थ आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। इसी बीमारी को लेकर समाज को जागरुक करने के मकसद से ‘होप एंड हेल्पिंग हेंड सोसायटी’ तथा ‘सेलिएक स्पोर्ट आर्गेनाइजेशन’ 11 दिसंबर को दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु स्टेडियम में हाफ मैराथन का आयोजन कर रहा है । इन संगठनों की मांग है कि सरकारी अस्पतालों में भी व्हीट एलर्जी की जांच की व्यवस्था करायी जाए तथा बाजार में उपलब्ध खाद्य पदार्थों में ग्लूटोन की मात्रा की जांच के नियम सख्त किए जाएं और इसे खाद्य समिमश्रण कानून के तहत लाया जाए।