नई दिल्ली: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) का कहना है कि एंटीबायोटिक से संबंधित शोध में तेजी लाने की जरुरत है क्योंकि एंटीबायोटिक प्रतिरोधक के तौर पर नई दवाएं वैश्विक खतरे के रुप में उभर रही हैं। आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. के. के. अग्रवाल ने कहा कि एंटीबायोटिक के गलत इस्तेमाल से से कई महत्वपूर्ण जीवन रक्षक दवाएं निष्प्रभावी होती जा रही हैं. नई दवाओं के मॉलेक्युल और ड्रग टारगेटों में तेजी लाने और शोध को बढ़ावा देने की जरुरत है। अग्रवाल ने कहा कि एंटीबायोटिक प्रतिरोधक वैश्विक खतरे के रुप में उभरा है और समस्या मुख्यत: भारत में है।
भारत में संचारी रोग से मरने वालों की संख्या प्रति वर्ष 1000 व्यक्तियों पर करीब 416 है. इस परिस्थिति में सामान्य संक्रमण के ज्यादा घातक होने की संभावना है और स्थिति स्पष्ट रुप से बताती है कि एंटीबायोटिक विकास से संबंधित शोध में तेजी लाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत में एंटीबायोटिक प्रतिरोधक की समस्या खराब जन स्वास्थ्य प्रणाली और अस्पतालों में संक्रमण, संक्रमण से होने वाले रोगों की उच्च दर, खर्चीले एंटीबायोटिक और बढ़ती आमदनी जैसे कई कारकों से और गंभीर बन जाता है। उन्होंने कहा, ‘‘ये सभी कारक रेसिस्टेंट माइक्रोब्स के बढ़ने में योगदान करते हैं जिससे नियोनटल सेप्सिस जैसे संक्रमण से संबंधित
मृत्यु दर में बढ़ोतरी होती है।
आईएमए के महासचिव डॉ. आर. एन. टंडन ने एंटीबायोटिक के ओवर सब्सक्रिप्शन और ओवर द काउंटर इस्तेमाल का उदहारण देते हुए चिकित्सकों से अपील की कि अनावश्यक प्रेस्क्रप्शिन को समाप्त करे और रोगियों को सलाह दी कि एंटीबायोटिक का ओवर द काउंटर इस्तेमाल बंद करें। डॉ. टंडन ने कहा, कि हमारे पास जीवन रक्षक विकल्प तेजी से कम होते जा रहे हैं क्योंकि वर्तमान में चिकित्सा समुदाय सामान्य संक्रमण से लेकर जटिल सर्जरी प्रक्रिया तक एंटीबायोटिक्स पर पूरी तरह निर्भर करता है।
उन्होंने कहा कि चिकित्सकों को अनावश्यक प्रिस्क्रप्शिन रोकने की जरुरत है और रोगियों को खुद भी एंटीबायोटिक के ओवर द काउंटर इस्तेमाल पर रोक की जरुरत है। पोल्टरी और कृषि में भी एंटीबायोटिक के इस्तेमाल पर नजर रखने की जरुरत है। समय कम है और शोध और विकास पहल को इस समस्या से निजात पाने के लिए ज्यादा विकल्प खोजने की जरुरत है। डॉक्टर ने कहा कि चिकित्सा विज्ञान में इस बात की जानकारी का अब भी अभाव है कि किस तरह से प्रतिरोधकत पनपता और बढ़ता है। इसमें होने वाली सेल्युलर और मोलेक्युलर प्रक्रिया में कई खामियां हैं। ये कारक एंटीबायोटिक शोध को एक आवश्यक क्षेत्र बनाते हैं और संबंधित अधिकारियों को इस क्षेत्र में नितांत आवश्यकता और संभावना को लेकर जागृत होना चाहिए।