एक इंजेक्शन ने दूर किया 400 के घुटनों का दर्द

घुटने के दर्द को दूर करने के लिए अब एक इंजेक्शन ही काफी होगा। ऑस्टियोआर्थराइटिस के शिकार 400 मरीजों पर इंजेक्शन का प्रयोग किया गया है। इसकी मदद से 35 से 50 साल की उम्र के बीच होने वाली घुटने की समस्या को दूर किया जा सकता है, हालांकि अधिक उम्र में हड्डी रोग विशेषज्ञ अब भी घुटना प्रत्यारोपण को ही कारगर इलाज कहते हैं।
विश्व स्वास्थ्य दिवस पर आयोजित विशेष कार्यक्रम में एम्स के आर्थोपेडिक्स विभाग के डॉ. राजेश कुमार मल्होत्रा ने बताया कि विदेश में सफल प्रयोग के बाद भारतीयों पर कार्टिलेज के इंजेक्शन का प्रयोग किया गया. एक साल में दस शहरों के 40 केन्द्रों पर किए गए अध्ययन में देखा गया कि इंजेक्शन लगाने के बाद मरीजों को दर्द की शिकायत नहीं हुई। डॉ. राजेश ने बताया कि इंजेक्शन को सिंगल शार्ट विसकोइंप्लांटेशन कहते हैं। देश में इस समय 1.5 करोड़ लोग आस्टियोआर्थराइटिस की वजह से घुटनों में दर्द से परेशान हैं, इसमें 35 साल के युवा भी शामिल हैं तो 62 साल के बुजुर्ग भी। बुजुर्गो में कार्टिलेज इंजेक्शन के प्रयोग को सही समय पर प्रयोग किया जाएं तो परिणाम सफल हो सकते हैं, जबकि कार्टिलेज की कमी से जोड़ों की हड्डियां घिसने लगती है, इस स्थिति में घुटना प्रत्यारोपण के अलावा और कोई विकल्प नहीं। योर्कशराइ ट्रस्ट के आर्थोपेडिक्स डॉ. रघुरमन ने बताया कि धूप की कमी, अनियमित दिनचर्या और जेनेटिक कारणों की वजह से भारत में कम उम्र में जोड़ों की समस्या देखी जा रही है। अधिक समय तक दर्द का इलाज पेनकिलर से नहीं करना चाहिए, कार्टिलेज के एक इंजेक्शन से 15 मिनट में दर्द को एक साल के लिए दूर किया जा सकता है।

दो तरह के कार्टिलेज
रिजैनरेटिव कार्टिलेज-इस प्रक्रिया में मरीज के कार्टिलेज का एक हिस्सा लेकर उसे लैबोरेटिरी में बढ़ाया जाता है, इसके बार उसे मरीज के प्रभावित जगह पर इंजेक्शन के जरिए प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इस विधि में दिक्कत यह है कि अभी लैब में कुछ ही इंच के कार्टिलेज को बढ़ा सकते हैं। यह बुजुर्गो के लिए अधिक कारगर नहीं क्योंकि वृद्धावस्था लैब में विकसित नहीं किया जा सकता।
आर्टिफिशियन कार्टिलेज- इस विधि में बाजार में उपलब्ध कार्टिलेज के इंजेक्शन को जोड़ों पर लगाया जाता है। यह अधिक उम्र के ऐसे बुजुर्गो पर भी कारगर है, जिनमें घुटनों के दर्द की वजह से हड्डियां क्षतिग्रस्त नहीं हुई है। ओपीडी या माइनर ओटी में यह इलाज किया जाता है।

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