नई दिल्ली: वह दिन दूर नहीं जब किडनी खराब होने के बाद मरीजों के पास किडनी एक कृत्रिम उपकरण के रूप में उपलब्ध होगी। मेडिकल जर्नल ऑफ क्लीनिकल इंवेश्टिगेशन के ताजा अंक में इस बात का खुलासा किया गया है। अध्ययन के अनुसार उपकरण नुमा मशीन डायलिसिस का विकल्प होगी, वैज्ञानिक इसे हीमोडायलिसस या घर पर किए जाने वाले डायलिसिस के सुधार के रूप में देख रहे हैं।
कृत्रिम डायलिसिस उपकरण से मरीजों को डायलिसिस के समय होने वाली परेशानियों से छुट्टी मिल सकेगी। दोनो किडनी खराब होने पर मरीजों को हफ्ते में तीन से चार दिन डायलिसिस कराना होता है, एक मशीन पर यह प्रक्रिया होने की वजह से डायलिसिस के समय मरीज चल फिर भी नहीं सकते हैं। जबकि वियरेबल या पहनने योग्य उपकरण की मदद से उपकरण लगा होने पर नियमित काम भी कर सकेगें और इस बीच किडनी का कृत्रिम काम भी होता रहेगा।
यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन मेडिकल सेंटर ने किडनी खराब होने पर सात मरीजों पर उपकरण का परिक्षण किया। एफडीएस अमेरिका द्वारा इससे पहले परिक्षण की अनुमति दी गई। रेडियोलॉजी हेल्थ और एफडीए की मदद से किए गए शोध में मरीजों को डायलिसिस के अन्य विकल्प हटा कर उपकरण को इस्तेमाल करने की सलाह दी गई। ब्लड प्यूरिफिकेशन टेक्नोलॉजी कैलिफोर्निया के मेडिकल ऑफिसर डॉ. विक्टर गुरू ने बताया कि उपकरण को कृत्रिम किडनी के रूप में ही विकसित किया गया, लेकिन यह मरीजों पर कितना कारगर रहेगा, या इसका इस्तेमाल व्यवहारिक होगा या नहीं? इसके लिए मरीजों को शोध के लिए पंजीकृत किया गया।
शोध में देखा गया कि कमर में बेल्ट की तरह बंधा उपकरण की मदद से मरीज के खून साफ होने की प्रक्रिया हो रही है। किडनी का काम शरीर के खून से टॉक्सिन या दूषित पद्धार्थ जैसे यूरिया, क्रेटनाइन, फास्फोरस आदि को निकालना होगा, और उपकरण के इस्तेमाल के दौरान भी यह काम आसानी से हो रहा था। हालांकि सात मरीजों पर परिक्षण के बाद ट्रायल को रोक दिया गया, विशेषज्ञों का कहना है कि उपकरण के प्रयोग के समय मरीज के शरीर में कुछ छोटे बब्लस या फफोले देखे गए, इसके बाद उपकरण पर दोबारा काम शुरू कर दिया गया है। जबकि शोध में शामिल मरीज पूरे परिक्षण से बेहद संतुष्ट थे।